किसानों की आत्महत्या के पीछे कर्ज एक बड़ा कारण है। कृषि लागत निरंतर बढ़ने से लघु व सीमांत किसानों के लिए बिना कर्ज खेती करना असं•ाव हो गया है। प्रदेश में बीते दो सालों में आत्महत्या करने वाले किसान बीस हजार से तीन लाख रुपए तक के कर्ज तले दबे थे। वहीं जिन 38 किसानों ने आत्महत्या का प्रयास किया उन पर साहूकारों के 45 लाख व बैंकों के 11 लाख रुपए का कर्ज होना पाया गया। इस तरह उनके कुल कर्ज का 80 प्रतिशत हिस्सा गज भारी ब्याज वाले साहूकारी कर्ज का है। यानी ग्रामीण क्षेत्रों तक बैंकों की पहुंच और किसान क्रेडिट कार्र्ड के बावजूद किसान साहूकारों के सामने हाथ पसारने को विवश है।
दमोह जिले के कुलुआकला गांव में बटाई पर खेती करने वाले 25 वर्षीय नंदराम रैकवार पर करीब सवा लाख रुपए का साहूकारी था। इसी कर्ज की चिंता में उसने खुद को आग लगाकर जान दे दी। सागर जिले के देवरी गांव में 7 एकड़ जमीन पर खेती करने वाले त्रिलोकी पर ड़ेढ़ लाख रुपए का कर्ज था। कीटनाशक पीकर आत्महत्या का प्रयास करने वाले दमोह जिले के मोहन रैकवार पर ड़ेढ़ लाख रुपए के साहूकारी कर्ज का बोझ है। छतरपुर जिले के नाथनपुर्वा गांव के कुंजीलाल के पास मात्र 7 एकड़ जमीन थी और कर्ज की मात्रा तीन लाख। विदिशा जिले के रंगई गांव में तीन एकड़ जमीन के मालिक दौलतसिंह पर साहूकारों का 50 हजार रुपए का कर्ज है। कजर्दार किसानों की यह फेहरिश्त यहीं खत्म नहीं होती है बल्कि मध्यप्रदेश के लगभग सभी लघु और सीमान्त किसान कर्ज के बोझ तले दबे हैं। यदि मध्यप्रदेश में किसानों पर कर्ज की मात्रा का आकलन करें तो इसका ग्राफ दस हजार करोड़ से ऊपर कहा जा सकता है। अपेक्स बैंक के रिकॉर्ड में ही प्रदेश के किसानों पर साढ़े सात हजार करोड़ रुपए कर्ज के रूप में दर्ज है। इसमें यदि कम से कम ढाई हजार करोड़ रुपए साहूकारी कर्ज से जोड़ दे तो यह आंकड़ा दस हजार करोड़ को पार कर लेता है। वर्ष 2006 में गठित राधाकृष्णन समिति नेकिसानों की आत्महत्या के लिए कर्ज को मुख्य कारण माना है। भारत सरकार द्वारा किसानों की कर्ज माफी की घोषणा को राहत के रूप में देखा गया था। किन्तु 32 लाख से भी अधिक किसानों पर आज बैंकों का कर्ज बकाया है। सहकारी संस्थाओं में हुए घोटालों की वजह से किसानों के 16 सौ करोड़ से अधिक के कर्ज माफ नहीं हो पाए। आत्महत्या करने वाले शिवप्रसाद के पुत्र इस बार प्रदेश में पाले का असर कई किसानों के लिए जानलेवा साबित हुआ है। प्रदेश सरकार ने किसानों को राहत पहुंचाने के लिए तत्परता से कदम उठाए। किन्तु प्रशासन का रवैया संवेदनशील नहीं रहा है। एक ओर मध्यप्रदेश सरकार केन्द्र से किसानों की हालत बताकर राहत पैकेज की मांग करती रही है। वहीं दूसरी ओर उसके प्रशासनिक अधिकारी यह मानने के लिए तैयार नहीं है कि किसानों की आत्महत्या के पीछे खेती संबंधी कोई कारण है। दमोह जिले अधिकृत सरकारी बयान में नंदराम रैकवार की आत्महत्या का कारण पारिवारिक कलह बताया गया। वहीं सीहोर जिले में कर्ज के कारण आत्महत्या करने वाले शिवप्रसाद को पागल करार देने की कोशिश की गई। छतरपुर जिले में 40 वर्षीय लखनलाल को मानसिक रूप से विक्षिप्त बताया गया। लखनलाल की विधवा हीराबाई अपना दुख व्यक्त करते हुए कहती है कि चाहे मुझे सहारा मत दो, पर भगवान के लिए मेरे पति को पागल मत कहो। आत्महत्या का प्रयास करने वाले बैतूल जिले के एक किसान को जिला प्रशासन ने शराबी बताया,जबकि चिकित्सीय रिपोर्ट में उसकी मौत जहर खाने से होना बताई गई। ने उसके पेट में शराब के बजाय इंड़ोसल्फान नामक कीटनाशक पाया। इस तरह प्रशासन किसी को पागल तो किसी को शराबी कहकर समस्या से पल्ला झाड़ने की कोशिश करता रहा है।
