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बुधवार, 21 नवंबर 2012

सिंगूर की राह पर मप्र



 रवि अवस्थी,भोपाल। औद्योगिक निवेश के नाम पर प्रदेश भर में उपजाऊ जमीनों के अधिग्रहण से मध्यप्रदेश में भी सिंगूर जैसे हालात पैदा हो रहे हैं।  फर्क   केवल इतना है,कि पीड़ितों को अब तक किसी  ‘ममता बनर्जी’ मप्र का सहारा नहीं मिला। आक्रोशित किसानों  व उनका  साथ देने वालों पर डंडे बरसा कर  डराया धमकाया जा रहा है। इसके चलते पीड़ित किसान आत्महत्या को मजबूर हैं। कटनी जिले के बरही थाना अंतर्गत ग्राम डोकरिया निवासी सुनिया बाई गडरिया द्वारा मौत इसका ताजा उदाहरण है। सुनिया की मौत से उपजे आक्रोश को दबाने के लिए प्रशासन ने ग्रामीणों पर बर्बरता पूर्वक लाठी चार्ज भी किया और सुनिया के शव को छीन कर उसे दफना दिया गया। ऐसा कारनामा इससे पहले रायसेन जिले के बरेली व सिंगरौली में भी सरकार दिखा चुकी है। बरेली में किसानों की आवाज को दबाने के लिए पुलिस ने ए के-7 बंदूक का इस्तेमाल किया। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि उद्योगपतियों को नवाजने के लिए स्वयं को किसान हितैषी कहने वाली यह सरकार किसानों को बर्बाद करने में कोई कसर नहीं छोड़ रही है। राज्य के लाखों किसानों की जमीन को गुपचुप तरीके से विदेशी बैंक के पास गिरबी रखने का षड़यंत्र भी इस दौरान रचा गया,लेकिन ऐन वक्त पर नाबार्ड की सतर्कता के चलते सरकार अपने मंसूबे में कामयाब नहीं हो सकी।
 खेती को लाभ का कारोबार बनाने व इसे उद्योग का दर्जा देने की हिमायती राज्य सरकार अपने ही द्वारा गठित राज्य कृषि आयोग की सिफारिश को लेकर गंभीर नहीं है। आयोग ने अपनी पिछली रिपोर्ट में साफ तौर पर इस बात की अनुशंसा की ,कि राज्य की कृषि भूमि को औद्योगिक विकास की भेंट न चढ़ने दिया जाए। आयोग की इस रिपोर्ट से खफा सरकार ने आयोग का अस्तित्व ही समाप्त कर दिया। ऐसे में उसकी रिपोर्ट का जो उसका हश्र हुआ, कटनी जिले की उक्त घटना इसकी बानगी है। मुख्यमंत्री का गृह जिला सीहोर हो या दूरस्थ जिला सिंगरौली। औद्योगिक निवेश के पीछे सरपट दौड़ लगा रही राज्य सरकार ने  लगता है राज्य के मूल व्यवसाय खेती को बिसरा दिया है। बुदनी में फैक्ट्रियां स्थापित करवाने क ा मामला हो या  नर्मदा पर बनने वाले बांध। इनके लिए किसानों से उनकी जमीन हथियाने व न मिलने पर जबरिया छुड़ाने में राज्य सरकार ने अपने अधिकारों का बेजा इस्तेमाल किया है।  ताजा मामला कटनी जिले के बरही में स्थापित होने वाले वेलस्पन पावर प्लांट का है। इसके लिए करीब 237 एकड़ जमीन की जरूरत है। प्लांट के लिए समीपस्थ ग्राम बुजबुजा व डोकरिया के 230 परिवारों की जमीन का चुना गया।
 दबाव बनाने पर गई सुनिया की जान
