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सोमवार, 16 जुलाई 2012

लघु उद्योगों का दर्द

प्रदेश में औद्योगिक निवेश बढ़ाने जमीं-आसमां एक कर रही राज्य सरकार ने  मौजूदा उद्योगों विशेष कर लघु उद्योगों को उनके हाल पर छोड़ दिया है। नतीजतन,अधिकतर लघु औद्योगिक इकाईयां बीमारू उद्योग की श्रेणी में आ गई हैं।आलम यह है कि इन्हें पुर्नजीवित करवाने राज्य सरकार के पास कोई योजना नहीं है। इसका आंकलन इसी बात से किया जा सकता है कि बीते साल के बजट में इस मद के लिए महज दस हजार रुपए क ी व्यवस्था की गई और इसमें •ाी एक रुपए खर्च नहीं किया गया। सरकार अब लघु उद्योगों के लिए अलग वि•ााग बनाने की बात कर रही है। कमोवेश यही स्थिति राज्य के लिए स्वीकृत विशेष आर्थिक प्रक्षेत्रों (एसईजेड) की है। एक ओर औद्योगिक निवेश को बढ़ाने का दावा हो रहा है वहीं अधोसंरचना विकास के नाम पर कामकाज शून्य है। आलम यह कि  इंदौर में एक दशक पहले तैयार हुए  क्रिस्टल आईटी पार्क (खंडवा रोड) का स्पेशल इकोनामिक जोन का दर्जा छिनने की कगार पर है। वहीं इंदौर में ही आईटी क्षेत्र के लिए निजी कंपनी को मिले जोन की स्वीकृति •ाी •ाारत सरकार ने रदद कर दी है।

 बीते पांच सालों में औधोगिक निवेश के नाम पर शासन स्तर पर अ•ाूतपूर्व कवायद हुई। यह अलग बात है कि अपेक्षा के अनुरूप परिणाम अब तक नहीं मिल सके,लेकिन नए उद्योगों को लाने की होड़ में प्रदेश के मौजूदा उद्योगों को बिसरा दिया गया।  राज्य के आधा दर्जन से अधिक औद्योगिक क्षेत्र अतिक्रमण व समस्याओं का केंद्र बन कर रह गए। यहां तक कि राजधानी के एक मुहाने पर बने गोविंदपुरा औद्योगिक केंद्र •ाी अतिक्रमण की चपेट में आने से नहीं बच सका। उखड़ी सड़कें,बिजली की आए दिन की आंख मिचौली इस पर अतिक्रमण ने उद्यमियों के लिए काम करना मुश्किल कर दिया। इस बात का अंदाजा इसी बात से लगाया  जा सकता है कि अतिक्रमण हटाने के लिए स्थानीय उद्योगपतियों को बीते माह स्वयं ही आगे आना पड़ा,हालांकि इस गैर कानूनी कृत्य के लिए उनके खिलाफ बलवा का अपराधिक प्रकरण •ाी दर्ज हुआ,लेकिन प्रशासन ने अतिक्रमण हटाने के लिए अपने स्तर पर कोई पहल नहीं की। औद्योगिक क्षेत्र के प्रति प्रशासनिक उदासीनता के चलते गोविंदपुरा एवं समीपस्थ मंडीदीप औद्योगिक क्षेत्र में ही शताधिक इकाईयां बंद हो गर्इं। वहीं अनेक इकाईयां या तो बंद होने की कगार पर हैं अथवा किसी तरह चल रहीं है। गोविंदपुरा में ही पांच दर्जन से अधिक इकाईयों के संचालकों ने अपने •ाूखंड व फै क्ट्री •ावनों को बेंच दिया या उनमें फिटनेस सेंटर व दीगर कारोबार शुरू कर दिया गया। यह कृत्य •ाी अतिक्रमण की श्रेणी में आता है । इस तथ्य को सरकार ने सदन में स्वीकार •ाी किया लेकिन नगरीय प्रशासन एवं विकास मंत्री यह बता पाने की स्थिति में नहीं कि अतिक्रमण कब तक हटा दिया जाएगा। बहरहाल, लघु औद्यागिक इकाईयों के विकास के  लिए बनाया गया लघु उद्योग निगम •ाी इन इकाईयों से अपना पल्ला झाड़ लिया है। इन इकाईयों को सुविधाएं मुहैया कराने की बजाए निगम का ध्यान खरीदी,निर्माण व दीगर कारोबार पर अधिक है। सामग्रियों की खरीदी के लिए जारी निविदाओं में निगम कमीशन के फेर में कुछ इस तरह की शर्ते तय करता है कि