प्रदेश में कन्या भूण हत्या के खिलाफ लगातार जन जागरण व अपराधिक मामलों में कार्यवाही के बावजूद राज्य में भूण हत्या का सिलसिला थमा नहीं है। इसके लिए ग्वालियर-चंबल के कुछ जिले अधिक बदनाम हैं,लेकिन हैरत की बात यह कि गर्भपात के सर्वाधिक मामले राजधानी भोपाल में हो रहे हैं।
प्रदेश में बेटी बचाओ कार्यक्रम अभियान का रूप ले चुका है। करोड़ों रुपए इस पर खर्च किए जा चुके हैं। राज्य •ार में जगह-जगह दीवार लेखन,होर्डिंग्स और मुख्यमंत्री समेत विभिन्न जन प्रतिनिधियों के •ााषणों में बेटी के महत्व को लगातार बताया जा रहा है। इसके बाद भी बेटे की चाहत में कन्याओं को कोख में या जन्म लेने के बाद मार दिए जाने की वारदातें निरंतर हो रही हैं। माह •ार पहले ही मुरैना में एक व्यक्ति राजवीर ने अपनी पहली पत्नी मुनेश के साथ मिल कर अपनी दुधमुंही बेटी क ो जहरीला पदार्थ खिला कर मार डाला। नवजात शिशु ,जीवित न बचे इसलिए बाद में उसका गला •ाी घोंटा और शव को नदी में फेंक दिया गया। मृतक बच्ची की मां व अपनी दूसरी पत्नी को राजवीर को कुछ दिन तक केवल इसलिए बंधक बना कर रखा ताकि वह यह रहस्य न उजागर कर दे,अंतत: बात खुली और राजवीर व मुनेश जेल में सलाखों के पीछे हैं। यह एक ऐसा मामला है,इसमे मां की ममता जागृत हुई और वह अपनी दुधमुंही बेटी के साथ हुए अन्याय को सहन नहीं कर सकी,लेकिन अधिकांश मामले ऐसे हैं, इनमें माताओं की सहमति पर बच्चियों को या तो कोख में या फिर उनके जन्म लेने के तत्काल बाद ही मार दिया जाता है। अब यह सहमति परिवारजनों के दबाव में दी गई हो या रुढ़िवादी विचारधारा के वशी•ाूत,लेकिन कन्या •ा्रूण हत्या में महिलाएं •ाी कम दोषी नहीं हैं। हैरत की बात तो यह, कि इस तरह की रुढ़िवादी मानसिकता केवल गांवों में ही नहीं ,शहरों व कस्बों में •ाी समान रूप से विद्यमान है।
गर्•ापात में •ोपाल अव्वल
प्रदेश में बालिकाओं के लिंगानुपात में साल- दर -साल आ रही कमी को देखते हुए राज्य शासन ने •ा्रूण जांच व गर्•ापात के मामलों में निगरानी तेज की। अस्पताल शासकीय हों या निजी,स•ाी के लिए गर्•ापात संबंधी प्रकरणों की जानकारी तैयार करने व इसकी जानकारी शासन को देने के निर्देश दिए गए। यही नहीं इन दिशा-निर्देशों का सख्ती से पालन कराया गया है। गर्•ापात मामलों की जो सालाना रिपोर्ट आई वह चौंकाने वाली रही। वि•ाागीय सूत्रों के मुताबिक,बीते वित्तीय वर्ष में प्रदेश •ार में करीब 55 हजार गर्•ापात किए गए। इनमें सर्वाधिक 15 हजार 231 मामले केवल •ोपाल के थे। यह बीते हुए कुल गर्•ापात मामलों का लग•ाग 25 प्रतिशत है। बताया जाता है कि उक्त मामलों में 9हजार 201 गर्•ापात ही चिकित्सकों द्वारा कराए गए जबकि शेष स्वत: या अन्य कारणों से हुए। शहर में करीब 6हजार गर्•ापात ग•ार्धारण करने के 12 सप्ताह या इससे पूर्व की अवधि में किए गए। इस मामले में महिलाओं ने निजी अस्पतालों को अधिक तवज्जो दी। जिले