 बताया जाता है कि प्रशासन ने पहले तो संबंधित किसानों को समझाइश देकर जमीन हॉसिल करने की कोशिश की लेकिन इसमें कामयाबी नहीं मिलने पर वे ग्रामीणों को धमकाने पर उतारु  हो गए। डोकरिया निवासी छक्का व उसकी पत्नी सुनिया गडरिया के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। अधिकारियों की धमकियों को छक्का ने तो किसी तरह सहन कर लिया लेकिन सुनिया ऐसा नहीं कर सकी और भयभीत होकर उसने चार दिन पहले उसने आत्मदाह कर मौत को गले लगा लिया। हालांकि प्रशासनिक अधिकारी सुनिया की मौत की बजह जमीन अधिग्रहण को नहीं मानते। उनका दावा है कि सुनिया की मौत महज एक हादसा है। बहरहाल, महिला की मौत की खबर फैलते ही डोकरिया ही नहीं आसपास के  ग्रामीण भी आक्रोश से भर उठे वहीं प्रशासनिक अमला बगले झांकने लगा। ग्रामीणों ने अगले दिन सुनिया की लाश रख कर प्रदर्शन किया तो पुलिस ने डंडे का सहारा लेकर इन्हें खदेड़ डाला और लाश को घसीटते हुए छिना कर उसे दफना दिया। सुनिया की मौत और उस पर प्रशासन के इस दमनात्मक रवैए ने ग्रामीणों को लामबंद कर दिया। शासन-प्रशासन के इस अंदाज पर राज्य विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह कहते हैं , अंग्रेजी हुकूमत की यह बेरहम कार्यशैली आजाद हिन्दुस्तान में मध्यप्रदेश सरकार ने कटनी में अपनाई। ग्रामीण महिला की लाश को जिस तरह घसीटा गया व छीना झपटी हुई उससे प्रदेश का सिर शर्म से झुक गया है।
 समूचे महाकौशल में आक्रोश
  इधर,कटनी में जमीन के अधिग्रहण से भड़के किसानों के विरोध की आग की लपटें अब धीरे-धीरे और ऊपरी तौर पर शांत तो हो रही है, पर राख के लिए दबे शोले अब भी वहां जिंदा हैं। पावर प्लांट को जमीन नहीं देने की मांग पर डटे आंदोलनकारी अभी भी अनशन मुकाम पर दिखाई दे रहे हैं। जिनकी जमीनें प्लांट द्वारा अधिग्रहीत की जा रही हैं, वे किसान आज भी  चिता सजा कर अनशन जारी रखे हुए हैं। बुनियादी मांगों के अलावा अब वे गिरफ्तार आंदोलनकारियों की बिना शर्त रिहाई की मांग कर रहे हैं। कटनी की घटना ने समूचे महाकौशल में आंदोलन की अलख जगा दी । जमीनों के जबरिया अधिग्रहण से दुखी किसानों का साफ कहना है, जान दे देंगे,जमीन नहीं। जमीन छिनने के भय ने किसानों को आंदोलन के लिए मजबूर कर दिया है। नतीजतन, अन्नदाता कहीं धरने पर बैठे हैं तो कहीं लाठियां खाकर मरने -मारने पर उतारू हैं। इसके चलते पथराव व विरोध प्रदर्शन कर  प्रशासनिक अमले को खदेड़ने की घटनाएं भी इलाके में हो रही है। किसानों के आक्र ोश का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि प्रभावितों के घाव पर मल्हम लगाने  के इरादे से कटनी पहुंचे कृषि  मंत्री रामकृष्ण कुसमरिया ने प्रभावितों को  भोपाल आकर मुख्यमंत्री से मिलने की सलाह दी,लेकिन आक्रोशित किसानों से इससे साफ इंकार कर दिया।  