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मंगलवार, 10 सितंबर 2013

हक पाने की जिद

हक के लिए जान  की   भी परवाह नहीं
* इंदिरा सागर बांध प्रभावित एक बार फिर जल सत्याग्रह की राह पर
* दस दिनों से जारी आंदोलन ने बढ़ाई सरकार की परेशानी
 *जमीन के बदले जमीन व बेहतर पुनर्वास की मांग ने जोर पकड़ा

रवि अवस्थी,भोपाल।  प्रदेश में इंदिरा सागर बांध के प्रभावित एक बार फिर जल सत्याग्रह की राह पर हैं। केंद्र सरकार द्वारा हाल ही में पारित भूमि अधिग्रहण अधिनियम ने इनके आंदोलन को और बल दिया है। इसके चलते आंदोलनकारियों ने इस बार तीन जिले खंडवा ,हरदा व देवास में अपना मोर्चा खोला है। इनका आरोप है,कि बांध में तय मापदंडों से अधिक पानी भरे जाने से इन जिलों के ढाई सौ से अधिक गांवों पानी से घिर गए हैं। प्रशासन प्रभावितों की सुध लेने क ी बजाए उन्हें बलपूर्वक खदेड़ना चाहता है। आंदोलनकारियों ने चेतावनी दी है,कि उनकी मांगों का शीघ्र निराकरण नहीं हुआ तो वे सामूहिक जल समाधि ले लेगें।
हाथों में छाले,पैरों की खाल सफेद पड़ चुकी है,लेकिन बीते एक सितंबर से पानी में आधे डूब कर आंदोलन कर रहे सत्याग्रही अपनी मांगों पर अडिग है। एक-दो मौके ऐसे भी आए जब पुलिस ने हल्का बल-प्रयोग कर इन्हें खदेड़ने का प्रयास किया लेकिन आंदोलनकारी फिर नर्मदा के पानी में आ डटे। दरअसल,जल सत्याग्रह का उनका अनुभव पुराना है। खास बात यह कि इस बार सभी प्रभावित एकजुट हैं और इन्होंने एक साथ तीन जिलों में मोर्चा खोला है। केंद्र सरकार द्वारा प्रभावितों के लिए हाल ही में लाए गए भूमि अधिग्रहण अधिनियम से इन्हें बल मिला है। सूबे में एक तो चुनाव सिर पर है। इस पर यह  नया कानून। प्रभावितों को उम्मीद बंधी है ,कि उन्हें यदि जमीन के बदले जमीन नहीं भी मिलती है तो सरकार को मुआवजा राशि बढ़ाने के लिए मजबूर होना पड़ेगा। हालांकि बीते दस दिनों में सरकार की ओर से ऐसे कोई संकेत नहीं मिले हैं। मिले भी क्यों, जिम्मेदार अधिकारियों का तर्क है,कि प्रभावितों को पहले ही भरपूर मुआवजा दिया जा चुका है। बीते साल  प्रभावितों के साथ हुए समझौते के मुताबिक संबंधित प्रभावितों द्वारा पूर्व में ली गई मुआवजा राशि का पचास फीसदी हिस्सा सरकार को लौटाना था। इसके बाद ही उन्हें जमीन के बदले जमीन मिलती लेकिन जमीन की मांग कर रहे ज्यादातर प्रभावितों ने इन शर्ताें का पालन ही नहंीं किया तो जमीन कैसी?
 हक पाने की जिद
 तीनों जिलों में करीब पांच हजार से अधिक प्रभावित अपना हक पाने के लिए नर्मदा में ही जल समाधि लेने की जिद पर अड़ हुए हैं।  वे अपना अधिकार  चाहते हैं और वह भी पुनर्वास नीति के तहत।  वहीं प्रशासन इन सत्याग्रहियों को गिरफ्तार कर जेल भेज रहा है। परियोजना प्रभावितों का  जल सत्याग्रह बीते दस दिनों से जारी है। खंडवा के मालूद, हरदा के बिछोला और देवास के मेल पिपलिया गांव के सैकड़ों प्रभावित जल सत्याग्रह कर रहे हैं। इससे पहले प्रशासन ने इस आंदोलन को खत्म कराने के मकसद से बीते रविवार बड़ी संख्या में सत्याग्रहियों को गिरफ्तार किया।  खंडवा जिले के डूब के गांव बडखालिया में पुलिस ने रविवार को बल प्रयोग किया और आन्दोलन की प्रमुख कार्यकर्ता चित्तरूपा पालित को गिरफ्तार कर इंदौर भेजा। सोमवार को भी जल सत्याग्रह स्थलों पर भारी पुलिस बल की तैनाती  की गई। इसके बावजूद सत्याग्रही आंदोलन कर रहे हैं। आंदोलनकारियों के मुताबिक, इंदिरा सागर परियोजना से खंडवा, देवास और हरदा जिले के कई गांव डूब क्षेत्र में आ गए हैं और यह सिलसिला आगे भी जारी रहने के आसार हैं। यहां के सैकड़ों परिवारों का जीवन संकट में है।  