रवि अवस्थी/भोपाल। राज्य सरकार अब कुष्ठ रोगियों को डेढ़ सौ की जगह हजार रुपए मासिक पेंशन देगी। यही नहीं इनकी बस्तियों में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र,आंगनवाड़ी केंद्र भी खोले जाएंगे और इनके योग्य रोजगार मुहैया कराने सरकार इन्हें प्रशिक्षण भी देगी। यह तमाम घोषणाएं बीते पखवाड़े मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने उस वक्त की जब एक विदेशी संस्था के प्रतिनिधिमंडल ने यहां आकर मुख्यमंत्री को प्रदेश के कुष्ठ रोगियों की हकीकत से अवगत कराया। इसके बाद ही सरकार हरकत में आई और आनन-फानन में कुष्ठ रोगियों के लिए सौगातों की बौछार हो गई। विदेशी संस्था ने बताया कि प्रदेश में कुष्ठ रोग तेजी से पनप रहा है,लेकिन सरकारी आंकड़ों में रोगियों की तादाद अब भी वर्षों पुरानी दर्शाई जा रही है। यह तमाम तथ्य इस बात की ओर इशारा करते हैं,कि सरकारी तंत्र कुष्ठ रोगियों की प्रति बेपरवाह बना हुआ था।
जापान स्थित निपॉन फाउण्डेशन बीते 27 सालों से विश्व भर के कुष्ठ रोगियों की सेवा के लिए कार्य कर रहा है। संस्था की शाखा भारत में भी स्थापित है। इसके माध्यम से मप्र समेत विभिन्न राज्यों के कुष्ठ रोगियों का दवाएं मुहैया करना उनकी देखभाल व नए रोगियों की खोज का काम किया जा रहा है। निपॉन फाउण्डेशन द्वारा प्रदेश में कि या गया सर्वेक्षण बताता है, कि राज्य में कुष्ठ रोगियों की तादाद तकरीबन चार हजार है और इनकी लगभग 34 बस्तियां हैं। जबकि सरकारी रिकार्ड राज्य में कुष्ठ रोगियों की महज चार बस्तियां दर्शा रहा है। यही नहीं इसके अनुसार कुष्ठ रोगियों की संख्या भी कुछ सैकड़ा भर है। हैरत की बात यह है,कि प्रदेश में कुष्ठ रोग कभी ग्वालियर-चंबल व विंध्य इलाके में सर्वाधिक पाया जाता था लेकिन इसकी पैठ अब मालवांचल में सर्वाधिक है। फाउण्डेशन से संबंद्ध मप्र लेप्रोसी स्टेट लीडर कमेटी के स्टेट लीडर सारंगा गायधने कहते हैं-सबसे ज्यादा कुष्ठ रोगी तो इंदौर जिले में ही हैं। यहां अब तक 1009 नए रोगी चिन्हित किए गए हैं। जिले में इनकी 9बस्तियां हैं जबकि सरकारी रिकार्ड में केवल दो बस्तियों का जिक्र है। इसी तरह उज्जैन जिले में 592 कुष्ठ रोगी मिले। इनकी तीन बस्तियां है जबकि सरकारी रिकार्ड में एक। धार जिले में भी 442 रोगी मिले तो पश्चिमी निमाड़ के बड़वानी जिले में 306 व बुरहानपुर में 481 कुष्ठ रोगी मिले। गायधने के अनुसार उनकी संस्था ने दो साल तक पूरे प्रदेश में सर्वेक्षण किया है। राज्य में 14 जिलों के 85 विकासखंडों में आए दिन नए रोगी मिल रहे हैं। विशेषकर आदिवासी विकासखंडों में इनकी अधिकता है। कुष्ठ रोगियों को कोई सुविधाएं भी नहीं है। सरकार ने उन्हें उनके हाल पर छोड़ रखा है। यही बात हमने मुख्यमंत्री से कही। समाज में व्याप्त भ्रांतियों के चलते कुष्ठ रोगी पहले ही सामाजिक तौर पर पहले ही उपेक्षा का शिकार हैं। इस पर यदि सरकार का रवैया भी इसी तरह का होगा तो कुष्ठ रोगी कहां जाएंगे?
