sponsor

शुक्रवार, 9 नवंबर 2012

आकांक्षा का यह कैसा अंत.....



रवि अवस्थी,भोपाल। प्रदेश की पहली महिला उद्यमी का खिताब पाने वाली आकांक्षा राठी क ी मौत से उपजे सवाल अब तक बरकरार हैं। बेहतरीन भविष्य का सपना आंखों में लिए जीवन से संघर्ष करने वाली आकांक्षा ने खुद मौत को गले लगाया या उसे इसके लिए किसी ने मजबूर कर  दिया या फिर उसकी हत्या हुई। ऐसे तमाम सवाल अब तक अनुत्तरित हैं और  रहस्यों का कुहासा गहराता जा रहा है। अब तक जो सामने आया हैं,उससे यह जरूर कहा जा सकता है कि इंदौर पुलिस क ी भूमिका इस पूरे मामले में सवालिया निशानों से घिरी हुई है। उसने न तो आकांक्षा की मौत के पहले के हालात को समय रहते काबू में किया  और  न ही मौत के बाद वह सजग नजर आ रही है।
प्रेम विवाह बना मुसीबत
आकांक्षा और अनिरुद्ध राठी कॉलेज में साथ में पढ़ते थे। इस दौरान उनमें प्रेम हो गया। बताया जाता है कि आकांक्षा ने यूके स्थित लैंशटर से इन्फार्मेशन टेक्नालॉजी एंड मैनेजमेंट की शिक्षा ली थी। अनिरुद्ध भी इसी कालेज में पढ़ता था। इसी दौरान इनके बीच प्रेम हो गया । करीब तीन साल तक इनके बीच अफेयर चला और वर्ष 2004 में आकांक्षा व अनिरुद्ध विवाह बंधन में बंध गए। बताया जाता है,कि अनिरुद्ध के दादा पूनमचंद राठी को छोड़ उनके परिवार के अन्य किसी सदस्य को आंकाक्षा व अनिरुद्ध का रिश्ता पसंद नहीं था। केवल अनिरुद्ध की खुशी के लिए उन्होंने आकांक्षा को भी किसी तरह स्वीकार कर लिया था। दादा क ा अपने पोते के प्रति प्रेम का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अपने पोते व बहू को खुश देखने के लिए उन्होंने पीथमपुर में राठी आयरन एंड स्टील इंडस्ट्रीज के नाम से फैक्ट्री खुलवा दी। इसके संचालन के लिए अनिरुद्ध व आकांक्षा इंदौर में स्कीम नंबर 74 में आ बसे। इसी बीच दादा कपूरचंद का देहांत हो गया। उनके निधन के बाद अनिरुद्ध व आकांक्षा एक बार फिर अकेले पड़ गए। अनिरुद्ध के परिवार जनों ने आकांक्षा की उपेक्षा शुरू कर दी। मृतका के परिवारवालों का आरोप है कि राठी परिवार ने उनकी बेटी को कभी भी अपनी बहू नहीं माना। शादी के बाद से ही वे आकांक्षा को तंग करते रहे। आकांक्षा को अपने दादा ससुर का संरक्षण नहीं मिला होता तो वह इतने दिन भी जिंदा नहीं रह पाती।
आत्मविश्वासी महिला उद्यमी
 दादा से मिले तोहफे को आकांक्षा व अनिरुद्ध ने खुशी-खुशी स्वीकार किया। इसके सहारे इन्होंने अपनी नई जिंदगी की शुरूआत की।  आकांक्षा राठी आयरन एंड स्टील इंडस्ट्री की डायरेक्टर बनी। अनिरुद्ध की ही तरह वह भी मेहनती व मिलनसार थी। नई जगह,नया उद्योग...। चुनौती आसान नहीं थी ,लेकिन मेहनत और लगन के दम पर कम समय में ही राठी युवा दंपति ने राठी आयरन एंड स्टील इंडस्ट्री का नाम ऊंचाईयों  पर पहुंचाया और शोहरत भी हॉसिल की।शासन की उद्योग संवर्धन योजना का लाभ लेने के लिए आकांक्षा ने भोपाल आकर तत्कालीन मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर से मुलाकात की और बाद में मीडिया से भी अपनी बात साझा की थी।  