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शनिवार, 1 सितंबर 2012

ऐसे तो बन गई लाड़लियां 'लक्ष्मी'



 रवि अवस्थी,भोपाल। राज्य शासन की  महत्वाकांक्षी योजना लाड़ली लक्ष्मी  देश के कुछ चुनिंदा राज्यों में भले लोकप्रिय हो लेकिन प्रदेश में इसके हितग्राही योजना से नाखुश है। राष्ट्रीय बचत पत्रों (एनएससी)की किश्तें समय पर जारी नहीं होने व इन पत्रों के वक्त पर नहीं मिलने से  लाड़लियों के 21 साल में लखपति बनने के आसार क्षीण हो गए हैं। आलम यह, कि पहले साल में पंजीकृत लाड़लियों को एनएससी की दूसरी और तीसरी किश्त ही नहीं मिली है, जबकि  इन्हें अब तक चौथी व  पांचवी किश्त के बचत पत्र मिल जाना चाहिए थे। राज्य विधानसभा के बीते सत्र में भी यह मामला उठा था लेकिन विपक्ष के हंगामें की भेंट चढ़े सत्र के समय से पहले स्थगित होने से यह सुर्खी नहीं बन सका। राज्य में प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस भी योजना के क्रियान्वयन व एनएससी के आवंटन को लेकर आपत्ति जता चुका है।
 जानकार सूत्रों के अनुसार, राज्य शासन अपनी इस महत्वाक ांक्षी योजना पर अब तक करीब तीन हजार करोड़ रुपए खर्च कर चुका है। मौजूदा वित्तीय वर्ष के बजट में इस योजना के लिए करीब 1959 करोड़ की व्यवस्था की गई। लाड़लियों के जन्म पर उन्हें योजना के तहत पंजीकृत करने का सिलसिला अनवरत जारी है। दरअसल,आंगनवाड़ी कार्यकर्त्ताओं की सजगता से इस कार्य की निरंतरा कायम है लेकिन राष्ट्रीय बचत पत्र बनने की प्रक्रिया इतनी जटिल है कि हितग्राही ही नहीं विभाग के अधिकारी भी इस मामले में हितग्राहियों की मदद नहीं कर पा रहे हैं। बताया जाता है,कि विभाग की ओर से डाक विभाग को हर साल अग्रिम धनराशि मुहैया कराई जा रही है। मौजूदा बजट का एक बड़ा हिस्सा भी जिले वार आवंटित किया जा चुका है,लेकिन डाक घरों की ओर से राष्ट्रीय बचत पत्र समय पर तैयार नहीं किए जा रहे हैं। इससे हितग्राहियों को ब्याज की चपत लगना तय है ,जिसके भरोसे वे 21 साल में लखपति होंगी। योजना करीब पांच साल पहले अर्थात वित्तीय वर्ष 2007-08 में शुरु हुई थी। पहले साल में ही  40 हजार 854 लाड़लियों का योजना का लाभ मिला। इस पर करीब 135 करोड़ रुपए खर्च किए गए। इसके बाद से साल दर साल हितग्राहियों की संख्या में इजाफा होता गया। विभागीय आंकड़ों के अनुसार गत मार्च अब तक करीब 11 लाख लाड़लियों को लखपति बनाने के लिए पंजीकृत किया जा चुका है। योजना में गड़बड़ी एनएससी के तैयार होने व इसके आवंटन को लेकर है। बताया जाता है कि पहले साल पंजीकृत चालीस हजार लाड़लियों को अब तक एनएससी क ी चौथी व पांचवी किश्त के पत्र मिल जाना चाहिए थे,लेकिन अब तक उन्हें दूसरी व तीसरी किश्त के पत्र ही नहीं मिले हैं। सूत्रों के मुताबिक, एनएससी के बनाने व इसके आवंटन में जानबूझ कर विलंब किया जाता है ताकि हितग्राही विभाग के चक्कर लगाए और तब उनकी आवश्यकता को आर्थिक लेनदेन के तौर पर भुनाया जा सके। एनएससी के वितरण को लेकर विभाग भी सीधे कुछ कर पाने की स्थिति में नहीं है। एनएससी बनाने का कार्य डाकघर को करना है और यह पत्र डाक विभाग मुख्यालय द्वारा किया जाता है।