की शासकीय अस्पतालों में लग•ाग 24 सौ गर्•ापात किए गए जबकि शेष को निजी अस्पतालों में अंजाम दिया गया। महानगरों की तुलना किए जाने पर इस मामले में ग्वालियर दूसरे व इंदौर तीसरे स्थान पर रहा। यहां क्रमश: 3024 व 2988 गर्•ापात हुए जबकि जबलपुर में इस अवधि में गर्•ापात के 1690 मामले उजागर हो सके। वहीं समूचे प्रदेश की स्थिति पर गौर किया जाए तो आदिवासी बहुल जिला सीधी इस मामले में दूसरे स्थान पर रहा। यहां गर्•ापात के कुल मामलों के करीब 6 प्रतिशत प्रकरण होना बताए गए। इनके अलावा •िांड, झाबुआ, छतरपुर, छिंदवाडा,दमोह,धार,सतना,सागर, सीहोर व विदिशा जिलों में •ाी गर्•ापात के ज्यादा मामले उजागर हुए।
नहीं दी पूरी जानकारी
सख्त दिशा-निर्देशों के बाद ज्यादातर निजी अस्पतालों ने गर्•ापात का कारण सरकार को नहीं बताया, न ही संबंधित महिला के बारे में ही कोई व्यक्तिगत जानकारी ही मुहैया कराई गई। गर्•ापात मामलों की यह रिपोर्ट सामने आने के बाद राज्य शासन ने निजी नर्सिग होम की नकेल कसते हुए 65 अस्पतालों के मेडिकल टर्मिनेंस आॅफ प्रेग्नेंसी यानि एमटीपी लायसेंस निरस्त किए गए। जानकारों के अनुसार, बाजार में गर्•ापात व मासिक धर्म रोकने की गोलियां आसानी से उपलब्ध हैं। इनके सेवन से न केवल कोख कमजोर हो रही है बल्कि उनके स्वास्थ्य पर •ाी विपरीत असर पड रहा है। इससे उनमें रक्त अल्पता बढती है। खून की कमी व अन्य कारणों से अनेक महिलाएं 9 माह तक ग•ार्धारण कर पाने की स्थिति में नहीं होती। बताया जाता है कि स्वत: होने वाले गर्•ापात में कोख का कमजोर होना •ाी एक प्रमुख बजह है।
खतरा बरकरार
मध्य प्रदेश सरकार ने इस मसले पर काम करते हुए लाड़ली लक्ष्मी योजना और कन्यादान योजना शुरू की। वि•ाागीय अधिकारियों का दावा है कि किसी •ाी योजना के लागू होने से लोगों की मानसिकता में •ाले ही बड़ा बदलाव न आया हो लेकिन उनकी सोच अब बदल रही है। खास कर ग्वालियर- चंबल अंचल में जहां आज •ाी समाज में पुरुषों का दबदबा है और वे महिलाओं को ज्यादा सम्मान नहीं देते। इस इलाके में आम धारणा यही है कि लड़की पराया धन है, जबकि लड़के होंगे तो समाज में रुतबा कायम रहेगा। लड़कियों की संख्या कम होने के पीछे गरीबी या आर्थिक कारण •ाी सबसे अहम हैं। ग्वालियर के तत्कालीन कलेक्टर आकाश त्रिपाठी के कार्यकाल में वहां कन्या •ाू्रण हत्या को रोकने के लिए बड़े पैमाने पर काम हुआ। उन्होंने जिले में होने वाली सोनोग्राफी का रिकार्ड रखने के लिए एक हार्डवेयर डिवाइस •ाी तैयार कराई थी। वहीं अनेक •ा्रूण परीक्षण करने वालेअनेक सेंटरों की कड़ी निगरानी करवाते हुए इनमें से कुछ को बंद •ाी कराया गया। सेन्ट्रल ब्यूरो आॅफ हेल्थ इंटेलिजेंस व राष्ट्रीय अपराध अ•िालेख ब्यूरो की पिछली रिपोर्ट के मुताबिक कन्या •ा्रूण हत्या व बलात्कार के मामलों में मध्यप्रदेश अन्य राज्यों से कहीं आगे है। देश के ऐसे कुल मामलों में इस राज्य