मेहनत रंग लाई। कारोबार चल निकला । वर्ष 2009 तक राठी आयरन एंड स्टील इंडस्ट्री प्रदेश के प्रमुख उद्योगों में शुमार हो गई। अपने पति के साथ कंधे से कंधा मिला कर काम करने का ही नतीजा था ,कि आकांक्षा को  उद्योग जगत में कई पुरस्कारों से नवाजा गया। वह प्रदेश की पहली महिला उद्यमी भी बनी। उद्योग के साथ ही आकांक्षा की रुचि समाज सेवा के क्षेत्र में भी थी। इसके चलते वह न केवल कई सामाजिक संगठनों से जुड़ी बल्कि एक बड़ी दानदाता के रूप में भी उनका नाम उभरा। सामाजिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों में आकांक्षा को  बतौर मुख्य अतिथि  बुलाया जाने लगा। इससे उन्हें जानने और पसंद करने वालों  का दायरा भी बढ़ा।
 मंदी ने दिया तगड़ा झटका 
 उद्योग की सफलता ने आकांक्षा के जीवन में खुशियां भर दी। यहां तक कि अपने ससुराल पक्ष से मिलने वाली उपेक्षा को भी वह भूल गई,लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था। दो साल पहले आए मंदी के दौर ने राठी आयरन एंड स्टील इंडस्ट्रीज को भी प्रभावित किया। वर्ष 2010 से इनके कारोबार की गिरावट का दौर शुरू हुआ। दोनों ने इसे संभालने का भरपूर प्रयास किया। अनिरुद्ध ने परिवार से मदद भी ली। दिल्ली की एक कंपनी ने यहां पैसा भी लगाया, लेकिन सुधार नहीं हुआ। इंदौर की ही मैटलमैन कंपनी ने बीते साल  पीथमपुर यूनिट को लीज पर लिया, लेकिन इस कंपनी को भी यहां सफलता नहीं मिली। करीब छह महीने बाद ही कंपनी ने लीज एग्रीमेंट खत्म कर दिया। इसके बाद करीब तीन माह यूनिट बंद रही। उस पर कर्ज भी चढ़ता जा रहा था। इस दौरान अनिरुद्ध और आकांक्षा दिल्ली चले गए। कर्जदारों के लगातार फोन से परेशान होने पर उन्होंने यह यूनिट मोयरा कंपनी को बेच दी और कर्ज चुकाया। इसके बाद दोनों का दिल्ली से आना-जाना चलता रहता था। गत 4 सितंबर को अनिरुद्ध की संदिग्ध हालात में मौत हो गई। उनकी मौत का कारण हार्ट अटैक बताया गया। पति की मौत के बाद आकांक्षा पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा। कारोबार पहले ही चौपट हो चुका था। इस पर पति की मौत ने उसे पूरी तरह तोड़ कर रख दिया। ससुराल पक्ष से मदद की कोई उम्मीद नही थी।  नतीजतन,आकांक्षा के सेवानिवृत इंजीनियर पिता केपी सिंह ने ही अपनी बेटी को सहारा दिया। तब से  वह नईदिल्ली में द्वारका सेक्टर 3 स्थित संसद विहार अपार्टमेंट के फ्लैट संख्या 504 में ही रह रही थी कि गत 23 अक्टूबर को उसकी मौत की खबर आ गई। बताया जाता है,कि  घटना के वक्त घर में सिर्फ आकांक्षा के पिता और नौकर ही थे। बेटी पर आई मुसीबत ने वृद्ध पिता को भी अवसादग्रस्त बना दिया।
उलझी गुत्थी
  पोस्टमार्टम रिपोर्ट के मुताबिक, आकांक्षा की मौत दम घुटने से हुई। मौके पर पहुंची पुलिस ने उनके गले में एक दुपट्टा बंधा हुआ पाया था, जिसमें आगे की ओर गांठ लगी हुई थी। कमरे की तलाशी के दौरान पुलिस ने उनके कमरे से कुछ एंटी-डिप्रेशन गोलियां भी बरामद की थी। इस बात पर अभी भी असमंजस बरकरार है कि आकांक्षा का  दम घोंटा गया या उसने आत्महत्या की। मृतका के शरीर में एंटी-डिप्रेशन पिल्स की मौजूदगी को लेकर भी