स्वास्थ्य विभाग सुस्त
दो साल पहले भारत शासन द्वारा राज्य के आठ जिलों में कराए गए नमूना सर्वेक्षण में ही कुष्ठ रोगियों के चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए थे। बावजूद इसके राज्य के स्वास्थ्य विभाग का रवैया कुष्ठ रोगियों के प्रति उपेक्षा भरा रहा। यही नहीं उच्च स्तरीय समीक्षा बैठकों में भी कुष्ठ रोग को अक्सर गलत जानकारी परोसी जाती रही। इसकी परिणिति निपॉन फाउण्डेशन द्वारा उजागर की गई वस्तु स्थिति के रूप में सामने आई। किसी राज्य सरकार के लिए इससे अधिक शर्म की बात ओर क्या हो सकती है, कि कोई विदेशी संस्था उसे राज्य की जमीनी हकीकत से अवगत कराए। बताया जाता है,कि कुष्ठ रोगियों की संख्या के लिए समुदायिक स्तर पर सालों से सर्वे हुआ ही नहीं है। कमोवेश यही स्थिति रोग के मामले में प्रचार-प्रसार को लेकर है। नतीजतन, जागरूकता की कमी के कारण लोग कुष्ठ के प्राथमिक लक्षणों को पहचान नहीं पाते और रोग बढ़ने पर उन्हें इसका अहसास होता है। बिडबंना यह कि अभी भी कुष्ठ को समाजिक कलंक मानकर मरीज और परिजन इस रोग को छिपाने की कोशिश करते हैं या अपने स्तर पर अयोग्य डॉक्टरों से उपचार कराते हैं। इससे संक्रमण बढ़ जाता है। इधर,स्वास्थ्य महकमा कुष्ठ रोग उन्मूलन के नाम पर केंद्र से मिली धनराशि की बंदरबांट कर रहा है। सूत्रों के मुताबिक, राष्ट्रीय कुष्ठ नियंत्रण कार्यक्रम के तहत मिलने वाली राशि जिलों तक पहुंच ही नहीं पाती। बाद में फर्जी आंकडे तैयार कर इस राशि का उपयोग होना दर्शा दिया जाता है।
विश्व भर में कुष्ठ रोगियों की सेवा
एक ओर राज्य के स्वास्थ्य अधिकारी जहां प्रदेश के ही कु ष्ठ रोगियों के प्रति बेपरवाह हैं। वहीं टोक्यो जापान स्थित निपॉन फाउण्डेशन के चेयरमेन येहोई सासाकावा विश्व भर के कुष्ठ रोगियों के उपचार व उन्हें समाज की मुख्य धारा से जोड़ने के लिए कार्य कर रहे हैं। वह कहते हैं- कुष्ठ रोगियों को लेक र मैंने अब तक 121 देशों के राष्ट्र प्रमुखों से मुलाकात की। हम किसी से आर्थिक मदद भी नहीं लेते। फाउंडेशन अपनी ओर से सभी देशों के कुष्ठ रोगियों के लिए दवाएं नि:शुल्क उपलब्ध करा रहा है। इसके अलावा नए रोगियों की खोज, कुष्ठ रोग को लेकर समाज में फैली भ्रांति को दूर करने के लिए भी हम कार्य कर रहे हैं। भारत में इसके लिए सासाकावा इंडिया लेप्रोसी फाउण्डेशन नईदिल्ली में स्थापित किया गया है। संस्था द्वारा किए गए गए सर्वेक्षण में यह बात सामने आई कि विश्व के कुल कुष्ठ रोगियों के 69 प्रतिशत रोगी अकेले भारत में हैं। इस नाते कुष्ठ रोग उन्मूलन की दिशा में कार्य करने की यहां आवश्यकता है और इसके लिए निपॉन फाउण्डेशन सक्रियता से कार्य कर रहा है। मप्र की स्थिति की जानकारी मिलने पर उन्होंने यहां मुख्यमंत्री के समक्ष वस्तु स्थिति का खुलासा किया। प्रसन्नता इस बात की है कि श्री चौहान ने उनकी बात को ध्यान से न केवल सुना बल्कि सहृदयता पूर्वक कुष्ठ रोगियों की पेंशन राशि बढ़ाने व अन्य समस्याओं क ा निराकरण यथा शीघ्र करने का भरोसा भी दिलाया। श्री सासाकावा ने कहा कि जापान में कुष्ठ रोग अब पूरी तरह समाप्त हो चुका है और यह अच्छी चिकित्सा सेवा की बदौलत हुआ। वह कहते हैं- कुष्ठ रोग को लेकर समस्याएं दो अलग-अलग तरह की हैं। दवा से यह रोग पूरी तरह ठीक हो सकता है,लेकिन स्वस्थ होने के बाद भी समाज कुष्ठ रोग से ग्रसित रहे व्यक्ति को अंगीकार नहीं करता। उससे जीवन भर अछूतों की तरह व्यवहार किया जाता है। इस दिशा में जागृति लाने के लिए समन्वित प्रयासों की जरूरत है। मैंने भारत में भी केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के महानिदेशक से इस बारे में चर्चा की। दरअसल,इस मामले में मीडिया की भूमिका कहीं अहम है। फाउण्डेशन चेयरमेन ने प्रदेश यात्रा के दौरान गांधीनगर स्थित महात्मागांधी कुष्ठ आश्रम,सीहोर कुष्ठ आश्रम व इंदौर कुष्ठ आश्रमों में पहुंच कर कुष्ठ रोगियों से मुलाकात भी की। उन्हें दुलारा व उनके स्वास्थ्य की जानकारी भी ली।
पक्के आवास,हजार रुपए पेंशन देगी सरकार