दमोह जिले के कुलुआकला गांव में बटाई पर खेती करने वाले 25 वर्षीय नंदराम रैकवार पर करीब सवा लाख रुपए का साहूकारी था। इसी कर्ज की चिंता में उसने खुद को आग लगाकर जान दे दी। सागर जिले के देवरी गांव में 7 एकड़ जमीन पर खेती करने वाले त्रिलोकी पर ड़ेढ़ लाख रुपए का कर्ज था। कीटनाशक पीकर आत्महत्या का प्रयास करने वाले दमोह जिले के मोहन रैकवार पर ड़ेढ़ लाख रुपए के साहूकारी कर्ज का बोझ है। छतरपुर जिले के नाथनपुर्वा गांव के कुंजीलाल के पास मात्र 7 एकड़ जमीन थी और कर्ज की मात्रा तीन लाख। विदिशा जिले के रंगई गांव में तीन एकड़ जमीन के मालिक दौलतसिंह पर साहूकारों का 50 हजार रुपए का कर्ज है। कजर्दार किसानों की यह फेहरिश्त यहीं खत्म नहीं होती है बल्कि मध्यप्रदेश के लगभग सभी लघु और सीमान्त किसान कर्ज के बोझ तले दबे हैं। यदि मध्यप्रदेश में किसानों पर कर्ज की मात्रा का आकलन करें तो इसका ग्राफ दस हजार करोड़ से ऊपर कहा जा सकता है। अपेक्स बैंक के रिकॉर्ड में ही प्रदेश के किसानों पर साढ़े सात हजार करोड़ रुपए कर्ज के रूप में दर्ज है। इसमें यदि कम से कम ढाई हजार करोड़ रुपए साहूकारी कर्ज से जोड़ दे तो यह आंकड़ा दस हजार करोड़ को पार कर लेता है। वर्ष 2006 में गठित राधाकृष्णन समिति नेकिसानों की आत्महत्या के लिए कर्ज को मुख्य कारण माना है। भारत सरकार द्वारा किसानों की कर्ज माफी की घोषणा को राहत के रूप में देखा गया था। किन्तु 32 लाख से भी अधिक किसानों पर आज बैंकों का कर्ज बकाया है। सहकारी संस्थाओं में हुए घोटालों की वजह से किसानों के 16 सौ करोड़ से अधिक के कर्ज माफ नहीं हो पाए। आत्महत्या करने वाले शिवप्रसाद के पुत्र इस बार प्रदेश में पाले का असर कई किसानों के लिए जानलेवा साबित हुआ है। प्रदेश सरकार ने किसानों को राहत पहुंचाने के लिए तत्परता से कदम उठाए। किन्तु प्रशासन का रवैया संवेदनशील नहीं रहा है। एक ओर मध्यप्रदेश सरकार केन्द्र से किसानों की हालत बताकर राहत पैकेज की मांग करती रही है। वहीं दूसरी ओर उसके प्रशासनिक अधिकारी यह मानने के लिए तैयार नहीं है कि किसानों की आत्महत्या के पीछे खेती संबंधी कोई कारण है। दमोह जिले अधिकृत सरकारी बयान में नंदराम रैकवार की आत्महत्या का कारण पारिवारिक कलह बताया गया। वहीं सीहोर जिले में कर्ज के कारण आत्महत्या करने वाले शिवप्रसाद को पागल करार देने की कोशिश की गई। छतरपुर जिले में 40 वर्षीय लखनलाल को मानसिक रूप से विक्षिप्त बताया गया। लखनलाल की विधवा हीराबाई अपना दुख व्यक्त करते हुए कहती है कि चाहे मुझे सहारा मत दो, पर भगवान के लिए मेरे पति को पागल मत कहो। आत्महत्या का प्रयास करने वाले बैतूल जिले के एक किसान को जिला प्रशासन ने शराबी बताया,जबकि चिकित्सीय रिपोर्ट में उसकी मौत जहर खाने से होना बताई गई। ने उसके पेट में शराब के बजाय इंड़ोसल्फान नामक कीटनाशक पाया। इस तरह प्रशासन किसी को पागल तो किसी को शराबी कहकर समस्या से पल्ला झाड़ने की कोशिश करता रहा है।
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