
सम्मेलन में जिन विषयों पर चर्चा होनी है, उनमें दुनियाभर के उन छह करोड़ 10 लाख बच्चों तक पहुँचना है, जिन्हें बुनियादी प्राथमिक शिक्षा भी नहीं मिल पाती है.अमरीका से अपनी पढ़ाई पूरी करके भारत लौटने के बाद माधव चौहान ने अस्सी के दशक के आख़िर में मुंबई की झोपड़पट्टियों में रहने वाले अशिक्षित लोगों के बीच अपना काम शुरू किया था.यूनिसेफ और अन्य सरकारी संस्थाओं के साथ मिलकर माधव चौहान ने एक कम ख़र्च पर बड़ी संख्या में लोगों को शिक्षित करने का नया तरीक़ा विकसित किया.उनकी चैरिटी संस्था प्रथम मंदिरों और दफ़्तरों में क्लास चलाती है. साथ ही संस्था ने स्थानीय लोगों के बीच से वॉलिंटियर्स को भी नियुक्त किया है.
धीरे-धीरे ये अन्य शहरों और राज्यों में फैल गया और फिर ये भारत के वंचित बच्चों को शिक्षा प्रदान करने वाले सबसे बड़ा ग़ैर सरकारी संगठन बन गया.ज़्यादा से ज़्यादा लोगों तक अपने काम का प्रसार करने के अलावा माधव चौहान ने शिक्षा की गुणवत्ता पर भी ज़ोर दिया. उन्होंने एक परियोजना बनाई ताकि उन बच्चों की समस्याओं पर भी ध्यान दिया जा सके, जो स्कूल तो जाते हैं, लेकिन उनकी शिक्षा का स्तर काफ़ी कम है.उन्होंने शिक्षा परियोजनाओं के प्रभाव की निगरानी के लिए भी एक व्यवस्था बनाई ताकि आगे की कोशिशें सावधानीपूर्वक की जा सके.वाइज पुरस्कार हासिल करते हुए उन्होंने कहा, "क़रीब 25 साल पहले मैंने देखा था कि मेरे देश के लाखों ग़रीब लोगों के जीवन में सुधार के लिए नई सोच की आवश्यकता है. ये पुरस्कार एक बड़ी बात है, जो मुझे यह अहसास कराती है कि अभी बहुत कुछ किया जाना बाक़ी है. ये मेरे लिए बहुत बड़ा सम्मान है.डॉक्टर अब्दुल्ला बिन अली अल थानी ने कहा कि पुरस्कार विजेता माधव चौहान लाखों लोगों के जीवन में रोशनी लेकर आए हैं.News from BBC hindi news
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