डॉक्टरों की टीम असमंजस में है। डॉक्टरों का एक पैनल अभी इसकी  जांच कर रहा है। इस पैनल ने उसके घर से बरामद एंटी-डिप्रेशन पिल्स के सैंपल और बिसरा को रोहिणी फॉरेंसिक साइंस लेबोरेटरी में जांच के लिए भेज दिया है। अब बिसरा रिपोर्ट के जरिए ही साफ हो सकेगा कि उसने एंडी-डिप्रेशन पिल्स का सेवन किया था या नहीं। फॉरेंसिक रिपोर्ट आने में अभी कुछ दिन लग सकते हैं। आकांक्षा के मोबाइल से मिले दो मैसेज ने भी इस प्रकरण को उलझाया। दरअसल, मौत से पहले आकांक्षा ने अपनी महिला मित्र को एसएमएस भेजा था। इसमें उसने  लिखा था कि ‘वे’ इंदौर गए थे, उन्होंने हमारी उन यादों को मिटा दिया, जो हमने एक दूसरे से साझा की थीं, उन्होंने उसे मार दिया, अब ‘वे’ क्या चाहते हैं, क्या अब ‘वे’ मुझे भी मार देना चाहते हैं? वहीं, उसके मोबाइल फोन के ड्राफ्ट बाक्स में एक और मैसेज मिला। इसमें  लिखा था ,कि मां मैं खुद को मार रही हूं, अब मैं और ज्यादा सहन नहीं कर सकती हूं। ‘ये लोग’ मेरे साथ अच्छा बर्ताव नहीं कर रहे हैं। बताया जाता है,कि आकांक्षा अपने ससुराल वालों को हमेशा ‘वे’ या ‘ये लोग’ कह कर ही संबोधित करती थी। दो अलग-अलग तरह के इन संदेशों ने भी आकांक्षा की मौत की गुत्थी को उलझा दिया।
अग्रिम जमानत लेने का प्रयास 
आकांक्षा राठी ने अपनी मौत से सात दिन पहले ही इंदौर में अपने ससुराल पक्ष के चार लोगों के खिलाफ प्रताड़ना का मामला दर्ज करवाया था। इनमें ससुर राजकुमार राठी, सास सुषमा, काका ससुर प्रदीप व देवर सौरभ शामिल हैं। प्रकरण दर्ज होते ही राठी परिवार के इन सदस्यों ने अग्रिम जमानत लेने का प्रयास भी किया। पहले प्रयास में उन्हें असफलता हाथ लगी। बीते मंगलवार को जमानत मिल गई। हैरत की बात यह ,कि प्रकरण दर्ज होने से आरोपियों का अग्रिम जमानत मिलने तक इंदौर पुलिस लचर रुख अपनाए रही। वह आरोपियों की एक तरह से संरक्षक बन गई और इन दस-बारह दिनों के दरम्यान इनकी गिरफ्तारी के लिए कोई ठोस प्रयास नहीं किए गए। इससे आरोपियों को अग्रिम जमानत हॉसिल करने का अवसर मिल गया। वहीं दूसरी ओर आकांक्षा की मौत की जांच को लेकर भी वह वेट एंड सी की नीति अपनाए हुए है। पहले उसे पोस्टमार्टम रिपोर्ट का इंतजार रहा और अब बिसरा रिपोर्ट का।  दूसरी ओर आकांक्षा की माँ अनीता सिंह के बयान ने भी पुलिस के लिए दुविधा पैदा कर दी।  इन्होंने कहा,कि आकांक्षा और अनिरूद्ध में बहुत प्यार था। दोनों एक दूसरे को बहुत चाहते थे। इन लोगों को मालूम हुआ था कि इनके कंपनी के शेयर किसी और को दे दिए गए हैं। इसे लेकर अनिरूद्ध ने अपने परिजनों से अपना हिस्सा मांगा था। इस संबंध में दिल्ली हाई कोर्ट में मामला विचाराधीन है। अनीता सिंह ने कहा कि उनकी बेटी अपने पति की मौत के बाद मानसिक तनाव में रहती थी। इन लोगों का दो वर्ष पूर्व इंदौर स्थित एक प्लांट भी बंद हो गया था। इसे लेकर भी आकांक्षा परेशान थी। इसलिए आकांक्षा ने खुद ही अपनी जीवनलीला समाप्त की है। उनके पूरे परिवार को मानसिक आघात पहुंचा है। आकांक्षा के भाई सार्थक ने भी मां की बातों का समर्थन किया।

ads

Entri Populer