नतीजतन, संबंधित जिलों के डाक घर कर्मचारी भी हितग्राही को कुछ बता पाने की स्थिति में नहीं होते। एनएससी क ो लेकर आलम यह है कि विभाग के पास पंजीकृत लाड़लियों की संख्या के आंकड़े तो हैं लेकिन वह यह बता पाने की स्थिति में नहीं कि पहले साल की कितनी हितग्राही बालिकाओं को योजना की दूसरी व तीसरी किश्त के राष्ट्रीय बचत पत्र मिल चुके हैं। बीते पांच सालों में दर्ज अब तक की कुल लाड़ली लक्ष्मियों की बात की जाए तो  दूसरी व तीसरी किश्त पाने वाली हितग्राही बालिकाओं की तादाद दो लाख से अधिक नहीं है। राज्य विधानसभा के बीते मानसून सत्र में इस मामले को लेकर करीब दर्जन भर प्रश्न भी पूछे गए। यह अलग बात है कि सदन की कार्यवाही एक दिन भी पूरे समय नहीं चलने से सरकार इस मुद्दे पर चर्चा से बच गई, लेकिन हितग्राही बालिकाओं के  माता-पिता आंगनबाड़ी केंद्रों के चक्कर लगाते-लगाते पूछने लगे हैं, कि हमारी बेटियां 21 साल में कैसे लखपति बनेंगी।
 ब्याज ही बनाएगा लखपति
 छह-छह  हजार के जिन 5 राष्ट्रीय बचत पत्रों से लाड़लियों को लखपति बनाया जाना है, उनके बनने की प्रक्रिया इतनी धीमी एवं उलझन भरी है, कि आवेदन जमा हो जाने के बाद एनएससी मिलने में दो से तीन साल का समय लग रहा है। एनएससी मिलने में हो रही  देरी से हितग्राही  इस पर मिलने वाले ब्याज  से वंचित हैं । जबकि वे इसी ब्याज की बदौलत 21 साल में लखपति होंगी। दरअसल में एक निर्धारित अवधि में एनएससी के मार्फत जमा धन दोगुना होगा और इस तरह एक लाड़ली पर निवेश की जाने वाली तीस हजार की राशि उस बिटिया के 21 साल के होने पर करीब एक लाख रुपए हो जाएगी। गरीबी  रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले लोगो के लिए यह योजना बेहद कारगर साबित हुई। जो लोग लड़कियों के जन्म लेने पर उन्हें कोसते थे,वे भी अब लड़कियों के जन्म पर उन्हें भाग्यशाली मानने लगे हैं,लेकिन एनएससी में हो रही देरी से न केवल लाड़लियों के माता-पिता बल्कि आंगनबाड़ी कार्यकर्ता भी परेशान हैं। ऐसे माता-पिता आंगनवाड़ी कार्यकर्त्ताओं के चक्कर लगा रहे हैं और उन्हे देरी के लिए जिम्मेदार ठहराते हुए अपने गुस्से का शिकार बना रहे हैं।
समय पर मिले एनएससी तब बनेगी बात
योजना में पहले साल सर्वाधिक पंजीयन छिंदवाड़ा जिले में हुए। यहां एनएससी के लिए पहले साल ही करीब 26 करोड़  बजट दिया गया है। बताया जाता है कि इससे जिले में पंजीकृत लाड़लियों की पहला एनएससी  तो बन गया लेकिन इसके बाद बजट आवंटन की निरंतरता कायम नहीं रहने से राष्ट्रीय बचत पत्रों के समय पर बनने व वितरण का काम भी गड़बड़ा गया। कमोवेश यही स्थिति अन्य जिलों में भी है।  योजना के नियमों के अनुसार हितग्राही को पांच साल तक निश्चित  तिथि  में छह-छह हजार की एनएससी हर साल दी जानी है, जिसका समय-समय पर पोस्ट आॅफिस से नवीनीकरण होना है, तब कहीं जाकर 21 साल में बेटी लखपति बनेगी  व उसे स्कूली शिक्षा के लिए  साढ़े18 हजार रुपए की मदद मिल पाएगी। एनएससी में हो रहे विलंब से इस पर मिलने वाले ब्याज का तो नुकसान हो ही रहा है, लखपति बनने की अवधि को भी बढ़ा रहा है। अभी योजना की जो स्थिति है, उसमें लाड़ली के पास एक एनएससी है, जो संबंधित लाड़ली के वृद्ध होने तक  लखपति नहीं बना सकती ।
