पॉवर सेक्टर निवेशकों क ी बेरुखी से साल 2013 में सबको चौबीस घंटे बिजली देने का राज्य सरकार का वायदा दिवा स्वप्न बन कर रह गया। करीब 85 हजार करोड़ रुपए के दो दर्जन से अधिक अनुबंधों के निरस्त किए जा चुके हैं। वहीं प्रदेश के पुराने बिजली संयंत्र के रखरखाव में बरती जा रही लापरवाही, उत्पादन व वितरण में सरकारी अक्षमता ,निवेश तथा बिजली खरीदी के नाम पर किए गए ‘खेल’ की सजा आम जनता •ाुगत रही है।
बिजली उत्पादन के लिए बीते पांच सालों में तीन दर्जन से अधिक औद्योगिक कंपनियों ने राज्य सरकार से एक लाख करोड़ रुपए के निवेश का अनुबंध किया। लंबे इंतजार के बाद जब अनुबंधकर्त्ता उद्यमियों ने निवेश में रुचि नहीं दिखाई। नतीजतन, मप्र ट्राइफेक को करीब 84 हजार करोड़ रुपए के प्रस्तावित निवेश वाले दो दर्जन से अधिक करार निरस्त क रने पड़े। इनमें ख्यातिनाम औद्योगिक समूह जिंदल इंडिया थर्मल पॉवर लिमिटेड जैसी फर्म्स •ाी शामिल हैं। इस समूह ने सीधी में करीब 9 हजार करोड़ रुपए का निवेश कर दो हजार मेगावाट बिजली उत्पादन का करार किया था। इसी तरह चैन्नई क ी ओपीजी इनर्जी प्रायवेट लिमिटेड•ाी छिंदवाड़ा में एक हजार मेगावाट बिजली उत्पादन का संयंत्र लगाने को राजी थी,लेकिन ऐन वक्त पर इस कंपनी ने •ाी प्रदेश से मुंह मोड़ लिया। इस तरह की बेरुखी दिखाने वालों में जैन इनर्जी कोलकाता, एसईडब्ल्यु थर्मल पॉवर कार्पोरेशन लिमिटेड हैदराबाद, •ाीलवाड़ा इनर्जी लिमिटेड नोएडा, इंडिया बुल्स पॉवर सर्विसेज गुड़गांव, एमएसपी स्टील एंड पॉवर लिमि. कोलकाता, आधुनिक इस्पात कोलकाता, श्याम डीआरआई पॉवर लि.कोलकाता,अवंति इनर्जी लि. इंदौर ,डायनामिक सायनो इंडस्ट्रीज लि. दुबई आदि •ाी शामिल हैं। जिन 11 कंपनियों की ओर से इस दिशा में काम किया जा रहा है उनके कामकाज की गति अत्याधिक धीमी है।
बिजली उत्पादन के लिए बीते पांच सालों में तीन दर्जन से अधिक औद्योगिक कंपनियों ने राज्य सरकार से एक लाख करोड़ रुपए के निवेश का अनुबंध किया। लंबे इंतजार के बाद जब अनुबंधकर्त्ता उद्यमियों ने निवेश में रुचि नहीं दिखाई। नतीजतन, मप्र ट्राइफेक को करीब 84 हजार करोड़ रुपए के प्रस्तावित निवेश वाले दो दर्जन से अधिक करार निरस्त क रने पड़े। इनमें ख्यातिनाम औद्योगिक समूह जिंदल इंडिया थर्मल पॉवर लिमिटेड जैसी फर्म्स •ाी शामिल हैं। इस समूह ने सीधी में करीब 9 हजार करोड़ रुपए का निवेश कर दो हजार मेगावाट बिजली उत्पादन का करार किया था। इसी तरह चैन्नई क ी ओपीजी इनर्जी प्रायवेट लिमिटेड•ाी छिंदवाड़ा में एक हजार मेगावाट बिजली उत्पादन का संयंत्र लगाने को राजी थी,लेकिन ऐन वक्त पर इस कंपनी ने •ाी प्रदेश से मुंह मोड़ लिया। इस तरह की बेरुखी दिखाने वालों में जैन इनर्जी कोलकाता, एसईडब्ल्यु थर्मल पॉवर कार्पोरेशन लिमिटेड हैदराबाद, •ाीलवाड़ा इनर्जी लिमिटेड नोएडा, इंडिया बुल्स पॉवर सर्विसेज गुड़गांव, एमएसपी स्टील एंड पॉवर लिमि. कोलकाता, आधुनिक इस्पात कोलकाता, श्याम डीआरआई पॉवर लि.कोलकाता,अवंति इनर्जी लि. इंदौर ,डायनामिक सायनो इंडस्ट्रीज लि. दुबई आदि •ाी शामिल हैं। जिन 11 कंपनियों की ओर से इस दिशा में काम किया जा रहा है उनके कामकाज की गति अत्याधिक धीमी है।
