रवि अवस्थी,भोपाल। ‘तेल जले महाराज का,मिर्जा गाएं फाग’....। यह कहावत प्रदेश में घायलों को अस्पताल तक पहुंचाने के लिए 108 नाम से सेवा दे रही जीवीके ईएमआरआई फाउंडेशन व राज्य सरकार पर पूरी तरह चरितार्थ होती है। स्वास्थ्य सेवाओं में भ्रष्टाचार की यूं तो अनेक नजीरें हैं लेकिन नया‘खेल’ इस आपात सेवाओं क ो लेकर है। योजना में बजट समूचा सरकार का और काम दक्षिण की निजी फर्म को। वह भी बिना किसी प्रतिस्पर्धा के। कहा जाता है कि इस संस्था के कर्ताधर्ता भाजपा के एक वरिष्ठ नेता के करीबी हैं। इन्हीं के दबाव में भाजपा शासित अन्य राज्यों की तरह प्रदेश सरकार ने भी इस फर्म को उपकृत करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। स्वास्थ्य सेवाओं के अलावा सड़क निर्माण के ठेके देने में भी फर्म के प्रति काफी उदारता बरती गई।
‘जीवीके’ यानि गणपति वेंकट कृष्णा रेड्डी ,आंध्रप्रदेश के एक युवा उद्यमी। बड़े उद्योग के क्षेत्र में इन्होंने पहले पॉवर संयंत्र की स्थापना 1997 में की। तब देश में एनडीए की सरकार थी और भाजपा के वरिष्ठ नेता अटल बिहारी बाजपेयी प्रधानमंत्री। यहां यह बताना इसलिए जरूरी है कि इस अल्पावधि में इस फर्म ने दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की की और आज यह ऊर्जा के अलावा रिर्सोसेज,एवीएशन, ट्रांसपोर्टेशन,हॉस्पिटीलिटी व लाइफ साइंस समेत विभिन्न क्षेत्रों में काम कर रही है। हास्पिटीलिटी यानि घायलों को तुरंत चिकित्सा सेवा मुहैया करवाने उन्हें अस्पताल पहुंचाना । यह कार्य भी इस समूह द्वारा किया जा रहा है। इसे इएमआरआई अर्थात इमरजेंसी मैनेजमेंट एंड रिसर्च सेंटर नाम दिया गया है। जीवीके फाउंडेशन के बैनर तले दी जा रही इस आपात सेवा के लिए टोल फ्री नंबर 108 है और आम बोलचाल की भाषा में इसे इसी नाम से जाना जाता है। जीवेके इएमआरआई वर्तमान में मध्यप्रदेश के अलावा छत्तीसगढ़, गुजरात,हिमाचल प्रदेश, आंध्रप्रदेश, उत्तराखंड, गोआ,तमिलनाडू, कर्नाटक,असम, मेघालय,उत्तरप्रदेश ,दादर नगर हवेली व दमन दीव में अपनी सेवाएं दे रहा है। खास बात यह है कि जीवीके ईएमआरआई फाउंडेशन की सेवाओं वाले इन अधिकांश राज्यों में भाजपा या एनडीए के घटक दलों की सरकार है। जो यह बताने के लिए काफी है कि भाजपा या उससे संबंद्ध घटक दल जीवीके पर खासे मेहरबान रहे हैं। ‘अतिथि देवो भव:’ पर यकीं करने वाली प्रदेश की भाजपा सरकार भी इनमें से एक है। मप्र में जीवीके की लांचिंग यूं तो वर्ष 2007 में हुई थी लेकिन इसकी सेवाओं की शुरुआत जुलाई 2009 में हुई। पहले चरण में संस्था ने प्रदेश के चार जिलों में 108 की सेवाओं की शुरुआत चंद मोबाइल वेनों के साथ की और इसके उद्घाटन अवसर पर दावा किया गया था कि साल के अंत तक संस्था करीब सौ मोबाइल वेन घायलों की सेवा के लिए सड़कों पर उतारेगी। इन तीन सालों में जीवीके ईएमआरआई की सेवाएं नौ जिले(भोपाल,इंदौर, ग्वालियर, रीवा, सागर, जबलपुर, दतिया, दमोह व सीहोर ) में शुरु हो सकी। इस कार्य के लिए करीब 102 मोबाइल वेन लगाई गई हैं। इस आपात सेवा के लिए राज्य शासन राष्ट्रीय स्वास्थ्य ग्रामीण मिशन के खाते से करोड़ों रुपए फर्म को सालाना अदा कर रही है। हैरत की बात यह,कि आवश्यक उपकरणों से सुसज्जित मोबाइल वेन खरीदने से लेकर इनके संचालन व मरम्मत का तमाम खर्च सरकार द्वारा वहन किया जा रहा है। यहां तक कि फर्म के कार्यालय का खर्च भी सरकार द्वारा उठाया जा रहा है और यह तमाम धनराशि अग्रिम मुहैया कराई जा रही है। तब सवाल यह है कि इस तरह की सुविधाएं व आर्थिक मदद देकर ही सेवाएं ली जानी थी तो फिर यह कार्य प्रदेश की ही किसी संस्था या बेरोजगारों को प्रशिक्षण