 आंकड़ों के आईने में लाड़ली लक्ष्मी
प्रदेश में गत मार्च तक  लाड़ली लक्ष्मी योजना अंतर्गत साढ़े 11  लाख बालिकाओं का पंजीयन किया गया। इनके राष्ट्रीय बचत पत्र तैयार करवाने के लिए सरकार ने इन पांच सालों में लगभग 3 हजार करोड़  खर्च किए।  पहले साल अर्थात वर्ष 2007-08 में 40हजार 854 बेटियां लाभांवित हुई, इसके बाद हर साल यह संख्या  बढ़ती गई। वर्ष 2008-09 में 1 लाख 86 हजार वर्ष 2009-10 में करीब 2 लाख 13 हजार  वर्ष 2010-11 में करीब तीन लाख वर्ष 2011-12 में भी करीब तीन लाख  एवं वर्ष 2012-13 के मार्च तक 15हजार 333 बालिकाओं का रजिस्ट्रेशन हुआ है। बजट के लिहाज से देखा जाए तो सरकार ने  योजना  पर पहले साल करीब 26 करोड़ व इसके बाद के वर्षों में क्रमश:  134.99 करोड़, 250.36 करोड़,  323.46 करोड़, 302.00 करोड़ रुपए  का बजट स्वीकृत किया । मौजूदा साल में ही  योजना के लिए 1959.93 करोड़ रुपए  का  प्रावधान किया गया है।
  बधाई देकर मल्हम लगाने की कवायद
 प्रदेश सरकार द्वारा बालिका जन्म को प्रोत्साहित करने के लिए चलाए जा रहे 'बेटी बचाओ' अभियान में बालाघाट जिले में अभिनव पहल की गई है। इस पहल के जरिए बेटियों के पालकों को बहुरंगी बधाई कार्ड दिए जा रहे हैं। बीते 10 माह में जिले में 7,576 माता-पिता को बेटी के जन्म पर बधाई कार्ड दिया जा चुका है। बीते साल प्रदेश के स्थापना दिवस के अवसर पर जिले की हितग्राही बालिकाओं के अभिभावकों को बधाई कार्ड भेजने की योजना शुरू की गई। जिला प्रशासन की इस पहल ने एनएससी समय पर नहीं मिल पाने से आहत लोगों के जख्मों पर मल्हम लगाने का कार्य किया है। अधिकारिक जानकारी के अनुसार, योजना में अब तक जिला चिकित्सालय, बालाघाट से 2,194, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (लामता) से 321, सिविल अस्पताल (वारासिवनी) से 346, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (रामपायली) से 230, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (बैहर) से 366, बिरसा से 317, परसवाडा से 420, लालबर्रा से 468, कटंगी से 609, खैरलांजी से 213, किरनापुर से 303 तथा सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (लांजी) से 727 बधाई कार्ड बेटियों के माता-पिता को दिए जा चुके हैं। इसी प्रकार निजी नर्सिग होम से भी बधाई कार्ड दिए जा रहे हैं। मिताली नर्सिग होम से 98, खान नर्सिग होम से 128, शुक्ला नर्सिग होम से 320, केविन हास्पिटल से 313, बालाघाट हॉस्पिटल से 39, विचक्षण जैन अस्पताल से 34, श्रीमाता नर्सिग होम, वारासिवनी से 121, भारती नर्सिग होम, वारासिवनी से 24 एवं मलाजखंड कपर हॉस्पिटल से पांच माता-पिता को बेटी के जन्म पर बधाई कार्ड दिए गए हैं। इस कार्ड पर महिलाओं से जुड़ी सभी योजनाओं की जानकारी भी दी गई है।
 नहीं मिला कानूरी स्वरूप
  मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की प्राथमिकताओं में  लडली लक्ष्मी योजना भले ही सबसे ऊपर हो और वे इसकी सराहना करते न थकते हों लेकिन यह भी उतना ही सच है कि राज्य का महिला एवं बाल विकास विभाग अब तक इस योजना को कानूरी रूप नहीं दिलवा सका। दरअसल, मुख्यमंत्री ने इस योजना को कानूनी रूप देने की घोषणा की थी ताकि भविष्य में भी योजना जारी रहे। मुख्यमंत्री की अन्य घोषणाओं पर तो अमल हुआ लेकिन ‘लाड़ली लक्ष्मी’ को कानूनी रूप देने के लिए राज्य विधानसभा में अब तक बिल नहीं लाया जा सका। मुख्यमंत्री ने महिला एवं बाल विकास से संबंधित पंचायत में  कुल 31 घोषणाएं की थीं। इनमें से 16 घोषणाओं पर अमल हो चुका है, मगर लाड़ली लक्ष्मी योजना ही एकमात्र ऐसी योजना है जिसे कानून का रूप दिया जाना अभी लम्बित है। योजना के क्रियान्वयन को लेकर समय-समय पर निर्देशों में बदलाव किया जाता रहा है। मसलन, संशोधित नियम अनुसार जिला प्रशासन अब  दूसरी बच्ची के जन्म के दो वर्ष की अवधि में परिवार नियोजन कराने वाले दम्पत्तियों को लाड़ली लक्ष्मी योजना का लाभ दे सकेगा।
 विपक्ष के निशाने पर रही योजना 
   एक ओर सरकार  इस महत्वाकांक्षी योजना की  सराहना करते नहीं थकती तो दूसरी ओर  यह योेजना राज्य के प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस के निशाने पर रही है। गत दिनों प्रदेश कांग्रेस के मीडिया विभाग के अध्यक्ष मानक अग्रवाल ने आरोप लगाते हुए कहा था कि राज्य सरकार की बहुचर्चित लाडली लक्ष्मी योजना का क्रियान्वयन कुछ जिलों में ठीक ढंग से नहीं हो रहा है। योजना की वेबसाइट देखने से स्पष्ट होता है कि योजना के हितग्राहियों की संख्या काफी अधिक दर्शाई गई है,जबकि उनके नाम पर राष्ट्रीय सुरक्षा पत्र(एनएससी) खरीदने की जानकारी उपलब्ध नहीं है। उनका कहना है कि कई जिलों में योजना के संचालन का जायजा लेने पर यह स्थिति सामने आई है। कांग्रेस नेता का कहना है कि महिला एवं बाल विकास विभाग के अधिकारी-कर्मचारी योजना का क्रियान्वयन नहीं करके एनएससी जारी करने के एवज में पैसे वसूलने के काम को तवज्जो  दे रहे हैं।  वसूली इस आधार पर की जाती है कि योजना के तहत संबंधित बालिका को 21 वर्ष की आयु पूर्ण करने के बाद एनएससी के जरिए एक लाख रुपए की रकम मिलने की व्यवस्था है।  श्री अग्रवाल ने रीवा जिले का उदाहरण देते हुए कहा कि वर्ष 2012-13 में जिले में लगभग 30 हजार प्रकरण लाड़ली लक्ष्मी योजना के आवेदन स्वीकृत किए गए, लेकिन उनके विरूद्ध एनएससी की खरीदी और उनका विवरण नहीं है।
---------------राष्ट्रीय बचत पत्र बनाने के लिए डाक विभाग  को अग्रिम धन राशि निरंतर अदा की जा रही है। योजना में बजट की कोई कमी नहीं है। एनएससी भी पंजीकरण अनुसार समय पर बना कर आवंटित किए जा रहे हैं। इनका आवंटन जन्म पंजीयन के क्रम अनुसार होता है। यह केवल भ्रम है कि एनएससी की किश्त समय पर नहीं मिल रही है।  अनुपम राजन संचालक महिला एवं बाल विकास विभाग

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Ditulis Oleh : Janprachar.com Hari: 12:29 am Kategori:

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