मैं अपनी मर्जी से फांसी लगा रहा हूं। मेरी मौत के लिए कोई जिम्मेदार नहीं है,लिहाजा किसी को परेशान न किया जाए। स्थानीय कोटरा सुल्तानाबाद के ज्योति अपार्टमेंट में रहने वाले 22 वर्षीय इंजीनियरिंग छात्र सनी आहूजा ने कुछ इसी तरह का सुसाइड नोट लिखा और फांसी पर झूल गया। सनी इंजीनियरिंग में अंतिम वर्ष का छात्र था। जांच में पाया गया कि सनी ने यह सुसाइड नोट अपनी मौत से चार दिन पहले लिखा था,यानि वह गहरे अवसाद में था और पिछले कुछ दिनों से मरने की योजना बना रहा था। इस दौरान उसे कोई सही राह बताने वाला नहीं मिला और अंत में उसने वही कर दिखाया जो उसने ठाना था।
अपने इकलौते जवान बेटे की मौत ने जैसे सनी के पिता धर्मेंद आहूजा व उनकी धर्मपत्नी को ‘तोड़’ कर रख दिया। उनके जीवन भर का स्वप्न पल में बिखर गया। अवसाद या क्रोधवश इस तरह का कदम उठाने वाला सनी अकेला युवक नहीं है। बीते एक साल के दौरान राजधानी में ही शताधिक लोगो ने मौत को इसी तरह गले लगाया। इनमें कुछ विद्यार्थी तो कुछ बीमारी व सामाजिक तौर पर प्रताड़ित लोग शामिल हैं। बालाघाट निवासी 22 वर्षीय नीतू सनोडिया भी इन्हीं में एक है। नीतू अपनी तीन बहनों के साथ राजधानी के इमामबाड़ा क्षेत्र में किराए के मकान में रह कर पढ़ाई कर रही थी। प्रेम प्रसंग में असफल रहने पर नीतू ने यह आत्मघाती कदम उठा कर मां-बाप को जीवन भर का दंश दे डाला। वहीं समीपस्थ बैरसिया तहसील के ग्राम सेमरा में रहने वाली 30 वर्षीय विवाहित महिला कमलेश बाई ने पारिवारिक कारणों से फांसी लगा कर अपनी इहलीला समाप्त कर ली। इस तरह के ऐसे हजारों मामले हैं जो कई अहम सवाल पैदा करते हैं। समाज में बढ़ती आत्महत्या क ी घटनाएं सोचने को मजबूर करती हैं कि क्या सात जन्मों के रिश्तों की भावनात्मक गरमाहट ,पारिवारिक सहनशीलता व धैर्य का सूचकांक में इतनी गिरावट आ चुकी है कि वह मुश्किल हालात को मात देने के इंसानी जज्बे को ही छीन ले?
हर रोज 18 आत्महत्याएं
सरकारी आंकड़ो पर ही भरोसा किया जाए तो हर रोज 18 लोग इस तरह के आत्मघाती कदम उठा कर मौत को गले लगा रहे हैं। बीते साढे. चार माह में ही 2541 लोगों ने आत्महत्याएं की। इनमें तीन सौ किसान व खेतिहर मजदूर हैं। राज्य विधानसभा के मौजूदा पावस सत्र में कांग्रेस विधायक रामनिवास रावत के सवाल के जवाब में गृहमंत्री उमाशंकर गुप्ता ने समाज की इस हकीकत को बयां किया। उन्होंने कहा कि एक मार्च 2012 से 15 जुलाई तक राज्य में 2541 लोगों ने आत्महत्याएं की हैं। इस तरह 135 दिनों में हर रोज औसतन 18 लोगों ने मौत को गले लगाया है। गृहमंत्री के जवाब के मुताबिक इस अवधि में सागर में सबसे ज्यादा 172 लोगों ने मौत को गले लगाया है। आत्महत्या के मामले में इंदौर दूसरे क्रम पर है, जहां 158 लोगों ने जान दी है। इसके अलावा सतना में 153, भोपाल में 130 और जबलपुर में 113 आत्महत्या के प्रकरण सामने आए हैं। इन आत्महत्याओं के मामलों में 300 प्रकरण किसान व खेतिहर मजदूरों के हैं। 205 किसान व 95 खेतिहर मजदूरों ने जान दी है। इस तरह हर रोज दो से ज्यादा किसानों ने मौत को गले लगाया है। ज्ञात हो,कि बुंदेलखंड के सबसे बड़ा जिला बीते कुछ सालों से लगातार सूखे की चपेट में है। रोजगार के सीमित साधन,बढ़ती महंगाई,घटती आय लोगो का सुख चैन छीने हुए है। इस पर बढ़ती महत्वकांक्षाएं ,पारिवारिक व सामाजिक दायित्वों के निर्वहन पर भारी साबित हो रही है। यह तमाम हालात व्यक्ति को तनाव व अवासाद ग्रस्त बनाते हैं।
आत्महत्या करने वालों में पुरुष आगे
