गुरुवार, 8 नवंबर 2012
विदेशी चाकलेट कंपनियों की शह, निशाने पर देशी मावा
रवि अवस्थी, भोपाल। दिवाली आ गई है और एक बार फिर खाद्य विभाग सक्रिय हो उठा है। वह तलाश कर रहा है दूषित या मिलावटी मावे की। बीते कुछ साल से शहर में यह परंपरा सी बन गई है, कि हर प्रमुख त्योहार के पहले अचानक मावा की क्वालिटी संदेह से घिर जाती है। ये सब ऐसे समय पर और कुछ ऐसे अंदाज में होता है,मानो बाकि पूरे साल शहर को बेहतरीन मावा सप्लाई किया जाता है और केवल त्योहार पर खराब मावा यहां के बाजारों में बिकने लगता है। ऐसे हालात में मावा व्यापारियों के इस आरोप को खारिज करना मुश्किल नजर आता है ,कि बहुराष्ट्रीय कंपनियों के इशारे पर उनके उत्पाद की बिक्री बढ़ाने के लिए मावा को बदनाम करने की सुनियोजित साजिश रची जा रही है। इसकी शुरुआत त्योहार के कुछ दिन पहले होती है और पर्व गुजरने के बाद सब कुछ सामान्य तरीके से चलने लगता है। जैसे कुछ हुआ ही न हो।
दीवली आते ही मावा की गुणवत्ता को लेकर एक बार फिर बाजार में हलचल है। दूध में पानी व सोया पावडर ,घी में तेल, व दाल में पत्थरों की मिलावट रोकने में नाकाम प्रशासन तंत्र त्योहार आते ही मावे को लेकर खासा चिंतित है। इसके चलते जगह-जगह नाकेबंदी कर मावा जब्ती क ी कार्यवाही एक बार फिर तेज हो गई है। प्रशासन की इस कार्यशैली से मावे के साथ ही मिठाई के कारोबार चौपट होने की कगार पर है। स्पर्धा के इस दौर में शुद्धता की गारंटी प्राय: हर चीज में लगभग नगण्य है फिर मावा ही निशाने पर क्यों? जानकारों का दावा है,कि बहुराष्ट्रीय चाकलेट कंपनियों के इशारे पर प्रशासन देशी कारोबार को चौपट करने पर उतारु है। यदि नहीं तो फिर घटिया गुणवत्ता वाली दवाएं क्यों सरकारी अस्पतालों में सप्लाई हो रही हैं। दवाओं की गुणवत्ता को परखने वाला नियंत्रक खाद्य एवं औषधि कार्यालय इस मामले में मौन साध कर केवल मावा पर नजर रखे हुए है। नकली मावा के उत्पादन को रोकने व मौके पर मिलावट पकड़ने की बजाए इसकी आपूर्ति के दौरान धरपकड़ किए जाने से संबंधित व्यवसायियों को भारी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ रहा है।
चार दिन पहले ही राजधानी के समीपस्थ र्इंटखेड़ी चौकी पुलिस ने ग्वालियर से भोपाल लाए जा रहे एक ट्रक रोका। यह पता चलते ही कि ट्रक में मावा भरा हुआ है। चौकी के पुलिस कर्मियों की आंखों की चमक बढ़ गई। बिना यह जाने कि मावा शुद्ध है या मिलावटी ,ट्रक को मय माल के जब्त कर गुनगा थाना परिसर में खड़ा करवा दिया गया। इससे थाने के अमले व खाद्य शाखा के निरीक्षकों को तो दीपावली मनाने का मौका मिल गया लेकिन माल के आवक की आस लगाए बैठे मावा कारोबारियों की दीपावली काली हो गई। जाहिर है,कि मावा को चौबीस घंटे से अधिक समय तक इस तरह रोके जाने पर वह स्वत: ही खराब हो गया। यह पहला मौका नहीं था जब प्रशासनिक अमले के इस तरह के रवैए से इन व्यवसायियों को इस तरह परेशानी का सामना करना पड़ा हो। राजधानी में ही दस दिनों के दरम्यान मावा जब्ती की यह दूसरी बड़ी कार्रवाई थी। इससे पहले निशातपुरा पुलिस ने ग्वालियर से लाया जा रहा करीब साढ़ सात लाख रुपए कीमत का 132 डलिया मावा जब्त किया। प्राय: हर त्योहार के मौके पर इस तरह की कार्रवाई कर मिठाई के कारोबार को चौपट किया जा रहा है।
...मावा शुद्ध कैसे मिलेगा?
