सूचना प्रोद्यौगिकी (आईटी) की धारा 66 के प्रावधानों को चुनौती देने वाली एक छात्र की जनहित याचिका को सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट ने मंजूर कर लिया है.
हाल के दिनों में ऐसे कुछ मामले सामने आए हैं जब फेसबुक जैसी सोशल नेटवर्किंग साइट पर कथित अनुचित टिप्पणियों के लिए पुलिस ने इस धारा का इस्तेमाल किया. पुलिस पर आरोप लगे कि इन लोगों को आईटी की धारा 66 के तहत प्रताड़ित किया गया.
इसी कानून में एक धारा है 66 ए जिसमें झूठे और आपत्तिजनक संदेश भेजने पर सजा का प्रावधान है.आईटी कानून सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम इलेक्ट्रॉनिक संचार माध्यमों के बीच होने वाली सूचना, जानकारी और आंकड़ों के आदान प्रदान पर लागू होता है.
इस धारा के तहत कंप्यूटर और संचार उपकरणों से ऐसे संदेश भेजने की मनाही है जिससे परेशानी, असुविधा, खतरा, विघ्न, अपमान, चोट, आपराधिक उकसावा, शत्रुता या दुर्भावना होती हो.
'पहले गुहार क्यों नहीं लगाई'
इसका उल्लंघन करने पर तीन साल तक की सजा और जुर्माना हो सकता है
सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि नागरिकों की प्रताड़ना के मामलों पर वह स्वत: संज्ञान भी लेती रही है.
जनहित याचिका में आईटी एक्ट के प्रावधानों में बदलाव की मांग की गई है ताकि ऐसे किसी मामले में अदालती आदेश के बिना पुलिस किसी को गिरफ्तार नहीं कर सके.
भारत के मुख्य न्यायाधीश अल्तमस कबीर ने इस याचिका को मंजूर कर लिया है और फौरन सुनवाई वाले मामलों की सूची में शामिल किया है.
मुख्य न्यायाधीश ने इस बात पर हैरानी जताई कि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में किसी ने पहले गुहार क्यों नहीं लगाई.
आईटी के एक्ट के कुछ प्रावधान हाल में तब चर्चा में आए थे जब शिवसेना के दिवंगत नेता बाल ठाकरे के निधन के बाद मुंबई बंद के मुद्दे पर दो लड़कियों को उनकी फेसबुक टिप्पणियों की वजह से पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था.
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