व रोजगार देकर क्यों नहीं कराया जा सकता? जीवीके ईएमआरआई के स्थानीय कर्ताधर्त्ताओं का दावा है कि इसके बदले में वे टेक् नालॉजी व सेवाएं मुहैया करा रहे हैं। सूत्रों का दावा है ,कि टेक्नालॉजी के नाम पर संस्था ने केवल एक जीपीएस (ग्लोबल पोजीशनिंग सिस्टम) आधारित सॉफ्वेयर तैयार किया है जो एंबुलेंस वाहनों के मूवमेंट को नियंत्रित करता है। गौरतलब है,कि इसी तकनीक पर भोपाल,इंदौर व दीगर शहरों में निजी रेडियो टैक्सी भी संचालित हो रही हैं तब जीवीके को आपात सेवाओं के लिए इस तरह उपकृत किया जाना समझ से परे है। सूत्रों का दावा है कि जीवीके पर यह मेहरबानी जीवीके के कथित संरक्षक उक्त वरिष्ठ भाजपा नेता के दबाव में की गई जिनका पार्टी में भी खासा दबदबा है।
सेवाओं पर सवालिया निशान
सूत्रों के मुताबिक, आपात सेवाओं के नाम पर अपने मोबाइल संसाधनों का दो फ ीसदी भी इस्तेमाल नहीं कर रही है जबकि रखरखाव के नाम पर प्रति वाहन करीब 1.40 लाख रुपए सरकार से प्रतिमाह वसूला जा रहा है। वहीं वाहनों व उपकरणों की मरम्मत के नाम पर भी वसूली जारी है। बताया जाता है कि आपात सेवाओं के नाम पर स्वास्थ्य विभाग द्वारा प्रतिमाह डेढ़ करोड़ रुपए से अधिक राशि का भुगतान किया जा रहा है जबकि सेवाएं देनी वाली संस्था के स्थानीय व जिला स्तरीय कार्यालयों में समुचित कर्मचारी हैं न दीगर जरूरी सुविधाएं। इसके चलते संस्था उसके पास आने वाले सभी इमरजेंसी कालों पर अपनी सेवाएं ही नहीं दे पाती। भुक्तभोगियों का दावा है कि हादसे या घायल के बारे में सूचना दिए जाने पर 108 के कर्मचारी तुरंत न पहुंच कर पहले सत्यापन प्रक्रिया को अपनाते हैं। नतीजतन,घायलों को त्वरित सेवा नहीं मिल पाती। जीवीके की 108 वेन जब तक मौके पर पहुंचती है या तो घायल अस्पताल पहुंच चुका होता है या गंभीर हालत में घटना स्थल पर ही दम तोड़ देता है। अपनी इस कमी को छिपाने के लिए जीवीके फर्जी कॉल के बहाने का सहारा लेती है। इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि संस्था के पास इस तरह के कॉल नहीं पहुंचते हों लेकिन इस तरह के अपवादों क ो आधार बना कर वास्तविक घटनाओं के वक्त भी मौके पर व समय पर नहीं पहुंचने से लोगों को इस आपात सेवा का समूचित लाभ नहीं मिल पा रहा है। सूत्रों के मुताबिक विभाग के वित्तीय संयुक्त संचालक मनोज श्रीवास्तव ने भी जीवीके की आपात सेवाओं के नाम पर हो रही धन की इस बर्बादी पर चिंता जताई है। बताया जाता है,कि उन्होंने अपनी रिपोर्ट राज्य शाासन को सौंपने के साथ ही मिशन के जिम्मेदार अधिकारियों को भी इससे अवगत कराया है।
शेष जिलों में भी सेवाएं देने की तैयारी
इधर, दक्षिण भारत की इस संस्था पर मेहरबान राज्य सरकार प्रदेश भर में 108 की सेवाओं को शुरु करने की तैयारी में है। गत दिनों राज्य मंत्रिपरिषद ने भी इस आशय के प्रस्ताव को हरी झंडी भी दी। विभाग की ओर से इस मामले में पूरी तैयारी है लेकिन मोबाइल वेन सुलभ नहीं होने से यह काम फिलहाल अटका हुआ है।
राजस्थान में हो चुका है घोटाला
इसी तरह की आपात सेवाओं के नाम पर पड़ौसी राज्य राजस्थान में बड़ा घोटाला सामने आया है। आश्चर्यजनक तथ्य यह है कि अपने शासन वाले राज्यों में जीवीके को उपकृत कर रही भाजपा ने वहां इस मामले को लेकर खासा वखेड़ा खड़ा किया। राजस्थान विधानसभा में इस मामले को लेकर खासा हंगामा भी हुआ। बताया जाता है कि राजस्थान में जिगित्सा नामक कंपनी यह सेवा दे रही है। यह कंपनी गृह मंत्री पी चिदंबरम और प्रवासी भारतीय मामलों के मंत्री वायलयार रवि के बेटे चला रहे हैं। कंपनी पर फर्जी बिलों के जरिए करोड़ों रुपए हथियाने का आरोप है। सदन के उपनेता