राजधानी भोपाल हो या प्रदेश का कोई और शहर। ज्यादातर स्थानों पर मावा की आपूर्ति ग्वालियर-चंबल संभागों से ही होती है। दरअसल, इन्हीं संभागों में मावा का व्यापक पैमाने पर उत्पादन होता है। मुरैना व ग्वालियर तो मावा की मंडी के रूप में प्रसिद्ध हैं। वक्त के बदलाव के साथ लालच व स्पर्धा बढ़ने से मावा भी मिलावट से अछूता नहीं रहा। जानकारों के अनुसार,मावा में पाम आॅयल, आलू ,शक्कर ,वनस्पति घी व अरारोट की मिलावट शुरु हुई। मावा में मिलाई जाने वाली यह वस्तुएं भी स्वास्थ्य की दृष्टि से खतरनाक नहीं है,लेकिन मिलावट से मावा की शुद्धता व स्वाद प्रभावित हुआ। ऐसे में मिठाई भी घटिया हुई। कारोबारियों की माने तो मिलावट बढ़ने की एक मुख्य बजह मावा के दाम को नियंत्रित रखना है। महंंगाई के इस दौर में मावा की उत्पादन लागत में भी तेजी से इजाफा हुआ है। राजधानी के एक मावा विक्रेता भाईलाल गुप्ता कहते हैं-ग्राहक ,दूध चालीस रुपए लीटर खरीदने को राजी है,लेकिन मावा उसे सस्ता ही चाहिए। इस पर भी दस तरह की नुक्ताचीनी। व्यवहारिक पक्ष यह ,कि एक लीटर शुद्ध दूध से बमुश्किल दो सौ ग्राम मावा बन पाता है। इस पर र्इंधन, मजदूरी, पैकिंग व परिवहन आदि का खर्चा। इस तरह एक किग्रा मावा की उत्पादन लागत ही आज के दौर में लगभग सवा दो सौ से ढाई सौ रुपए प्रति किग्रा होती है। बाजार में यदि मावा 150 या 160 रुपए प्रति किग्रा बिक रहा है तो इसमें शुद्धता की उम्मीद कैसे की जा सकती है? मावा की कीमत बढ़ने पर मिठाई के दाम भी बढ़ना स्वभाविक है। मिठाई महंगी होने पर यह आम ग्राहक की पहुंच से बाहर होगी। गुप्ता कहते हैं- खरे कारोबार पर भरोसा करने वाले मिलावट के फेर में नहीं पड़ते। इक्का-दुक्का लोगो के कारण बाकी लोग भी बदनाम होते हैं और इन्हें आर्थिक नुकसान व परेशानियों का सामना भी करना पड़ता है।
‘हम अपना मावा खुद बनाते हैं’
बाजार के मावा की बदनामी देख राजधानी के ही कई मिठाई व्यवसायियों ने मावा का उत्पादन भी शुरु कर दिया है। शहर के प्रसिद्ध मिठाई व्यवसायी मनोहर डेयरी के संचालक मनोहर हरवानी ने कहा कि मिठाई के लिए वह अपनी ही डेयरी में मावा भी तैयार करने लगे हैं। इसी से पचास से अधिक तरह की मिठाईयां वे तैयार करते हैं। उन्होंने कहा कि दीपावली के मौके पर मावा बनाने के लिए रोजाना करीब चार हजार लीटर दूध खरीदना पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि मनोहर डेयरी की मिठाईयों की अपनी गुणवत्ता है। यही बजह है,कि मनोहर की मिठाईयों की मांग मुंबई,इंदौर व पाकिस्तान तक है। इसके चलते अब आॅनलाइन विक्रय भी शुरु किया जा रहा है। श्री हरवानी ने कहा कि मावा की मिठाई से परहेज करने वालों के लिए उन्होंने बेक्ड व शुगर फ्री मिठाईयां भी इस बार तैयार कराई हैं। मिठाई उत्पादक ही नहीं मावा में गड़बड़ी की आशंका के मद्देनजर अब अधिक ांश गृहणियां भी त्योहारों पर मिठाई से पहले मावा तैयार कर रही हैं।
.... तो मावा हब क्यों नहीं बनाते?