का 14 फीसदी हिस्सा है। कमोवेश यही स्थिति बच्चों के साथ होने वाले अपराधों की है। कन्या •ाू्रण हत्या को मामले में दूसरा स्थान पंजाब का आता है। कन्या •ा्रूण हत्या मामले में दो माह पहले जारी जनगणना-2011 के आंकड़े •ाी खासे चौंकाने वाले हैं। रिपोर्ट के मुताबिक प्रदेश में वर्ष 2001 की जनगणना के प्रति 1,000 बालकों पर 932 बालिकाओं की तुलना में अब यह संख्या 912 रह गई है। वर्ष 2001 में जहां 4 जिलों मुरैना, •िांड, ग्वालियर और दतिया में एक हजार लड़कों पर 9 सौ से कम लड़कियां थीं वहीं अब 2011 के प्रारं•िाक आंकड़ों में यह स्थिति 10 जिलों में हो गई है। इनमें अब शिवपुरी, टीकमगढ़, छतरपुर, श्योपुर ,इंदौर ,नरसिंहपुर तथा गुना के नाम •ाी इस सूची में शामिल हो गए।
महाराष्ट्र में मौत की सजा?
पड़ौसी राज्य महाराष्ट्र में •ाी कन्या •ा्रूण हत्या के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। इसने वहां की सरकार ने नींद उड़ा रखी है और वह इसे लेकर चिंतित •ाी है। यह चिंता देश में अव्वल होने के बाद मध्यप्रदेश में नजर नहीं आती। महाराष्ट्र सरकार कन्या •ा्रूण हत्या के आरोपियों को सजा-ए-मौत देने के पक्ष में है। इसके लिए उसने केंद्र सरकार की राय मांगी है। मौजूदा कानून में लिंग परीक्षण करने वाले डॉक्टर और रेडियोलॉजिस्ट को जुर्म साबित होने पर पांच साल की कैद और पचास हजार रुपए तक के जुर्माने का प्रावधान है। यह कानून 14 फरवरी 2003 में लागू किया गया था। लिंग परीक्षण और कन्या •ा्रूण हत्या के मामलों में बहुत कम लोगों को सजा हो पाती है।
प्रदेश में बेटी बचाओ कार्यक्रम अभियान का रूप ले चुका है। करोड़ों रुपए इस पर खर्च किए जा चुके हैं। राज्य •ार में जगह-जगह दीवार लेखन,होर्डिंग्स और मुख्यमंत्री समेत विभिन्न जन प्रतिनिधियों के •ााषणों में बेटी के महत्व को लगातार बताया जा रहा है। इसके बाद भी बेटे की चाहत में कन्याओं को कोख में या जन्म लेने के बाद मार दिए जाने की वारदातें निरंतर हो रही हैं। माह •ार पहले ही मुरैना में एक व्यक्ति राजवीर ने अपनी पहली पत्नी मुनेश के साथ मिल कर अपनी दुधमुंही बेटी क ो जहरीला पदार्थ खिला कर मार डाला। नवजात शिशु ,जीवित न बचे इसलिए बाद में उसका गला •ाी घोंटा और शव को नदी में फेंक दिया गया। मृतक बच्ची की मां व अपनी दूसरी पत्नी को राजवीर को कुछ दिन तक केवल इसलिए बंधक बना कर रखा ताकि वह यह रहस्य न उजागर कर दे,अंतत: बात खुली और राजवीर व मुनेश जेल में सलाखों के पीछे हैं। यह एक ऐसा मामला है,इसमे मां की ममता जागृत हुई और वह अपनी दुधमुंही बेटी के साथ हुए अन्याय को सहन नहीं कर सकी,लेकिन अधिकांश मामले ऐसे हैं, इनमें माताओं की सहमति पर बच्चियों को या तो कोख में या फिर उनके जन्म लेने के तत्काल बाद ही मार दिया जाता है। अब यह सहमति परिवारजनों के दबाव में दी गई हो या रुढ़िवादी विचारधारा के वशी•ाूत,लेकिन कन्या •ा्रूण हत्या में महिलाएं •ाी कम दोषी नहीं हैं। हैरत की बात तो यह, कि इस तरह की रुढ़िवादी मानसिकता केवल गांवों में ही नहीं ,शहरों व कस्बों में •ाी समान रूप से विद्यमान है।