बीते वर्ष भी प्रभावितों ने जल सत्याग्रह किया था। तब राज्य सरकार ने मंत्रियों की समिति बनाकर उनका हक दिलाने का भरोसा दिलाया था, मगर अब तक उस पर अमल नहीं हुआ है। नर्मदा बचाओ आंदोलन के मुताबिक इंदिरा सागर से 254 गांव प्रभावित हुए हैं। जमीन के बदले जमीन की नीति होने के बावजूद एक भी प्रभावित को जमीन दिए बिना बहुत थोड़ा मुआवजा देकर उजाड़ दिया गया।   सरकारी आंकड़ों के अनुसार 85 प्रतिशत से अधिक किसान कोई जमीन नहीं खरीद पाए और भूमिहीन बन गए हैं। आंदोलनकारियों का आरोप है, कि सर्वोच्च न्यायालय व उच्च न्यायालय की रोक के बावजूद इंदिरा सागर परियोजना का जल स्तर 260 मीटर से बढ़ाकर 262 मीटर तक भरने की तैयारी है। प्रभावितों की मांग है कि किसानों को जमीन के बदले जमीन और न्यूनतम पांच एकड़ जमीन दी जाए। मजदूरों को ढाई लाख रुपये का अनुदान दिया जाए ताकि किसान और मजदूर विस्थापन के बाद अपना जीवन और जीविका बेहतर ढंग से चला सकें। इनकी मांग है कि डूब से प्रभावित हजारों खेतों और मकानों का भूअर्जन किया जाए, सम्बंधित हजारों परिवारों का संपूर्ण पुनर्वास किया जाए और इंदिरा सागर बांध का जल स्तर 260 मीटर के ऊपर न ले जाया जाए। सरकार द्वारा किए गए वादे के मुताबिक प्रभावितों को लाभ न मिलने और बांध को 262 मीटर तक भरने की चल रही कोशिशों ने ग्रामीणों को एक बार फिर आंदोलित कर दिया है। यही कारण है, कि वे फिर नर्मदा के जल में जा बैठे हैं। आंदोलन के एक नेता ने  बताया , कि सरकार प्रभावितों के प्रति सहानुभूति दिखाने की बजाय उनके साथ दमनात्मक कार्रवाई कर रही है. प्रभावित परिवार शांतिपूर्वक जल सत्याग्रह कर रहे हैं और पुलिस उन्हें गिरफ्तार कर जेल भेज रही है।
 महिलाएं व बच्चे भी शामिल
 जल सत्याग्रह आंदोलन में पुरुष ही नहीं महिला व बच्चे भी बढ़ चढ़ कर शामिल हो रहे हैं। सोमवार को खंडवा जिले के लछोरा गांव में कुछ नए आंदोलनकारी भी पानी में उतर गए। बताया जाता है,कि बांध का जलस्तर 262 मीटर किए जाने से इस गांव के करीब 25 घरों में पानी है और यह गांव तीन ओर से पानी से घिर गया है। खंडवा जिले के ही ग्राम पिपलानी, मालूद व नंदाना में भी लोग प्रभावित हैं और वे भी जल सत्याग्रह में शामिल हो गए हैं। आंदोलनकारियों नेताओं की माने तो जल सत्याग्रह कर रहे लोगो बुखार का शिकार हो रहे हैं। पानी में लगातार रहने से इनक ी चमड़ी गलने से घाव हो गए हैं। इनसे खून का रिसाव हो रहा है तो कुछ खुजली व अन्य चर्म रोग से ग्रसित हो रहे हैं। बावजूद इसके आंदोलनकारी अपनी मांग पर  अडिग हैं। इनके बुलंद हौंसलों को देखते हुए हाल ही में स्थानीय विधायक लोकेंद्र सिंह व अन्य जनप्रतिनिधियों ने आंदोलनकारियों से मुलाकात की व उनकी बात को मुख्यमंत्री तक पहुंचाने का आश्वासन भी दिया लेकिन सत्याग्रह आंदोलन पर आमदा रहे। इधर,प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कांतिलाल  भूरिया ने भी जल सत्याग्रहियों की मांगों को न्यायोचित बताया। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार प्रभावितों की मांगों को राजनैतिक चश्मे से देखने की बजाए मानवीय आधार पर प्राथमिकता से इनका निराकरण करे। उन्होंने कहा कि जल सत्याग्रह कर रहे अनेक लोग गंभीर रोगो का शिकार हो रहे हैं। उनका जीवन बचाना सरकार की प्राथमिकता होना चाहिए।
 बीते साल भी किया था आंदोलन