मनोहर डेयरी के एक अन्य संचालक मुरली हरवानी ने कहा,कि शासन को मिलावटी मावा विक्रय का संदेह है तो वह हर प्रमुख शहर में इसका हब क्यों नहीं बना देता। इसी हब पर आयात होने वाला मावा जमा हो। इसकी जांच पड़ताल की जाए। अमानक पाए जाने वाले मावे को रोक कर शेष की आपूर्ति होने दी जाए। इससे मावा विक्रेता व मिठाई कारोबारी दोनों को सहुलियत होगी और मुफत की बदनामी से भी वे बच सकेंगे। अभी तो गेहूं के साथ घुन पिसने की स्थिति हो रही है। किसी ट्रक में यदि एक-दो डलिया मावा खराब है तो पूरे माल को लंबे समय तक रोक कर रखा जाता है। इससे समूचा माल खराब होता है।
ग्वालियर का मावा हुआ बदनाम
कभी शुद्ध मावे के लिए पहचाना जाने वाला ग्वालियर अंचल अब मिलावटी मावे के लिए बदनाम हो चुका है। मिलावट के डर से आम लोगों का भरोसा भी उठाता जा रहा है। यही कारण है कि लोग बिना मावे की मिटाई(सोन पपड़ी, छैना)को ज्यादा पसंद करने लगे हैं, इस कारण मावे की खपत भी कम हो गई है। जानकारों के अनुसार कुछ साल पहले तक शहर में ही प्रतिदिन ढाई से तीन क्विंटल मावे की खपत होती थी जो अब बमुश्किल एक क्विंटल के आस पास रह गई। मिलावट के चलते शहर से मावा का निर्यात भी प्रभावित हुआ। बताया जाता है,कि ग्वालियर की मोर बाजार मावा मंडी से कभी 60 से 70 क्विंटल मावा निर्यात होता था। जो अब एक तिहाई से भी कम हो गया है। मिलावट के चलते मोर बाजार मावा मंडी ही अक्सर खाद्य अमले के निशाने पर होती है। बीते दो माह के दरम्यान ही इस मंडी से दो दर्जन से अधिक बार मावे के नमूने लेकर जांच के लिए प्रयोगशालाओं में भेजे गए। बताया जाता है कि इनमें से दो नमूनों का मावा घटिया पाया गया। मिलावटी मावा डलियों में पैक होता है और इसे छोटे ट्रक के अलावा यात्री बस व ट्रेनों के माध्यम से भोपाल, इंदौर, होशंगाबाद, विदिशा, उमरिया, खंडवा आदि शहरों में भेजा जाता है। मावा का उत्पादन जिला मुख्यालय के समीपस्थ गांवों में होता है और मावा बनाने वाले ही इसे डालियों में रख हर रोज शाम पांच बजे तक मंडी पहुंचते हैं। यहां एजेंट इनके माल की खरीदी करता है और मावे को जमा कर वह थोक में इसे निर्यात करता है। बताया जाता है,कि मावा की डलियों पर पहले पान वाले का नाम व उसके शहर का नाम लिखा जाता था,लेकिन मिलावटी मावा की धरपकड़ बढ़ने पर नाम की जगह मार्का यानि गुप्त कोड लिखे जाने लगे,ताकि मावा पकड़ाने पर कारोबारी पर इसकी आंच न आए।
ऐसे हो सकती है मिलावट की जांच
मावे पर टिंचर(पोटेशियम आयोडाइड,पानी व आयोडीन के मिश्रण से बनने वाली एक दवा) लगाएं। मिलावटी मावा पर टिंचर लगने पर यह दवा काला निशान देगी ,जबकि शुद्ध मावा होने पर टिंचर का लाल रंग बना रहेगा।
शुद्ध मावे की सुगंध मीठी व भीनी होती है, जबकि मिलावटी मावे में हल्की तेल की दुर्गंध आती है।
शुद्ध मावे में चिकनाई कम होती है, जबकि मिलावटी मावा अधिक चिकना नजर आता है।
असली मावे का स्वाद हल्का मीठा होता है, जबकि मिलावटी मावे में मिलावट की गई सामग्री का स्वाद आएगा।
7 साल तक की जेल का प्रावधान
खाद्य सुरक्षा एवं मानक अधिनियम के तहत मिलावट एक अपराध है। इसके साबित होने पर मिलावट खोर को सात साल तक की जेल या पांच लाख रुपए तक का आर्थिक जुर्माना या दोनों हो सकते हैं। मिलावट पर सजा दिए जाने के मामलों की संख्या नहीं के बराबर है। इससे मिलावट खोरों के हौंसले बुलंद है। हाल ही में एक पड़ौसी राज्य में एसडीएम की अदालत ने एक मिलावट खोर को सबक सिखाने के लिए उसकी दुकान पर यह स्लोगन लिखने का आदेश सुनाया कि ‘मैं मिलावट खोर हूं’। विभिन्न सरकारी योजनाओं में अव्वल रहने वाले इस प्रदेश में फिलहाल इस तरह की कोई नजीर नहीं है।
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Ditulis Oleh : Janprachar.com Hari: 11:36 pm Kategori: मध्यप्रदेश समाचार
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