इनमें सासन पॉवर लिमिटेड, एम पी पॉवर जेनरेटिंग कंपनी लिमिटेड चितरंगी व खंडवा, एनटीपीसी लिमिटेड, वेलस्पन ऊर्जा, इंद्रप्रस्थ पॉवर जेनरेशन, जिंदल इंडिया थर्मल पॉवर सीधी, शाहपुरा थर्मल पॉवर कंपनी लिमिटेड चुटका,बीएलए पॉवर कंपनी नरसिंहपुर व अदानी पॉवर लिमिटेड छिंदवाडा शामिल हैं। इन स•ाी कंपनियों द्वारा 24 हजार 380 मेगावाट बिजली उत्पादन का लक्ष्य तय किया गया है। इसमें से मुख्यत: सीमेंट उत्पादन के लिए करार करने वाली बी एल ए कंपनी द्वारा नरसिंहपुर में 45-45 मेगावाट क्षमता के दो संयंत्र स्थापित किए गए। इनमें से एक में बीते माह उत्पादन शुरू किया गया। इस संयंत्र से प्रदेश को महज 35 फीसदी बिजली ही मिल सकेगी। इसका लोकार्पण करते हुए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान ने अन्य उपक्रमों में •ाी शीघ्र उत्पादन शुरू होने की उम्मीद जताई,लेकिन कोल लिंकेज मिलने में आ रही दिक्कतों के चलते अगले साल तक निजी क्षेत्र के अन्य संयंत्रों में उत्पादन शुरू हो पाने की सं•ाावनाएं क्षीण हैं। दरअसल,13वी पंचवर्षीय योजना के कोल लिंकेज प्रस्ताव तैयार होने से केंद्र ने मध्यप्रदेश को अतिरिक्त कोयला देने से साफ इंकार कर दिया है। सूत्रों के मुताबिक मुख्यमंत्री श्री चैहान ने गत दिनों प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह को पत्र लिख कर खंडवा में निर्माणाधीन सिंगाजी बिजली संयंत्र फेस- 2 की क्षमता दो गुना बढ़ाने तथा इसके लिए अतिरिक्त कोयले का आवंटन दिए जाने की मांग की थी। बताया जाता है, कि केंद्रीय कोयला मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल ने हाल ही में राज्य शासन को पत्र लिख कर अतिरिक्त कोयला देने में असमथर्ता जताई है। उनका तर्क है कि नई पंचवर्षीय योजना के लिए कोल लिंकेज संबंधी प्रस्ताव तैयार किए जा चुके हैं । ऐसे में मप्र को अतिरिक्त कोयला दे पाना सं•ाव नहीं है। केंद्र के इस रुख से ंिसंगाजी पॉवर संयंत्र ही नहीं अन्य कंपनियों को •ाी झटका लगा है। दरअसल,एनटीपीसी द्वारा गाडरवाडा व छतरपुर के बरेठी में प्रस्तावित दो संयंत्रों के लिए •ाी कोल लिंकेज नहीं मिले है। ऐसे में इन संयंत्रों के लिए काम अ•ाी शुरू ही नहीं हो पाया है। एनटीपीसी द्वारा बुंदेलखंड पैकेज के तहत छतरपुर जिले के बरेठी में 3960 मेगावाट तथा नरसिंहपुर जिले के गाडरवारा में 2640 मेगावाट क्षमता के सुपर थर्मल पॉवर प्लांट लगाने के लिए प्रदेश से करार किया हैं, लेकिन कोल लिंकेज की स्वीकृति नहीं मिलने से इनके कामकाज की गति अत्यंत धीमी है। कमोवेश यही स्थिति अन्य परियोजनाओं की है। इधर सारणी ,अमरकंटक व बिरसिंहपुर संयंत्र •ाी कोयले की कमी से जूझ रहे हैं।सासन में रिलायंस कंपनी के सुपर थर्मल पावर संयंत्र की गति •ाी धीमी है। इस परियोजना के तहत वर्ष 2013 के अंत तक 3960 मेगावाट बिजली उत्पादन का लक्ष्य तय किया गया है। वहीं अदानी पॉवर द्वारा 1320 मेगावाट, चुटका एटोमिक पॉवर से 14सौ मेगावाट, शाहपुरा थर्मल पॉवर से 15 सौ मेगावाट , सीधी थर्मल पॉवर से दो हजार मेगावाट मारा कोल वेस्ड थर्मल पॉवर से दो हजार मेगावाट, बैतूल कोल बेस्ड थर्मल पॉवर से दो हजार मेगावाट बिजली उत्पादन की उम्मीद है,लेकिन इनमें •ाी अधिकतर को कोल लिंकेज नहीं मिलने से इनके करार •ाी अब तक महज कागजी साबित हो रहे हैं। बीते पांच सालों के दौरान पॉवर सेक्टर में निवेश के लिए 42 कंपनियों ने करार किया लेकिन इनमें से दर्जन •ार ही अपने वायदे पर अमल करने को राजी हुई। इसके चलते वर्ष 2013 में सबको बिजली देने का शिवराज सरकार का वायदा खटाई में पडता नजर आ रहा है।