राज्य के बांध प्रभावितों ने बीते वर्ष भी खंडवा जिले के घोघल गांव में जल सत्याग्रह किया था और यह एक पखवाड़े तक चला था। इससे कई सत्याग्रहियों की चमड़ी तक गलने लगी थी और उसके बाद सरकार हरकत में आई थी। तब मुद्दा था ओंकारेश्वर बांध की ऊंचाई कम करने व इसे 193 मीटर तक भरे जाने का है। इसके अलावा आंदोलनकारियों ने उन्हें दिए गए मुआवजे पर असंतोष जताते हुए जमीन के बदले जमीन दिए जाने की मांग भी जोरदार तरीके से उठाई थी। इस आंदोलन को आसपास के ग्रामीणों का भी खासा समर्थन हॉसिल हुआ था। इसका आंकलन इसी बात से किया जा सकता है,कि सत्याग्रह स्थल के आसपास के करीब ढाई सौ गांव के पांच हजार से ज्यादा लोग इस स्थान पर एक पखवाड़े तक जमा रहे जबकि सत्याग्रह  कुल 51 लोग ही कर रहे थे। आंदोलन को समाप्त करवाने के इरादे से राज्य शासन ने तब बांध में पानी का भराव तय सीमा तक किए जाने की घोषणा की । साथ ही जमीन के बदले जमीन देने की मांग की समीक्षा व वस्तुस्थिति के लिए राज्य मंत्रिमंडल के तीन सदस्यों की एक समिति गठित की थी। साथ ही यह शर्त भी रखी थी ,कि जमीन के बदले जमीन चाहने वाले प्रभावितों को पहले उन्हें मिला मुआवजे की न्यूनतम पचास फीसदी राशि सरकार को वापस करनी होगी। बताया जाता है,कि कूटनीतिक तरीके से जोड़ी गई इसी शर्त ने प्रभावितों को तोड़ दिया। दरअसल, सालों पहले मिली मुआवजा राशि को खर्च कर चुके ज्यादातर प्रभावित इसे लौटा पाने की स्थिति में नहीं थे। रकम नहीं लौटाई तो जमीन कैसी? आलम यह ,कि 85 फीसदी से अधिक प्रभावित खुद को ठगा सा महसूस करते रहे। इधर ,इंदिरा सागर बांध के कैचमेट एरिया में पानी का भराव बढ़ने से आसपास के 254 गांवों पर डूब व बीमारियों का खतरा  मंडराने लगा। इससे प्रभावितों का सब्र का बांध टूट गया और अब वे एक बार फिर आंदोलन की राह पर हैं। जानकारों का मानना है,कि केंद्र सरकार द्वारा हाल ही में लाए गए भूमि अधिग्रहण विधेयक ने भी प्रभावितों की उम्मीद को पंख लगाए। इनका मानना है,कि नए नियमों को लागू करने का दबाव बन सका तो उनकी मुआवजा राशि में इजाफा हो सकता है। जबकि राज्य शासन प्रभावितों के आंदोलन को औचित्यहीन बता रही है। उसका दावा है,कि  जिन गांवों में पानी भरने का दावा किया जा रहा है वे बांध के डूब प्रभावित क्षेत्र में आते हैं और  इनके लिए  अधिकांश प्रभावितों को पहले ही भरपूर मुआवजा राशि दी जा चुकी है।
 पुनर्वास को लेकर रहा विवाद
 एक ओर राज्य शासन का दावा है,कि बांध से प्रभावित लोगो का उचित पुनर्वास किया गया है। इस मामले में तय नीति का भी पूरी तरह पालन किया गया। जबकि प्रभावित सरकार पर पुनर्वास नीति की अनदेखी करने का आरोप लगाते हैं। अनेक प्रभावितों ने अपने बेहतर पुनर्वास की मांग को लेकर पूर्व में नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण  अंतर्गत गठित शिकायत निवारण प्राधिकरण का दरवाजा भी खटखटाया है।यहां इनके पक्ष में कुछ फैसले भी हुए। जमीन के बदले जमीन संबंधी दावों पर  प्राधिकरण ने भी माना,कि पुनर्वास नीति का पालन नहीं हुआ है और सभी प्रभावितों को जमीन के बदले जमीन दी जाये। यही नहीं  सर्वोच्च न्यायालय ने भी ओंमकारेश्वर बांध प्रभावितों के मामले में आदेश दिया ,कि प्रभावितों का पुनर्वास बांध निर्माण के पहले हो जाना चाहिए।  प्रभावितों का आरोप है,कि सरकार उक्त सभी आदेशों का नजरअंदाज कर किसी भी तरह पुनर्वास कराने से बचना चाहती है। इसके लिए बांधों का जलस्तर बढ़ा कर संभावित क्षेत्र में डूब के हालात पैदा किए जा रहे हैं ताकि प्रभावित डर कर भाग जाएं। इन्होंने चेतावनी दी,कि वे जल समाधि ले लेंगे लेकिन अपना अधिकार नहीं छोडेंगे।

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