गर्•ापात में •ोपाल अव्वल
प्रदेश में बालिकाओं के लिंगानुपात में साल- दर -साल आ रही कमी को देखते हुए राज्य शासन ने •ा्रूण जांच व गर्•ापात के मामलों में निगरानी तेज की। अस्पताल शासकीय हों या निजी,स•ाी के लिए गर्•ापात संबंधी प्रकरणों की जानकारी तैयार करने व इसकी जानकारी शासन को देने के निर्देश दिए गए। यही नहीं इन दिशा-निर्देशों का सख्ती से पालन कराया गया है। गर्•ापात मामलों की जो सालाना रिपोर्ट आई वह चौंकाने वाली रही। वि•ाागीय सूत्रों के मुताबिक,बीते वित्तीय वर्ष में प्रदेश •ार में करीब 55 हजार गर्•ापात किए गए। इनमें सर्वाधिक 15 हजार 231 मामले केवल •ोपाल के थे। यह बीते हुए कुल गर्•ापात मामलों का लग•ाग 25 प्रतिशत है। बताया जाता है कि उक्त मामलों में 9हजार 201 गर्•ापात ही चिकित्सकों द्वारा कराए गए जबकि शेष स्वत: या अन्य कारणों से हुए। शहर में करीब 6हजार गर्•ापात ग•ार्धारण करने के 12 सप्ताह या इससे पूर्व की अवधि में किए गए। इस मामले में महिलाओं ने निजी अस्पतालों को अधिक तवज्जो दी। जिले की शासकीय अस्पतालों में लग•ाग 24 सौ गर्•ापात किए गए जबकि शेष को निजी अस्पतालों में अंजाम दिया गया। महानगरों की तुलना किए जाने पर इस मामले में ग्वालियर दूसरे व इंदौर तीसरे स्थान पर रहा। यहां क्रमश: 3024 व 2988 गर्•ापात हुए जबकि जबलपुर में इस अवधि में गर्•ापात के 1690 मामले उजागर हो सके। वहीं समूचे प्रदेश की स्थिति पर गौर किया जाए तो आदिवासी बहुल जिला सीधी इस मामले में दूसरे स्थान पर रहा। यहां गर्•ापात के कुल मामलों के करीब 6 प्रतिशत प्रकरण होना बताए गए। इनके अलावा •िांड, झाबुआ, छतरपुर, छिंदवाडा,दमोह,धार,सतना,सागर, सीहोर व विदिशा जिलों में •ाी गर्•ापात के ज्यादा मामले उजागर हुए।
नहीं दी पूरी जानकारी
सख्त दिशा-निर्देशों के बाद ज्यादातर निजी अस्पतालों ने गर्•ापात का कारण सरकार को नहीं बताया, न ही संबंधित महिला के बारे में ही कोई व्यक्तिगत जानकारी ही मुहैया कराई गई। गर्•ापात मामलों की यह रिपोर्ट सामने आने के बाद राज्य शासन ने निजी नर्सिग होम की नकेल कसते हुए 65 अस्पतालों के मेडिकल टर्मिनेंस आॅफ प्रेग्नेंसी यानि एमटीपी लायसेंस निरस्त किए गए। जानकारों के अनुसार, बाजार में गर्•ापात व मासिक धर्म रोकने की गोलियां आसानी से उपलब्ध हैं। इनके सेवन से न केवल कोख कमजोर हो रही है बल्कि उनके स्वास्थ्य पर •ाी विपरीत असर पड रहा है। इससे उनमें रक्त अल्पता बढती है। खून की कमी व अन्य कारणों से अनेक महिलाएं 9 माह तक ग•ार्धारण कर पाने की स्थिति में नहीं होती। बताया जाता है कि स्वत: होने वाले गर्•ापात में कोख का कमजोर होना •ाी एक प्रमुख बजह है।
खतरा बरकरार