राज्य की लघु इकाईयां उन्हें पूरा करने की स्थिति में नहीं होती और वे प्रतिस्पर्धा से बाहर हो जाती है। इसका ला•ा अन्य प्रांतों क ी बड़ी फर्म्स व इकाईयों को मिलता है। विशेषकर यह गड़बड़ी सूचना प्रौद्यागिकी व इलेक्ट्रानिक वस्तुओं की खरीदी के मामले में अधिक है । इसी तरह कच्चे माल की आपूर्ति में •ाी कमीशन का खेल जारी है। निगम के पास इस बात की निगरानी की कोई व्यवस्था नहीं कि जो कच्चा माल उसने उद्यमियों को दिया उससे संबंधित माल का उत्पादन किया •ाी गया अथवा नहीं। इसका फायदा उठा कर अनेक  उद्यमी केवल दलाल की •ाूमिका अदा कर रहे हैं। वे निगम से रियायती दर पर माल लेकर इसे खुले बाजार में बेच रहे हैं। नतीजतन, उद्यमियों को रियायती दर पर कच्चा  माल  मुहैया कराने संबंधी नीति के उददेश्यों की पूर्ति ही नहीं हो रही है। रायसेन जिले के दूसरे प्रस्तावित औद्योगिक क्षेत्र को विकसित करने का काम •ाी अधर में है। यह क्षेत्र औबेदुल्लागंज विकासख्ांड अंतर्गत ग्राम तामोट में विकसित किया जाना था। बताया जाता है कि इस क्षेत्र में अपनी औद्योगिक इकाई स्थापित करने के लिए मेसर्स हीरो मोटर्स ग्रुप ने राज्य शासन के साथ पांच सौ करोड़ रुपए निवेश का अनुबंध •ाी किया था,लेकिन उद्योग वि•ााग की ओर से समुचित सहयोग नहीं मिलने पर कंपनी ने अपना प्रस्ताव वापस ले लिया। बाद में ट्राईफेक ने •ाी यह अनुबंध निरस्त कर दिया।
छिन सकता है स्पेशल सेज का दर्जा
 कें द्र सरकार की उदार औद्योगिक नीतियों के चलते प्रदेश को बीस विशेष आर्थिक प्रक्षेत्र की सौगाता कालांतर में मिली,लेकिन प्रशासनिक लापरवाही के चलते राज्य में एक •ाी सेज अब तक पूरी तरह आकार नहीं ले सका । यहां तक कि एक  दशक पहले इंदौर में बनाए गए क्रिस्टल पार्क से स्पेशल इकानोमिक दर्जा छिनना तय माना जा रहा है। दरअसल बीते साल 21 जून को विशेष आर्थिक प्रक्षेत्र के बोर्ड आॅप अप्रूवल  ने एक साल की मोहलत देते हुए पार्क को पूरा करने व इसे शुरू करने की शर्त रखी थी। अधूरे कार्यों को पूरा करने क ी जिम्मेदारी गत दिसंबर में  मप्र सड़क विकास निगम को सौंपी गई।  करीब 45 करोड़ रुपए की लागत वाली इस कार्ययोजना के तहत बीते माह के पहले सप्ताह तक करीब 80 फीसदी काम पूरा कर लिया गया। इसके बाद निगम को  ख्याल आया कि यहां 12 लिफ्ट, सेंट्रल एसी और पॉवर बैकअप •ाी लगाना है। इसके लिए पुन: 11 मई को टेंडर जारी किए गए । इसका कार्यादेश जारी होने की प्रक्रिया में है। जानकारों का मानना है कि पार्क में लिफ्ट, एसी और जेनरेटर लगाने व अन्य कार्यों का पूरा करने में कम से कम छह माह और लग सकते हैं। इस स्थिति में पार्क का  विशेष दर्जा कायम रखने के लिए राज्य शासन को केंद्र की मिन्नत करनी होगी। केंद्र सरकार चाहे तो दो बार की लापरवाही के कारण एसईजेड एक्सटेंशन नहीं करे। इस गड़बड़ी के चलते पार्क में औद्योगिक इकाईयां शुरू करने के लिए संबंंधित कंपनियों को अ•ाी और प्रतीक्षा करनी होगी। इसका खामियाजा यह होगा कि  बिना एसईजेड के टैक्स संबंधी छूट नहीं मिलेगी इससे आईटी कंपनियां यहां से मुंह मोड़ेंगी। दर्जा छिनने के बाद केंद्र सरकार के पास तीसरी बार एसईजेड के लिए जाना होगा। यदि एसईजेड नहीं बढ़ा तो 100 करोड़ की लागत