गरीबों के प्रति हमेशा सहानुभूति रखने वाले मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने भी प्रदेश के कुष्ठ रोगियों की वास्तविक स्थिति का खुलासा होते ही उनकी मदद में कोई कसर नहीं छोड़ी। श्री चौहान ने कहा , कि प्रदेश में कुष्ठ रोगियों के सामाजिक-आर्थिक पुनर्वास की कार्य योजना बनायी जायेगी। कुष्ठ रोगियों को मिलने वाली सामाजिक सुरक्षा पेंशन डेढ़ सौ रुपए से बढ़ाकर एक हजार रुपए की जायेगी। उन्होंने निपॉन फाउण्डेशन के कार्यो की सराहना करते हुए कहा कि राज्य सरकार श्री सासाकावा के मिशन में सभी संभव सहयोग करेगी। हम मिल कर काम करेंगे। प्रदेश में कुष्ठ रोगियों को आवास के पट्टे देने और अन्त्योदय अन्न योजना में राशन कार्ड देने की योजना बनायी जायेगी। इसके अलावा कुष्ठ रोगियों के उपचार और उन्हें रोजगार के लिये प्रशिक्षण देने की व्यवस्था भी होगी। कुष्ठ रोगियों की कालोनियों में स्वास्थ्य केंद्र और आँगनवाड़ी शुरू करने के लिये सर्वे करवाया जायेगा। इससे पहले वह राज्य मानवअधिकार आयोग के अध्यक्ष आर्येन्द्र कुमार सक्सेना से भी मिले। इस पर आयोग अध्यक्ष श्री सक्सेना ने कहा कि प्रदेश की कुष्ठरोग बस्तियां समाप्त करने के लिए आयोग जल्दी ही राज्य सरकार को अनुशंसाएं भेजेगा। आयोग का मानना है कि कुष्ठरोग बस्तियों से छुआछूत का भाव लगातार बढ़ता जा रहा है।
समय के साथ बदली सोच
कुष्ठ रोग को लेकर छुआछूत का रोग माना जाता है,जबकि यह साफ हो चुका कि कुष्ठ रोग छूने से नहीं फैलता। बावजूद इसके समाज में इस रोग को लेकर अनेक तरह की भ्रांतियां व्याप्त हैं। खासकर आदिवासी बहुल इलाकों में कुष्ठ रोगी के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार आज भी होता है। एक समय तो ऐसा था जब कुष्ठ रोग के संबंध में भ्रांतियों के चलते ऐसे रोगियों को जिंदा गाड़ दिया जाता था। अलीराजपुर जिले की जोबट तहसील के ग्राम चमार बेगडा में तो 11-12 वर्षों पूर्व एक महिला ने अपने कुष्ठ रोगी पति को जमीन में जिंदा गाड़ देने जैसी घटना को अंजाम दिया था। कुष्ठ के मरीजों को समाज की मुख्यधारा से अलग-थलग रखना एक सामान्य प्रवृत्ति रही है। कुष्ठ रोग होने पर परिवार के सदस्य को इस डर से घर से ही निकाल दिया जाता है कि छूत की बीमारी दूसरों में भी फैलेगी। कोढ़ी का जीवन नर्क बन कर रह जाता है, चौतरफा बहिष्कार के सिवाए उसे कुछ नहीं मिलता। वक्त के बदलाव के साथ समाज की सोच में अब बदलाव आ रहा है,लेकिन इस परिवर्तन की गति अत्यंत धीमी है।
ऐसे भी समाजसेवी......
प्रदेश में भी कुष्ठ रोगियों की सेवा करने वाले समाज सेवियों की कमी नहीं रही। गलते हाथ-पैर, शरीर पर भिनभिनाती मक्खियाँ और ठूठ के समान दिखने वाले हाथों में कटोरा। कुष्ठ रोग की कल्पना मात्र से अच्छे-अच्छों का सारा शरीर कांप जानता है,लेकिन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ को अपना जीवन समर्पित करने वाले अरौन जिला गुना निवासी सदाशिवराव गोविन्दराव कात्रे ने समाज और परिवार द्वारा त्याग दिए जाने वाले ऐसे ही रोगियों की सेवा का बीड़ा 50 साल पहले उठाया था। सन 1962 में छत्तीसगढ़ के जांजगीर-चांपा (तत्कालीन मध्यप्रदेश के बिलासपुर) जिले के चांपा से 8 किलोमीटर दूर बम्हनीडिह मार्ग में सोंठी नामक स्थान पर कात्रेजी ने भारतीय कुष्ठ निवारक संघ की स्थापना की। किसी कुष्ठ रोगी द्वारा स्थापित यह विश्व की यह पहली कुष्ठ निवारक संस्था है। जो इस साल अपना स्वर्ण जयंती वर्ष मना रही है। 50 सालों पहले बोया गया सेवा का बीज आज वटवृक्ष बनकर सैकड़ों कुष्ठरोगियों और उनके बच्चों को आश्रय के साथ-साथ समाज को प्रेरणा भी दे रहा है। आश्रम में स्वस्थ होकर कई लोग आज समाज में सामान्य जीवन जी रहे हैं तो कई आश्रम में रहकर कुष्ठ रोगियों रोगियों की सेवा में ही स्वयं को समर्पित कर चुके हैं।
सोमवार, 3 सितंबर 2012
कुष्ठ रोगियों का मामलाः विदेशी संस्था ने दिखाई राह
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Ditulis Oleh : Janprachar.com Hari: 9:01 am Kategori: मध्यप्रदेश समाचार
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