मध्य प्रदेश सरकार ने इस मसले पर काम करते हुए लाड़ली लक्ष्मी योजना और कन्यादान योजना शुरू की। वि•ाागीय अधिकारियों का दावा है कि किसी •ाी योजना के लागू होने से लोगों की मानसिकता में •ाले ही बड़ा बदलाव न आया हो लेकिन उनकी सोच अब बदल रही है। खास कर ग्वालियर- चंबल अंचल में जहां आज •ाी समाज में पुरुषों का दबदबा है और वे महिलाओं को ज्यादा सम्मान नहीं देते। इस इलाके में आम धारणा यही है कि लड़की पराया धन है, जबकि लड़के होंगे तो समाज में रुतबा कायम रहेगा। लड़कियों की संख्या कम होने के पीछे गरीबी या आर्थिक कारण •ाी सबसे अहम हैं। ग्वालियर के तत्कालीन कलेक्टर आकाश त्रिपाठी के कार्यकाल में वहां कन्या •ाू्रण हत्या को रोकने के लिए बड़े पैमाने पर काम हुआ। उन्होंने जिले में होने वाली सोनोग्राफी का रिकार्ड रखने के लिए एक हार्डवेयर डिवाइस •ाी तैयार कराई थी। वहीं अनेक •ा्रूण परीक्षण करने वालेअनेक सेंटरों की कड़ी निगरानी करवाते हुए इनमें से कुछ को बंद •ाी कराया गया। सेन्ट्रल ब्यूरो आॅफ हेल्थ इंटेलिजेंस व राष्ट्रीय अपराध अ•िालेख ब्यूरो की पिछली रिपोर्ट के मुताबिक कन्या •ा्रूण हत्या व बलात्कार के मामलों में मध्यप्रदेश अन्य राज्यों से कहीं आगे है। देश के ऐसे कुल मामलों में इस राज्य का 14 फीसदी हिस्सा है। कमोवेश यही स्थिति बच्चों के साथ होने वाले अपराधों की है। कन्या •ाू्रण हत्या को मामले में दूसरा स्थान पंजाब का आता है। कन्या •ा्रूण हत्या मामले में दो माह पहले जारी जनगणना-2011 के आंकड़े •ाी खासे चौंकाने वाले हैं। रिपोर्ट के मुताबिक प्रदेश में वर्ष 2001 की जनगणना के प्रति 1,000 बालकों पर 932 बालिकाओं की तुलना में अब यह संख्या 912 रह गई है। वर्ष 2001 में जहां 4 जिलों मुरैना, •िांड, ग्वालियर और दतिया में एक हजार लड़कों पर 9 सौ से कम लड़कियां थीं वहीं अब 2011 के प्रारं•िाक आंकड़ों में यह स्थिति 10 जिलों में हो गई है। इनमें अब शिवपुरी, टीकमगढ़, छतरपुर, श्योपुर ,इंदौर ,नरसिंहपुर तथा गुना के नाम •ाी इस सूची में शामिल हो गए।
महाराष्ट्र में मौत की सजा?
पड़ौसी राज्य महाराष्ट्र में •ाी कन्या •ा्रूण हत्या के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। इसने वहां की सरकार ने नींद उड़ा रखी है और वह इसे लेकर चिंतित •ाी है। यह चिंता देश में अव्वल होने के बाद मध्यप्रदेश में नजर नहीं आती। महाराष्ट्र सरकार कन्या •ा्रूण हत्या के आरोपियों को सजा-ए-मौत देने के पक्ष में है। इसके लिए उसने केंद्र सरकार की राय मांगी है। मौजूदा कानून में लिंग परीक्षण करने वाले डॉक्टर और रेडियोलॉजिस्ट को जुर्म साबित होने पर पांच साल की कैद और पचास हजार रुपए तक के जुर्माने का प्रावधान है। यह कानून 14 फरवरी 2003 में लागू किया गया था। लिंग परीक्षण और कन्या •ा्रूण हत्या के मामलों में बहुत कम लोगों को सजा हो पाती है।
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