दरअसल, कोयले का यह संकट देशव्यापी है। बीते माह ही देश के 28 से अधिक ताप विद्युत घरों को इसकी कमी से जूझना पड़ा था। कमोवेश यही स्थिति प्रदेश के ताप विद्युत घरों की •ाी है। ज्ञात हो कि सारणी ताप बिजली घर की उत्पादन क्षमता करीब 1142 मेगावाट हैँ इसमें प्रतिदिन 17280 टन कोयले की खपत होती है। इसी तरह अमरकंटक की उत्पादन क्षमता 450 मेगावाट है और यहां रोजाना 6132 टन कोयले की मांग होती है। बिरसिंहपुर ताप बिजली घर की उत्पादन क्षमता 1340 मेगावाट है और इस संयंत्र में रोजाना 17110 टन कोयला चाहिए होता है। ज्ञात हो कि कें द्र सरकार ने अगले पांच साल में एक लाख मेगावाट बिजली उत्पादन बढ़ाने का लक्ष्य तय किया है। योजना आयोग का मानना है कि यदि देश को 9 प्रतिशत की वृद्धि दर हॉसिल करनी है तो ऊर्जा की आपूर्ति में सालाना करीब 6.5 प्रतिशत का इजाफ ा करना लाजिमी होगा। इसी के मददेनजर प्रदेश क ो •ाी बिजली उत्पादन के लिए दो बड़ी परियोजनाएं दी गई। राज्य सरकार लंबे समय तक अव्वल तो इनके लिए •ाूमि मुहैया नहीं करा सकी। इस पर कोयले की कमी व आधी-अधूरी सुविधाएं इन परियोजनाओं के विकास में बाधक बनी हुई है। प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस यह आरोप लगाती रही है कि राज्य सरकार केंद्र से सौगात के रूप में मिली परियोजनाआें व अपेन पुराने संयंत्रों के रखरखाव को लेकर गं•ाीर नहीं है। नतीजतन इनकी उत्पादन क्षमता घट रही है। सारणी हो या अमरकंटक ताप विद्युत गृह इकाई। इनमें आए दिन खराबी आना आम बात है। प्रदेश के मौजूदा स•ाी बिजली संयंत्रों की स्थापित क्षमता करीब 3847 मेगावाट की है। इसमें 915 मेगावाट हाइड्रो व शेष थर्मल पॉवर आधारित है,लेकिन संयंत्रों का रखरखाव •ाली•ाांति नहीं होने व उत्पादन क्षमता घटने से मौजूदा उत्पादन औसतन करीब तीन हजार मेगावाट है,जबकि प्रदेश में बिजली की मांग करीब पांच हजार मेगावाट है। इस तरह ढाई से तीन हजार मेगावाट बिजली की आपूर्ति के लिए सरकार दूसरे संसाधनों पर आश्रित है।
गैर पारंपरिक ऊर्जा •ाी दिखावा
वैकल्पिक व्यवस्था के तौर पर अन्य राज्यों से महंगी बिजली खरीदने पर तो जोर दिया गया लेकिन गैर पारंपरिक तरीके से बिजली उत्पादन को बढावा देने में दिलचस्पी नहीं दिखाई गई। ज्ञात हो कि अपारंपरिक ऊर्जा उत्पादन के लिए प्रदेश में पृथक से एक निगम स्थापित है। इसमें अं•िायंताओं की खासी फौज है ,लेकिन कामकाज का अ•ााव है। खाली बैठने से इनकी कार्य क्षमताएं प्र•ाावित हो रही हंै। प्रदेश मे ंअपारंरिक ऊर्जा स्त्रोतों से बिजली उत्पादन की अनेक सं•ाावनाएं हैं। पवन ऊर्जा से यहां 12 सौ मेगावाट, बायोमॉस से 1040 मेगावाट,लघु जल विद्युत परियोजनाओं से 410 मेगावाट व सूर्य से 20 मेगावाट प्रति वर्ग किमी बिजली का उत्पादन का लक्ष्य तय है। सूत्रों के मुताबिक पवन ऊर्जा से ही देवास में 250 मेगावाट, बड़वानी व बैतूल मे 250-250 मेगावाट, शाजापुर में 150 मेगावाट तथा धार, मंदसौर व नीमच में 50-50 मेगावाट बिजली उत्पादन किया जा सकता है,लेकिन इनमें से केवल देवास व रतलाम को छोड़ अन्य कही अब तक पवन ऊर्जा परियोजनाएं धरातल पर नहीं आ सकी। दो साल पहले नई ऊर्जा नीति आने के बाद करीब दर्जन •ार कंपनियों ने हवा से बिजली तैयार करने में रुचि दिखाई है। इनमें एनरॉन,एमपी विंड फार्म्स, सुजलॉन,गॉजेट फायनेंसियल, एनईपीसी/सोदर्न विंड फार्म्स व एस ई इनर्जी पार्क आदि शामिल हैं। इनके संयंत्रों की उत्पादन क्षमता 169 मेगावाट होगी। बताया जाता है ,कि संबंधित कंपनियों को अपने प्रोजेक्ट की प्रशासनिक स्वीकृतियां व राज्य शासन द्वारा तय सुविधाएं पाने में एड़ी-चोटी का जोर लगाना पड़ रहा है। प्रशासनिक तंत्र से समुचित सहयोग नहीं मिलने से इनके प्रोजेक्ट की गति अत्यंत धीमी है। वहीं दूसरी ओर राज्य शासन उम्मीद लगाए हुए है कि आने वाले तीन सालों में पवन ऊर्जा से करीब 4 सौ मेगावाट बिजली मिलने लगेगी। वहीं बायोमॉस व सोलर इनर्जी से •ाी मदद मिलेगी। लेकिन बायोमॉस व अन्य संसाधनों से बिजली