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मेरा जन्म मध्यप्रदेश में रायसेन जिले के ग्राम तामोट में 24जनवरी 1965 को हुआ। मेरा गांव अन्य गांवों की तुलना में विकसित कहा जा सकता है। यहां के एक समाजसेवी तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रकाशचंद्र सेठी के कार्यकाल में दस सालों तक राज्य के मंत्री रहे। स्कूली शिक्षा गांव में हुई। भोपाल में रह कर गणित में स्नातकोत्तर शिक्षा ग्रहण करने के बाद कुछ वर्षों तक मैं शिक्षक के रूप में कार्य करता रहा। इसी दौरान मुझे लेखन का शौक पैदा हुआ और स्वतंत्र लेखक के रूप में सामाजिक मुद्दों पर लेखन शुरु किया। मेरी पहली रचना साप्ताहिक हिन्दुस्तान पत्रिका में प्रकाशित हुई। इसने मेरे लेखन के शौक को जैसे पंख लगा दिए। इसके बाद लेख लिखने व इनके प्रकाशन का सिलसिला अनवरत जारी रहा। भोपाल से प्रकाशित समाचार पत्र दैनिक भास्कर, नवभारत, स्वदेश के संपादकीय पृष्ठों पर मेरे लेखों का अनेक बार स्थान मिला तो राजस्थान पत्रिका व राष्ट्रीय पत्रिका मुक्ता ने मेरे व्यंग्य लेखों का प्रकाशन भी किया। व्यंग्य लेखन से मेरा नाता अधिक समय नहीं रहा। स्वभाव और मिजाज के मुताबिक ज्यादातर गंभीर सामाजिक मुद्दों पर ही लेखन जारी रहा। नंवबर 1989 में विवाह के बाद परिवार की जिम्मेदारी बढ़ी । वक्त की जरूरत पर वर्ष 1991 में भोपाल से प्रकाशित दैनिक देशबंधु में बतौर संवाददाता नौकरी ज्वाइन की। इसके बाद लेखन का कार्य रिर्पोटिंग में बदल गया। एक नया अनुभव। रिपोर्टिंग के लिए दिन भर शहर में भागदौड़। शाम को दफ्तर पहुंचने की जल्दबाजी और फिर देर रात तक अखबार का कामकाज। यह सिलसिला अब भी जारी है। पत्रकारिता जीवन के 19 साल देशबंधु में गुजारने के बाद पीपुल्स समाचार व इसके बाद एलएनसीटी समूह द्वारा भोपाल से प्रकाशित एल एन स्टार समाचार पत्र में नौकरी की। एलएन स्टार पत्र में लेखन का यह सिलसिला अब भी जारी है। इस दौरान अनेक सामाजिक, प्रशासनिक गड़बड़ियों को उजागर किया। सोच हमेशा सकारात्मक रही,लिहाजा पत्रकारिता कभी आर्थिक कमाई का जरिया नहीं बनी ,न बनने दिया। नौकरी से मिला वेतन घर-परिवार चलाने के लिए काफी रहा। शायद संतोषी प्रवृत्ति भी इसमें मददगार रही। बहरहाल,वर्ष 95 में भास्कर समूह द्वारा स्थापित श्री द्वारकादास अग्रवाल फाउण्डेशन ने मेरी मेहनत को सराहा और मेरा चयन राष्ट्रीय स्तर के पुरस्कार के लिए किया गया। वह दौर चुनाव सुधार का था और तत्कालीन मुख्य चुनाव आयुक्त श्री टी एन शेषन ने अपनी कार्यशैली से चुनाव आयोग के महत्व को उजागर किया। यहां उनका जिक्र इसलिए कि उक्त पुरस्कार मुझे श्री शेषन के हाथों मिला। यह मेरा सौभाग्य था कि एक ईमानदार,कर्तव्यनिष्ठ व्यक्ति के हाथों मैं सम्मानित हो सका। वह क्षण मेरे लिए अविस्मरणीय है। इसके बाद भी कुछ सामाजिक संस्थाओं ने मेरे काम को सराहा,मुझे सम्मानित किया,लेकिन पत्रकारिता व लेखन न मैंने पुरस्कारों के लिए शुरु की ,न इसकी चाहत रही। लिहाजा चाटुकारिता से बचा रहा और आगे भी मैं अपने आत्मसम्मान को कायम रख सकूं , यही तमन्ना। सूचना प्रौद्योगिकी के दौर में इस माध्यम से अपनी बात आप तक पहुंचाता रहूं, बस तमन्ना.......। लेखन में सुधार व उत्साहवर्धन के लिए आलोचना,सराहना के रूप में आपका सहयोग अपेक्षित है।
आभार सहित , रवि अवस्थी

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