से बनी यह इमारत यूं ही खड़ी रहेगी। इन्फोसिस ने •ाी आॅफिस के लिए जगह मांगी थी। इम्पीटस, इंटेलीकस और क्लियर ट्रायल आईटी कंपनियों के आईटी प्रोजेक्ट खटाई में पड़ सकते हैं। इधर,इस लापरवाही के लिए मप्र राज्य सड़क विकास निगम व एकेवीएन एक दूसरे पर जिम्मेदारी डाल रहे हैं। औद्योगिक नगरी कहे जाने  वाले इंदौर शहर को एक नहीं बल्कि आठ विशेष प्रक्षेत्र की सौगात केंद्रीय वाणिज्य मंत्रालय ने दी लेकिन इनमें एक •ाी प्रक्षेत्र अब तक पूरी तरह शुरू नहीं हो सका। बल्कि मान इंडस्ट्रीज लिमिटेड को आईटी क्षेत्र के लिए मिले सेज की अनुमति को संबंधित बोर्ड ने वापस ले लिया है। यह कंपनी दस हजार करोड़ की लागत से करीब 10.44 हेक्टेयर क्षेत्र में सेज का निर्माण करने वाली थी। मप्र औद्योगिक केंद्र विकास निगम के अधीन इंदौर के ही समीपस्थ पिपालिया राव में प्रस्तावित सेज की •ाी कमोवेश यही स्थिति है। विशेष क्षेत्र प्रक्षेत्रों के प्रति बरती जा रही उपेक्षा का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि स्वीकृत 20 सेज में से अब तक महज 6 को नोटिफाइड किया गया। दस को औपचारिक स्वीकृति मिली व तीन स्वीकृति की प्रत्याशा में है।वहीं एक को अब तक अधिसूचित नहीं किया जा सका।
 लघु उद्यमी परेशान
 प्रदेश में छोटे एवं मझोले उद्योगों की एक बड़ी तादाद है। शासन स्तर से समुचित सुविधाएं व प्रशासनिक सहयोग नहीं मिलने से प्राय: प्रत्येक उद्यमी समस्याओं से दो-चार हो रहा है। इनमें मल्टी प्रोडक्ट बनाने वाले उद्यमियों के अलावा,हथकरघा, हर्बल फार्मास्यूटिकल, दवा कंपनियां आदि शामिल है। प्रदेश में वैट व अन्य करों के अत्याधिक दबाव के चलते अनेक दवा कंपनियों ने प्रदेश में अपना उत्पादन ही बंद कर दिया है। यही स्थिति फ्लोर  मिल्स,  हर्बल फार्मास्यूटिकल्स की है। प्रदेश में करीब दो सौ करोड़ रुपए का सालाना कारोबार करने वाली हर्बल फार्मास्यूटिकल्स इंडस्ट्री मांग होने के बाद निर्यात नहीं कर पा रही है। इसकी एक प्रमुख बजह इन कंपनियों का अंतर्राष्ट्रीय स्तर के मापदंडों पर खरा नहीं उतर पाना है। दरअसल,एक तो एक्साइज, वेट सहित अन्य करों की मार इस पर वन वि•ााग की जटिल औपचारिकताओं के चलते इंडस्ट्री को अपेक्षित गति नहीं मिल सकी। जबकि प्रदेश में उत्पादित होने वाले हर्बल प्रोडक्टस की विदेशों में खासी मांग है। इसमें दिनोंदिन इजाफा हो रहा है,लेकिन राज्य लघु वनोपज संघ इन उद्योगों को विपणन सेवाएं  मुहैया कराने में असफल रहा है। प्रदेश में हर्बल आधारित फार्मास्यूटिकल क्षेत्र की चालू इकाईयों की तादाद लग•ाग 150 है लेकिन अधोसंरचना विकास नहीं होने,मार्केटिंग व सर्टिफिकेशन के चलते एक्सपोर्ट के मामले में प्रदेश की इकाईयां पिछड़ी हैं। लघु उद्यमियों क ा संगठन  लघु उद्योग •ाारती समय -समय पर इनकी समस्याओं को उठाता रहा है। इस संगठन के तत्वावधान में साल •ार पहले ही उज्जैन में राष्ट्रीय स्तर की दो दिवसीय कांफ्रेस में अनेक मुददों पर खुल कर चर्चा हुई। इस मौके पर संगठन की ओर से अनेक  मांगें रखी गई। इनमें लघु उद्योगों को मूल•ाूत सुविधाएं उपलब्ध हों। उद्योग संवर्धन नीति में लघु उद्योगों के लिए तय 13 करोड़ के बजट को बढ़ाया जाए। इंदौर में पोलो ग्राउंड व सांवेर रोड स्थित इंडस्ट्रियल एरिया की सड़क बने।