उत्पादन के हालात •ाी पवन ऊर्जा की तरह हैं। मप्र ट्राइफेक से मिली जानकारी के अनुसार बायोमॉस से फिलहाल 25 मेगावाट बिजली का ही उत्पादन हो पा रहा है। इसमें बालाघाट में रामनिक पॉवर द्वारा 6 मेगावाट, देवास में एच आर जॉन्सन द्वारा 3.5 मेगावाट, बडवानी में नमर्दा शुगर द्वारा 3 मेगावाट, गुना में दीपक स्पिनर्स 3 मेगावाट, धार में खेतान केमीकल्स 2.1 मेगावाट बजरंग एग्रो 1.2 मेगावाट व लॉयड इन्सूलेशन 0.6 मेगावाट , जावरा में अंबिका सालवेक्स 1.2 मेगावाट,रायसेन में एपीआई एग्रो 1.05 मेगावाट,नरसिंहपुर में जावंधाई शुगर 0.75 मेगावाट,रतलाम में कश्यप स्वीटनर 0.44 मेगावाट तथा •ोपाल मे सत्या बिस्कुट,कुंदन नमकीन व आदित्य फूड द्वारा क्रमश: 0.3 से 1.6 मेगावाट बिजली का उत्पादन किया जा रहा है।
नहीं बनी कचरे से बिजली
महानगरों में निकलने वाले कचरे से बिजली बनाने के लिए एमएस डब्ल्यु प्रोजेक्ट अंतर्गत राज्य शासन ने पांच नगर निगम ग्वालियर, इंदौर, •ोपाल, जबलपुर व रीवा का चयन किया था। इससे प्रत्येक शहरों में 4 से 6 मेगावाट बिजली उत्पादन की उम्मीद जताई गई थी,लेकिन एक •ाी निगम अब तक इस दिशा में कोई उत्साहजनक परिणाम नहीं दे सका। •ोपाल नगर निगम को इस कार्य के लिए अब तक निवेशक का इंतजार है जबकि जबलपुर में अयुर कंपनी 50 करोड रुपए का निवेश करने के लिए राजी हुई है। इस प्रोजेक्ट के तहत प्लास्टिक को जला कर गैस उत्सर्जित की जाती है,लेकिन यह तकनीक महंगी होने से कचरे से बिजली उत्पादन करना फिलहाल दूर की कोडी है। वहीं छोटी जल विद्युत परियोजनाओं के लिए प्रदेश में 67 स्थानों का चयन किया गया। इसमें सोन,नमर्दा,तापी व गोदावरी नदियों से ही करीब पौने दो लाख किलोवाट बिजली उत्पादन की क्षमता आंकी गई है। इसी तरह बालाघाट, बैतूल, छतरपुर,छिंदवाडा, दतिया, गुना, ग्वालियर, झाबुआ,खंडवा, खरगौन, मंडला, मुरैना,रीवा,सतना,सागर ,सीहोर, सिवनी,शहडोल,शिवपुरी,सीधी व विदिशा में •ाी 410 मेगावाट बिजली उत्पादन किया जा सकता है,लेकिन पवन उर्जा व कचरे से बिजली बनाने की योजना की तरह मिनी हाईडो परियोजनाएं •ाी परवान नहीं चढ सकीं। सौर उर्जा के नाम पर करोडो रुपए व्यय करने के बाद प्रदेश इस दिशा में अब तक कोई उल्लेखनीय सफलता अर्जित नहीं कर सका।
सोलर पार्क नहीं ले सका आकार
सौर उर्जा के लिहाज से मध्यप्रदेश की जलवायु सर्वोत्तम मानी गई है। साल में करीब तीन सौ दिन सूर्य के तेवर तीखे होते हैं। इनसे उच्च किस्म की रेडिएशन प्राप्त होती हैं। कहने को सौर इनर्जी के क्षेत्र में मप्र देश में अव्वल है ,लेकिन यह •ाी बिडंबना है कि करीब एक दशक तक( वर्ष 2000-2009) तक सरकार सौर ऊर्जा की संशोधित नीति ही नहीं बना सकी। दो साल पहले तय नीति के तहत राजगढ़ जिले के गणेशपुरा में सोलर पार्क बनाने का निर्णय लिया गया। करीब दो सौ करोड़ रुपए की लागत से इसे तीन चरणों में विकसित किया जाना है। इसमें अगले साल तक 50 मेगावाट बिजली पैदा करने का लक्ष्य तय किया गया था। सोलर पार्क को गैर पारंपरिक ऊर्जा हब के रूप में विकसित किए जाने की •ाी योजना है। पार्क में 220 किलोवाट क्षमता की सब स्टेशन स्थापित किया जाना •ाी प्रस्तावित है लेकिन इस परियोजना का कामकाज मंथर गति से चलने के कारण 2013 में सोलर पार्क से 50 मेगावाट बिजली मिलने के आसार बहुत कम हैं। सौर ऊर्जा से स्पेशल एरिया डव्लपमेंट कार्यक्रम के तहत राज•ावन, ऐतिहासिक महत्व के किले, स्मारक,मं़त्रालय ,विधान स•ाा •ावन, को जगमगाने की योजना है। इस पर करीब साढे पांच करोड रुपए व्यय होगे। इसी तरह लग•ाग 13 करोड रुपए की लागत से प्रदेश के स•ाी 68 आदिवासी विद्यालय व छात्रावास, नक्सल प्र•ाावित जिलोे के थानों,पुलिस चैकियों 28 शासकीय सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों को •ाी सौर उर्जा से रोशन किया जाना है।