भाजपा के घनश्याम तिवाड़ी का आरोप था कि ये घोटाला उत्तर प्रदेश के एनआरएचएम की तर्ज पर किया गया है और इसकी सीबीआई से जांच होनी चाहिए। दरअसल, राजस्थान में मरीजों को एंबुलेंस की सेवा बमुश्किल ही मिल पाती है, इसके विपरीत मरीजों के नाम पर बिल का मीटर तेजी से दौड़ रहा है। एंबुलेंस की एक ही ट्रिप में चार-चार मरीजों के नाम पर पैसे उठा लिए, कभी मेले में खड़ी एंबुलेंस ने ही मरीजों को लाने का दोहरा भुगतान भी उठा लिया, तो कभी फर्जी कॉल की एंट्री से भुगतान कर दिया गया। राजस्थान ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के रिकॉर्ड के सरकारी दस्तावेज कुछ यही कहानी कह रहे हैं। दरअसल इस गड़बड़ी का खुलासा सूचना के अधिकार अधिनियम अंतर्गत ही हो सका। एक स्थानीय एक्टिविस्ट की सक्रियता पर यह बात सामने आई कि बीते माह ही जिगित्सा ने ऐसी 50 एंबुलेंस का पैसा ले लिया गया जो दरअसल काम ही नहीं कर रही हैं। जांच में पाया गया कि जिकित्सा हेल्थकेयर ने एनआरएचएम में सितंबर में 55326 ट्रिप दिखाए, जबकि हकीकत में 37458 ट्रिप ही थे। जिगित्सा हेल्थ केयर कंपनी केंद्रीय गृह मंत्री पी चिदंबरम और प्रवासी भारतीय मामलों के मंत्री वायलयार रवि के बेटों की ओर से चलाई जा रही है। इस कंपनी को काम सौंपने से पहले टेंडर में जो शर्तें निर्धारित थीं उनमें बदलाव किया गया। 108 एंबुलेंस सेवा के संचालन में नियम ये था कि तीस फीसदी एंबुलेंस एडवांस लाइफ सपोर्ट सिस्टम के साथ होंगी, लेकिन जिगित्सा को ठेके में एडवांस एंबुलेंस सेवा की शर्त हटा दी गई। बताया जाता है कि टेंडर में शर्त थी कि एक एंबुलेंस को 5 ट्रिप अनिवार्य रूप से करने होंगे और ऐसा नहीं करने पर जुर्माना देना होगा, लेकिन जिगित्सा की मांग पर 05 ट्रिप प्रतिदिन की शर्त हटा दी गई। उसकी जगह प्रतिदिन 30 किलोमीटर को एक ट्रिप माना गया। 45 किमी पर डेढ़ और 60 किलोमीटर गाड़ी चलने पर उसे दो ट्रिप मान लिया गया।आरोप है कि रसूखदारों की फर्म होने की वजह से ही जुलाई 2010 से नवम्बर 2011 तक हर महीने हर एंबुलेंस पर 94 हजार 899 रुपए रुपये दिए गए। इसके हिसाब से 34 करोड़ 48 लाख 55 हजार 350 रुपए का भुगतान किया गया। आरोप ये भी है कि फर्म के कॉल सेंटर पर डॉक्टर नहीं होने के बावजूद भी एंबुलेंस के नर्सिंग स्टाफ को एक करोड़ 58 लाख रुपए का भुगतान किया गया जबकि कानून ये कहता है कि बगैर डॉक्टर की सलाह के कोई भी नर्सिंग कर्मी मरीज को दवाएं नहीं दे सकता। इस धांधली को सामने लाने वाले वहां के एनआरएचएम कंसलटेंट ललित कुमार त्रिपाठी का कार्यकाल भी नहीं बढ़ाया गया। जिगित्सा हेल्थकेयर ने इनके खिलाफ स्वास्थ्य महकमे के प्रमुख सचिव से घूस मांगने की शिकायत कर दी। इसके बाद सरकार ने त्रिपाठी के कॉन्ट्रैक्ट को रिन्यू नहीं किया।
............आर्थिक सहयोग सरकार का है। हम केवल तकनीक व सेवाएं दे रहें हैं। इस सेवा के शुरु होने पर अनेक लोगों की जान बचाई जा सकी है। अन्य जिलों में भी 108 की सेवाएं शीघ्र शुरु की जाएंगी। एमओयू की शर्ते तो विस्तृत हैं, सरसरी तौर पर इन्हें बता पाना संभव नहीं है।
पराग पांडे, क्षेत्रीय कार्यालय प्रमुख जीवीके ईएमआरआई
............ 108 की सेवाओं के मामले में राज्य शासन का पूरा-पूरा सहयोग है। इस सेवा को लेकर उठाए गए अन्य सवालों पर कोई जवाब नहीं दे सकता।
डा.ॅ राजीव श्रीवास्तव उपसंचालक एनआरएचएम
गुरुवार, 11 अक्टूबर 2012
‘108’ पर मेहरबान सरकार
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Ditulis Oleh : Janprachar.com Hari: 11:24 pm Kategori: मध्यप्रदेश समाचार
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