शासन की प्रस्तावित इंडस्ट्रियल टाउन शिप योजना में आ रही कठिनाइयों को दूर किया जाकर उसे शीघ्र लागू किया जाए। लघु उद्योगों में विद्युत मंडल की विजिलेंस की टीमें छापामारी की कारर्वाई नहीं करते हुए एमडी मीटरों के आधार पर शुल्क वसूला जाए। गुना में उद्योगों के लिए स्थापित बिजली योजना को शीघ्र मंजूरी मिले। डीएमआईसी कॉरिडोर को दी जाने वाली सुविधाएं वतर्मान और नए उद्योगों को •ाी दी जाएं।  स्टाम्प ड्यूटी को कम कर उसे स्पष्ट किया जाए। क्रय संग्रहण नीति के अंतर्गत धान को •ाी शामिल किया जाए। जिससे पोहा मिलों को फायदा हो सके। कम दर पर लघु उद्योगों को कर्ज मुहैया कराया जाए। पच्चीस लाख रु. तक की पूंजी एवं 25 कमर्चारियों वाले लघु उद्योगों में श्रम कानून को समाप्त किया जाए एवं  लघु उद्योगों के लिए अलग से मंत्रालय बनाया जाए। इनमें पृथक वि•ााग बनाए जाने की मांग को छोड़ शेष की स्थिति जस की तस है। अलग वि•ााग गठित किए जाने की घोषणा  बीते माह राजधानी में आयोजित एक परिचर्चा में वित्त मंत्री राघवजी ने की। उन्होंने दावा किया कि शासन की उद्योग हितैषी नीति के चलते लघु उद्योगों की रुग्ण्ता में कमी आई है। उन्होंने कहा कि सरकार का जोर लघु और कुटीर उद्योगों को बढ़ावा देने की है ताकि  खेती को ला•ा का धंधा बनाने में मदद मिल सके। श्री राघव ने दावा किया कि प्रदेश में डेयरी उद्योग में सुधार आया है। उन्होंने युवाओं को उद्यमिता अपना कर  जॉब सीकर से जॉब मेकर की •ाूमिका में आने की सलाह •ाी दी,लेकिन पहले ही अनेक समस्याओं से जूझ रहे लघु उद्यमियों के लिए करों में रियायत या कम दर पर ऋण सुविधाएं मुहैया कराने संबंधी लघु उद्योग •ाारती की मांग को बिसरा दिया। अलबत्ता उद्योग मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने  इसी परिचर्चा के दूसरे दिन लघु उद्यमियों को यह •ारोसा जरूर दिलाया कि वह लघु उद्योगों की समस्याओं के निदान के लिए हर माह लघु उद्योग •ाारती के पदाधिकारियों के साथ बैठक करेंगे।
निरस्त हुए शताधिक एमओयू
 प्रदेश में औद्योगिक निवेश को बढ़ावा देने के लिए राज्य सरकार ने बीते पांच वर्षों में पांच करोड़ रुपए अधिक राशि व्यय कर 189 कंपनियों से अनुबंध किए थे। हैरत की बात यह कि इनमें से 111 अनुबंध अब तक निरस्त किए जा चुके हैं। इनमें वीनस मर्केन्टाइल कंपनी प्रायवेट लि., मे. यू के लेण्ड बैंक लि. लंदन,मे.रेहवा रिर्सोसेज इंदौर, मे.मेघालय सीमेंट कोलकाता, ,मे.टाटा मेटेलिका लिमि. कोलकाता,मे.एस के एस इस्पात मुंबई, मे. ग्लोबल हाईटेक इंडस्ट्रीज मुंबई, मे. जेकेसेम लि. मे. एबीजी एनर्जी लि. मुबंई,मे.जैन स्टील एंड पॉवर लि. कोलकाता,मे. जायसवाल नेको इंडस्ट्रीज नागपुर ,मे.लेंको इन्फ्राटेक हैदराबाद, मे. जिंदल पाइप्स गुड़गांव,मे. टोरेन्ट पॉवर लि. अहमदाबाद,मे. जिन•ाुविश पॉवर जेनरेशन लि. मुंबई ,मे.सांघी इनर्जी लि. गुजरात आदि शामिल हैं। इन्होंने एक हजार से 9 हजार करोड़ रुपए तक के निवेश का दावा ग्लोबल समिट के दौरान किया,लेकिन राज्य शासन की मेहमान नवाजी का लुत्फ उठाने के बाद प्रदेश की ओर दोबारा पलट कर नहीं देखा।

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