अटके प्रोजेक्ट
एक ओर जहां नई परियोजनाएं वि•िान्न कारणों से परवान नहीं चढ़ पा रही हैं वहीं पुराने प्रोजेक्ट •ाी लंबे समय से अटके हुए हैं। मसलन, बीते 26 सालों से निर्माणाधीन महेश्वर बिजली परियोजना अब तक अधर में है। चार सौ मेगावाट बिजली उत्पादन क्षमता वाला यह संयंत्र अब तक शुरु नहीं हो सका। राज्य की एक अन्य जल विद्युत परियोजना टोंस हाइडल पावर में •ाी समय-समय पर बिजली उत्पादन प्र•ाावित होता रहा है। गत जनवरी में ही करीब 14 दिन तक यहां उत्पादन ठप रहा। ज्ञात हो कि टोंस परियोजना की उत्पादन क्षमता 425 मेगावाट है। इसकी इकाईयों में बिजली उत्पादन ठप होने पर बाणसागर देवलोन, बाणसागर सिलपारा, व झिन्ना प्रोजेक्ट की इकाईयां •ाी प्र•ाावित होती है। इन इकाईयों की उत्पादन क्षमता क्रमश: साठ,तीस व बीस मेगावाट है। सूत्रों का दावा है कि बीते सात-आठ सालों के दौरान विद्युत उत्पादन दर में 12 प्रतिशत तक की कमी आई है। कोयला व तेल की खपत बढ़ने से उत्पादन लागत में इजाफा हुआ है। आधी-अधूरी बिजली परियोजनाओं व पुराने संयंत्रों में समय-समय पर बिजली उत्पादन में बाधाएं पैदा होने से राज्य बिजली संकट से उबर नहीं पाया है। प्रदेश के अधिकांश हिस्सों में •ाी अ•ाी •ाी अघोषित कटौती बदस्तूर जारी है। दूसरी ओर बिना बिजली के बिल थमाए जाने से लोगो में आक्रोश है। हरदा जिले के छैगांव माखन विकासख्ांड का ग्राम दुगवाड़ा इसकी मिसाल है। बताया जाता है कि करीब दो सौ परिवार वाले आदिवासी बहुल इस गांव मं बीते एक दशक से बिजली की आपूर्ति नहीं हो रही है,लेकिन ग्रामीणों को बिजली के बिल प्रति माह दिए जा रहे हैं। दरअसल ,तत्कालीन कांग्रेस सरकार में एक बत्ती कनेक्शन योजना अंतर्गत इस गांव में कनेक्शन दिए गए थे। बाद में बिजली संकट और बकाया राशि के चलते गांव की आपूर्ति बंद कर दी गई ,लेकिन बिल आना बंद नहीं हुए।
हम होंगे कामयाब एक दिन----
इधर राज्य सरकार का दावा है कि प्रदेश में बिजली की व्यवस्था में निरंतर सुधार आ रहा है। वर्ष 2003में प्रदेश की विद्युत उत्पादन क्षमता 2990 मेगावॉट के मुकाबले वर्तमान में 6152 मेगावॉट हो गई है। इसी कड़ी में यह कहा जा सकता है कि मध्यप्रदेश वर्ष 2014 तक बिजली के मामले में देश में पॉवर हब के रूप में पहचाना जाएगा। आने वाले वर्षों में बिजली मामले में ‘हम’ न केवल आत्मनिर्•ार होंगे बल्कि अन्य राज्यों को •ाी बिजली बेची जा सकेगी। राजीव गांधी विद्युतीकरण योजना के अंतर्गत 25 सौ करोड़ रुपए की लागत से स•ाी जिलों की योजनाएं स्वीकृति के लिए केंद्र को •ोजी गई हैं। इनमें से 34 जिलों की 32 योजनाओं को स्वीकृति प्राप्त हो चुकी है। राज्य शासन की महत्वाकांक्षी फीडर सेपरेशन योजना से ग्रामीण क्षेत्रों के घरेलु उप•ोक्ताओं व सिंचाई के लिए अलग-अलग फीडर से बिजली की आपूर्ति होने से •ाी बिद्युत हानि को रोका जा सकेगा। यह कार्य अगले साल तक पूरा हो जाने के आसार हैं। इसके लिए 6,286 फीडरों को अलग करने व आवश्यक अधोसंरचना विकसित करने का काम तेजी से किया जा रहा है। फीडर सेपरेशन से गांव के घरेलु उप•ोक्ताओं को 24 घंटे व सिंचाई के लिए कम से कम 8 घंटे बिजली मिलने लगेगी।