केवल मध्यप्रदेश ही नहीं बल्कि समूचे राष्ट्र में इस तरह के हालात हैं। आत्महत्याओं के मामले में राष्ट्रीय अपराध अभिलेख ब्यूरो की हालिया रिपोर्ट समाज की एक अलग स्थिति बयां करती है। बीते साल की घटनाओं परआधारित ब्यूरो की रिपोर्ट कहती है कि वर्ष 2011 के दौरान देश में खुदकुशी करने वाले हर सौ लोगों में से 70 शादीशुदा थे। अर्थात देश में कुंवारों के मुकाबले शादीशुदा लोगों में जिंदगी से हार मान कर खुदकुशी की प्रवृत्ति तेजी से बढ़ रही है। यह स्थिति चिंताजनक है। वह इसलिए भी कि शादीशुदा लोगो के इस तरह आत्मघाती कदम उठाने से उस पर आश्रित समूचा परिवार प्रभावित होता है। ब्यूरो रिपोर्ट के मुताबिक, वर्ष 2011 में देश में आत्महत्या के कुल 1लाख 35 हजार 585 मामले दर्ज किये गये थे। मरने वालों में 62 हजार 433 शादीशुदा पुरुष व 32 हजार 582 विवाहित महिलाएं थीं। खुदकुशी करने वालों में 3.7 प्रतिशत लोग या तो तलाकशुदा थे या किसी वजह से अपने जीवनसाथी से अलग रह रहे थे। इस साल आत्महत्या का कदम उठाने वाले लोगों में 3.6 प्रतिशत विधुर या विधवा के दर्जे वाले थे। एनसीआरबी के यह आंकडेÞ सामाजिक रिश्तों में पसरती जा रही अशांति और अस्थिरता को उजागर करते हैं। जानकारों का मानना है,कि वैवाहिक समस्याओं से ग्रस्त लोगों की तादाद में लगातार इजाफा हो रहा है। इसका बड़ा कारण यह है कि पति-पत्नी के आपसी रिश्ते में लचीलापन लगातार कम हो रहा है। उम्मीदें बढ़ रही है। संयुक्त परिवारों की सामाजिक अवधारणा में बदलाव अधिक घातक साबित हो रहा है। एकल परिवारों में लोग अपने आप को पहले के मुकाबले कहीं ज्यादा अकेला महसूस कर रहे हैं। वे मानसिक दबाव और अवसाद में होते हैं। समस्याओं को लेकर भीतर ही भीतर घुटते हैं। कोटरा सुल्तानाबाद निवासी सनी आहूजा की आत्महत्या की घटना एकल परिवार में रहने की प्रवृत्ति का नतीजा है,जो अकेलेपन में अवसाद ग्रस्त हुए सनी को आत्महत्या करने से नहीं रोक सका। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2011 में ही खुदकुशी के मामलों में पुरुष-स्त्री अनुपात 65-35 था। अर्थात जान देने वाले हर सौ लोगों में 65 पुरुष और 35 महिलाएं थीं। देखा गया कि आमतौर पर सामाजिक और आर्थिक कारण पुरुषों को आत्महत्या के लिये उकसाते हैं, जबकि महिलाएं खासकर भावनात्मक और निजी वजहों से मौत को गले लगाती हैं। ब्यूरो की रिपोर्ट बताती है कि पिछले साल आत्महत्या के उक्त मामलों में सर्वाधिक 24.3 प्रतिशत लोगों ने पारिवारिक दिक्कतों के चलते जान दी, जबकि 19.6 प्रतिशत ने बीमारियों से तंग आकर मौत को गले लगाया। बीते साल तलाक और अवैध संबंधों से गर्भधारण के कारण आत्महत्या के मामलों में वर्ष 2010 के मुकाबले क्रमश: 54.5 प्रतिशत और 20.1 प्रतिशत का गंभीर इजाफा दर्ज किया गया।यह आंकड़े बताते हैं, कि महिला सशक्तिकरण के इस आधुनिक दौर में अनेक सामाजिक वर्जनाएं टूट रही हैं।
अवसाद प्रमुख बजह
मनोचिकित्सकों का मानना है कि आत्महत्या की एक अहम बजह अवसाद व तनाव है। इसमें व्यक्ति सही गलत का फैसला नहीं ले पाता। आती-जाती उदासी, कुंठाएं, अपनों से बिछुड़ने का दु:ख,कर्ज का बोझ, काम में असफलता ,यह कुछ ऐसे कारण हैं जो तनाव बढ़ाते हैं। हालात का मुकाबला करने की बजाए नकारात्मक सोच पर कायम रहने से तनाव हद को पार करने लगता है। ऐसे में व्यक्ति क ो एक ही आसान उपाय नजर आता है, वह आत्महत्या। मनोचिकित्सकों के मुताबिक, अवसाद एक रोग है। जो मस्तिष्क में जैव-रासायनिक असंतुलनों की वजह से पैदा होती है। तनावग्रस्त व्यक्तियों में से 80 प्रतिशत का आधुनिक औषधियों से सफलतापूर्वक इलाज संभव है। किया जा सकता है। वैज्ञानिक रिसर्च में अवसाद की बजह शरीर में एक खास प्रोटीन का स्तर बढ़ना है। इसके बढ़ने से तनाव व चिंता को नियंत्रित करने वाला जीन प्रभावित होता है। इससे यह या तो काम करना बंद कर देता है अथवा गलत सोच पैदा करता है। इस तरह तनाव से लड़ने की व्यक्ति की क्षमता को यह बर्बाद कर देता है और व्यक्ति आत्महत्या कर लेता है। शोधकर्ताओं का कहना है कि यह खास जीन दिमाग के क्रियाकलाप को नियंत्रित करने में विशेष भूमिका निभाता है। जीन के रासायनिक बदलाव की प्रकृति लंबी होती है। इसकी परिणति अवसाद के रूप में होती है। इस शोध ने अवसाद व तनाव को कम करने के लिए कारगर दवा ईजाद होने की उम्मीद बढ़ा दी है। जो आत्महत्याओं की बढ़ती घटनाओं में कमी लाने में मददगार साबित होगी।
0 comments:
एक टिप्पणी भेजें