दरअसल, कोयले का यह संकट देशव्यापी है। बीते माह ही देश के 28 से अधिक ताप विद्युत घरों को इसकी कमी से जूझना पड़ा था। कमोवेश यही स्थिति प्रदेश के ताप विद्युत घरों की •ाी है। ज्ञात हो कि सारणी ताप बिजली घर की उत्पादन क्षमता करीब 1142 मेगावाट हैँ इसमें प्रतिदिन 17280 टन कोयले की खपत होती है। इसी तरह अमरकंटक की उत्पादन क्षमता 450 मेगावाट है और यहां रोजाना 6132 टन कोयले की मांग होती है। बिरसिंहपुर ताप बिजली घर की उत्पादन क्षमता 1340 मेगावाट है और इस संयंत्र में रोजाना 17110 टन कोयला चाहिए होता है। ज्ञात हो कि कें द्र सरकार ने अगले पांच साल में एक लाख मेगावाट बिजली उत्पादन बढ़ाने का लक्ष्य तय किया है। योजना आयोग का मानना है कि यदि देश को 9 प्रतिशत की वृद्धि दर हॉसिल करनी है तो ऊर्जा की आपूर्ति में सालाना करीब 6.5 प्रतिशत का इजाफ ा करना लाजिमी होगा। इसी के मददेनजर प्रदेश क ो •ाी बिजली उत्पादन के लिए दो बड़ी परियोजनाएं दी गई। राज्य सरकार लंबे समय तक अव्वल तो इनके लिए •ाूमि मुहैया नहीं करा सकी। इस पर कोयले की कमी व आधी-अधूरी सुविधाएं इन परियोजनाओं के विकास में बाधक बनी हुई है। प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस यह आरोप लगाती रही है कि राज्य सरकार केंद्र से सौगात के रूप में मिली परियोजनाआें व अपेन पुराने संयंत्रों के रखरखाव को लेकर गं•ाीर नहीं है। नतीजतन इनकी उत्पादन क्षमता घट रही है। सारणी हो या अमरकंटक ताप विद्युत गृह इकाई। इनमें आए दिन खराबी आना आम बात है। प्रदेश के मौजूदा स•ाी बिजली संयंत्रों की स्थापित क्षमता करीब 3847 मेगावाट की है। इसमें 915 मेगावाट हाइड्रो व शेष थर्मल पॉवर आधारित है,लेकिन संयंत्रों का रखरखाव •ाली•ाांति नहीं होने व उत्पादन क्षमता घटने से मौजूदा उत्पादन औसतन करीब तीन हजार मेगावाट है,जबकि प्रदेश में बिजली की मांग करीब पांच हजार मेगावाट है। इस तरह ढाई से तीन हजार मेगावाट बिजली की आपूर्ति के लिए सरकार दूसरे संसाधनों पर आश्रित है।
गैर पारंपरिक ऊर्जा •ाी दिखावा
वैकल्पिक व्यवस्था के तौर पर अन्य राज्यों से महंगी बिजली खरीदने पर तो जोर दिया गया लेकिन गैर पारंपरिक तरीके से बिजली उत्पादन को बढावा देने में दिलचस्पी नहीं दिखाई गई। ज्ञात हो कि अपारंपरिक ऊर्जा उत्पादन के लिए प्रदेश में पृथक से एक निगम स्थापित है। इसमें अं•िायंताओं की खासी फौज है ,लेकिन कामकाज का अ•ााव है। खाली बैठने से इनकी कार्य क्षमताएं प्र•ाावित हो रही हंै। प्रदेश मे ंअपारंरिक ऊर्जा स्त्रोतों से बिजली उत्पादन की अनेक सं•ाावनाएं हैं। पवन ऊर्जा से यहां 12 सौ मेगावाट, बायोमॉस से 1040 मेगावाट,लघु जल विद्युत परियोजनाओं से 410 मेगावाट व सूर्य से 20 मेगावाट प्रति वर्ग किमी बिजली का उत्पादन का लक्ष्य तय है। सूत्रों के मुताबिक पवन ऊर्जा से ही देवास में 250 मेगावाट, बड़वानी व बैतूल मे 250-250 मेगावाट, शाजापुर में 150 मेगावाट तथा धार, मंदसौर व नीमच में 50-50 मेगावाट बिजली उत्पादन किया जा सकता है,लेकिन इनमें से केवल देवास व रतलाम को छोड़ अन्य कही अब तक पवन ऊर्जा परियोजनाएं धरातल पर नहीं आ सकी। दो साल पहले नई ऊर्जा नीति आने के बाद करीब दर्जन •ार कंपनियों ने हवा से बिजली तैयार करने में रुचि दिखाई है। इनमें एनरॉन,एमपी विंड फार्म्स, सुजलॉन,गॉजेट फायनेंसियल, एनईपीसी/सोदर्न विंड फार्म्स व एस ई इनर्जी पार्क आदि शामिल हैं। इनके संयंत्रों की उत्पादन क्षमता 169 मेगावाट होगी। बताया जाता है ,कि संबंधित कंपनियों को अपने प्रोजेक्ट की प्रशासनिक स्वीकृतियां व राज्य शासन द्वारा तय सुविधाएं पाने में एड़ी-चोटी का जोर लगाना पड़ रहा है। प्रशासनिक तंत्र से समुचित सहयोग नहीं मिलने से इनके प्रोजेक्ट की गति अत्यंत धीमी है। वहीं दूसरी ओर राज्य शासन उम्मीद लगाए हुए है कि आने वाले तीन सालों में पवन ऊर्जा से करीब 4 सौ मेगावाट बिजली मिलने लगेगी। वहीं बायोमॉस व सोलर इनर्जी से •ाी मदद मिलेगी। लेकिन बायोमॉस व अन्य संसाधनों से बिजली उत्पादन के हालात •ाी पवन ऊर्जा की तरह हैं। मप्र ट्राइफेक से मिली जानकारी के अनुसार बायोमॉस से फिलहाल 25 मेगावाट बिजली का ही उत्पादन हो पा रहा है। इसमें बालाघाट में रामनिक पॉवर द्वारा 6 मेगावाट, देवास में एच आर जॉन्सन द्वारा 3.5 मेगावाट, बडवानी में नमर्दा शुगर द्वारा 3 मेगावाट, गुना में दीपक स्पिनर्स 3 मेगावाट, धार में खेतान केमीकल्स 2.1 मेगावाट बजरंग एग्रो 1.2 मेगावाट व लॉयड इन्सूलेशन 0.6 मेगावाट , जावरा में अंबिका सालवेक्स 1.2 मेगावाट,रायसेन में एपीआई एग्रो 1.05 मेगावाट,नरसिंहपुर में जावंधाई शुगर 0.75 मेगावाट,रतलाम में कश्यप स्वीटनर 0.44 मेगावाट तथा •ोपाल मे सत्या बिस्कुट,कुंदन नमकीन व आदित्य फूड द्वारा क्रमश: 0.3 से 1.6 मेगावाट बिजली का उत्पादन किया जा रहा है।
नहीं बनी कचरे से बिजली
महानगरों में निकलने वाले कचरे से बिजली बनाने के लिए एमएस डब्ल्यु प्रोजेक्ट अंतर्गत राज्य शासन ने पांच नगर निगम ग्वालियर, इंदौर, •ोपाल, जबलपुर व रीवा का चयन किया था। इससे प्रत्येक शहरों में 4 से 6 मेगावाट बिजली उत्पादन की उम्मीद जताई गई थी,लेकिन एक •ाी निगम अब तक इस दिशा में कोई उत्साहजनक परिणाम नहीं दे सका। •ोपाल नगर निगम को इस कार्य के लिए अब तक निवेशक का इंतजार है जबकि जबलपुर में अयुर कंपनी 50 करोड रुपए का निवेश करने के लिए राजी हुई है। इस प्रोजेक्ट के तहत प्लास्टिक को जला कर गैस उत्सर्जित की जाती है,लेकिन यह तकनीक महंगी होने से कचरे से बिजली उत्पादन करना फिलहाल दूर की कोडी है। वहीं छोटी जल विद्युत परियोजनाओं के लिए प्रदेश में 67 स्थानों का चयन किया गया। इसमें सोन,नमर्दा,तापी व गोदावरी नदियों से ही करीब पौने दो लाख किलोवाट बिजली उत्पादन की क्षमता आंकी गई है। इसी तरह बालाघाट, बैतूल, छतरपुर,छिंदवाडा, दतिया, गुना, ग्वालियर, झाबुआ,खंडवा, खरगौन, मंडला, मुरैना,रीवा,सतना,सागर ,सीहोर, सिवनी,शहडोल,शिवपुरी,सीधी व विदिशा में •ाी 410 मेगावाट बिजली उत्पादन किया जा सकता है,लेकिन पवन उर्जा व कचरे से बिजली बनाने की योजना की तरह मिनी हाईडो परियोजनाएं •ाी परवान नहीं चढ सकीं। सौर उर्जा के नाम पर करोडो रुपए व्यय करने के बाद प्रदेश इस दिशा में अब तक कोई उल्लेखनीय सफलता अर्जित नहीं कर सका।
सोलर पार्क नहीं ले सका आकार
सौर उर्जा के लिहाज से मध्यप्रदेश की जलवायु सर्वोत्तम मानी गई है। साल में करीब तीन सौ दिन सूर्य के तेवर तीखे होते हैं। इनसे उच्च किस्म की रेडिएशन प्राप्त होती हैं। कहने को सौर इनर्जी के क्षेत्र में मप्र देश में अव्वल है ,लेकिन यह •ाी बिडंबना है कि करीब एक दशक तक( वर्ष 2000-2009) तक सरकार सौर ऊर्जा की संशोधित नीति ही नहीं बना सकी। दो साल पहले तय नीति के तहत राजगढ़ जिले के गणेशपुरा में सोलर पार्क बनाने का निर्णय लिया गया। करीब दो सौ करोड़ रुपए की लागत से इसे तीन चरणों में विकसित किया जाना है। इसमें अगले साल तक 50 मेगावाट बिजली पैदा करने का लक्ष्य तय किया गया था। सोलर पार्क को गैर पारंपरिक ऊर्जा हब के रूप में विकसित किए जाने की •ाी योजना है। पार्क में 220 किलोवाट क्षमता की सब स्टेशन स्थापित किया जाना •ाी प्रस्तावित है लेकिन इस परियोजना का कामकाज मंथर गति से चलने के कारण 2013 में सोलर पार्क से 50 मेगावाट बिजली मिलने के आसार बहुत कम हैं। सौर ऊर्जा से स्पेशल एरिया डव्लपमेंट कार्यक्रम के तहत राज•ावन, ऐतिहासिक महत्व के किले, स्मारक,मं़त्रालय ,विधान स•ाा •ावन, को जगमगाने की योजना है। इस पर करीब साढे पांच करोड रुपए व्यय होगे। इसी तरह लग•ाग 13 करोड रुपए की लागत से प्रदेश के स•ाी 68 आदिवासी विद्यालय व छात्रावास, नक्सल प्र•ाावित जिलोे के थानों,पुलिस चैकियों 28 शासकीय सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों को •ाी सौर उर्जा से रोशन किया जाना है।
अटके प्रोजेक्ट
एक ओर जहां नई परियोजनाएं वि•िान्न कारणों से परवान नहीं चढ़ पा रही हैं वहीं पुराने प्रोजेक्ट •ाी लंबे समय से अटके हुए हैं। मसलन, बीते 26 सालों से निर्माणाधीन महेश्वर बिजली परियोजना अब तक अधर में है। चार सौ मेगावाट बिजली उत्पादन क्षमता वाला यह संयंत्र अब तक शुरु नहीं हो सका। राज्य की एक अन्य जल विद्युत परियोजना टोंस हाइडल पावर में •ाी समय-समय पर बिजली उत्पादन प्र•ाावित होता रहा है। गत जनवरी में ही करीब 14 दिन तक यहां उत्पादन ठप रहा। ज्ञात हो कि टोंस परियोजना की उत्पादन क्षमता 425 मेगावाट है। इसकी इकाईयों में बिजली उत्पादन ठप होने पर बाणसागर देवलोन, बाणसागर सिलपारा, व झिन्ना प्रोजेक्ट की इकाईयां •ाी प्र•ाावित होती है। इन इकाईयों की उत्पादन क्षमता क्रमश: साठ,तीस व बीस मेगावाट है। सूत्रों का दावा है कि बीते सात-आठ सालों के दौरान विद्युत उत्पादन दर में 12 प्रतिशत तक की कमी आई है। कोयला व तेल की खपत बढ़ने से उत्पादन लागत में इजाफा हुआ है। आधी-अधूरी बिजली परियोजनाओं व पुराने संयंत्रों में समय-समय पर बिजली उत्पादन में बाधाएं पैदा होने से राज्य बिजली संकट से उबर नहीं पाया है। प्रदेश के अधिकांश हिस्सों में •ाी अ•ाी •ाी अघोषित कटौती बदस्तूर जारी है। दूसरी ओर बिना बिजली के बिल थमाए जाने से लोगो में आक्रोश है। हरदा जिले के छैगांव माखन विकासख्ांड का ग्राम दुगवाड़ा इसकी मिसाल है। बताया जाता है कि करीब दो सौ परिवार वाले आदिवासी बहुल इस गांव मं बीते एक दशक से बिजली की आपूर्ति नहीं हो रही है,लेकिन ग्रामीणों को बिजली के बिल प्रति माह दिए जा रहे हैं। दरअसल ,तत्कालीन कांग्रेस सरकार में एक बत्ती कनेक्शन योजना अंतर्गत इस गांव में कनेक्शन दिए गए थे। बाद में बिजली संकट और बकाया राशि के चलते गांव की आपूर्ति बंद कर दी गई ,लेकिन बिल आना बंद नहीं हुए।
हम होंगे कामयाब एक दिन----
इधर राज्य सरकार का दावा है कि प्रदेश में बिजली की व्यवस्था में निरंतर सुधार आ रहा है। वर्ष 2003में प्रदेश की विद्युत उत्पादन क्षमता 2990 मेगावॉट के मुकाबले वर्तमान में 6152 मेगावॉट हो गई है। इसी कड़ी में यह कहा जा सकता है कि मध्यप्रदेश वर्ष 2014 तक बिजली के मामले में देश में पॉवर हब के रूप में पहचाना जाएगा। आने वाले वर्षों में बिजली मामले में ‘हम’ न केवल आत्मनिर्•ार होंगे बल्कि अन्य राज्यों को •ाी बिजली बेची जा सकेगी। राजीव गांधी विद्युतीकरण योजना के अंतर्गत 25 सौ करोड़ रुपए की लागत से स•ाी जिलों की योजनाएं स्वीकृति के लिए केंद्र को •ोजी गई हैं। इनमें से 34 जिलों की 32 योजनाओं को स्वीकृति प्राप्त हो चुकी है। राज्य शासन की महत्वाकांक्षी फीडर सेपरेशन योजना से ग्रामीण क्षेत्रों के घरेलु उप•ोक्ताओं व सिंचाई के लिए अलग-अलग फीडर से बिजली की आपूर्ति होने से •ाी बिद्युत हानि को रोका जा सकेगा। यह कार्य अगले साल तक पूरा हो जाने के आसार हैं। इसके लिए 6,286 फीडरों को अलग करने व आवश्यक अधोसंरचना विकसित करने का काम तेजी से किया जा रहा है। फीडर सेपरेशन से गांव के घरेलु उप•ोक्ताओं को 24 घंटे व सिंचाई के लिए कम से कम 8 घंटे बिजली मिलने लगेगी।
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