दरअसल, महाकौशल में सात बड़े प्रोजेक्ट प्रस्तावित हैं और करीब इलाके की करीब दस हजार एकड़ जमीन दाव पर लगी है। इसमें एक बड़ा हिस्सा कृषि भूमि का है। इनमें वेलस्पन के अलावा मोजर बेयर अनूपपुर,-18 सौ एकड़, रिलायंस,शहडोल व अनूपपुर में एक हजार एकड़, हालौन बांध -बालाघाट व मंडला में 4942 एकड़ भूमि, चुटका परमाणु बिजली घर मंडला में 1235 एकड़  व झाबुआ पावर प्लांट के लिए सिवनाी में 812 एकड़। शहडोल मुख्यालय से करीब 15 किलोमीटर दूर स्थित लालपुर सेमरा गांव में मीथेन गैस का प्लांट लगाने के लिए रिलायंस को एक हजार एकड़ जमीन की जरूरत है,लेकिन किसानों के विरोध के चलते उसे अब तक बमुश्किल दस एकड़ जमीन ही हाथ लगी है। प्रशासन जमीन अधिग्रहण के लिए दबाव बना रहा है। स्थानीय किसान इसके विरोध में  बीते एक माह से क्रमिक भूख हड़ताल पर हैं।  कमोवेश यही स्थिति बालाघाट  व मंडला जिले की है। इन जिलों से होक र गुजरने वाली हालोन नदी पर बांध बनाया जाना प्रस्तावित है। इसमें दोनों ही जिलों की करीब पांच हजार एकड़ जमीन डूब में आना है। बांध बनने पर 15 गांव भी विस्थापित होंगे। बांध के लिए सर्वेक्षण का कार्य बीते डेढ दशक से जारी है,लेकिन किसानों के विरोध के चलते यह कार्य अब तक पूरा नहीं हो सका। किसानों में मुआवजा राशि को लेकर असंतोष है।  मंडला में किसानों के असंतोष की एक अन्य बजह यहां प्रस्तावित चुटका परमाणु बिजली घर भी है। मंडला जिले के नारायणगंज क स्बा अंतर्गत आने वाले ग्राम चुटका में यह संयंत्र प्रस्तावित है। मंडला आदिवासी बाहुल्य जिला है। इनमें अधिकतर बैगा जाति के आदिवासी हैं। जो आमतौर पर मजदूरी व जीवनदायिनी नर्मदा में मछलियों का शिकार कर अपना जीवन यापन करते हैं। गोंडवाना गणतंत्र पार्टी का जिले में प्रभाव है। इसके बैनर तले यह आदिवासी परमाणु संयंत्र का विरोध कर रहे हैं। नरसिंहपुर जिले के गाडरवारा में नेशनल थर्मल पावर कार्पोरेशन के पावर प्लांट का स्थान किसानों के विरोध के चलते बदलना पड़ा। दरअसल, एनटीपीसी का यह संयंत्र पहले जिले के मेहरागांव में लगाया जाना था। संयंत्र के लिए चिन्हित भूमि खासी उपजाऊ है। किसानों ने अपनी जमीन देने से इंकार कर दिया। इसके बाद संयंत्र को मेहरागांव की जगह  चीचली विकासखंड के गांगई गांव में स्थापित करना तय किया गया।  इसी तरह झाबुआ - सिवनी पावर प्लांट  को लेकर भी लोगो में आक्रोश है। यह संयंत्र सिवनी जिले में घंसौर के बरेला गांव में लगाया जाना प्रस्तावित है। इस संयंत्र के लिए भी जमीन अधिग्रहण को लेकर स्थानीय ग्रामीणों में खासा आक्र ोश है। वह जमीन के बदले दिए जा रहे मुआवजे को लेकर नाराज हैं तो कुछ अपनी जमीन छिनने को लेकर। इसी जिले से लगे कान्हा नेशनल पार्क के विस्तार  से भी कुछ गांवों पर विस्थापन का खतरा मंडरा रहा है। बल्कि एक गांव जामी को तो पार्क की भूमि से हटाया जा चुका है।  लोगो के विरोध के चलते अन्य ग्राम सुकड़ी, अजानपुर, छतपुर, पटवा,घनिया टोला के विस्थापन की योजना अधर में है। इधर,महाकौशल से ही लगे अनूपपुर में भी मोजर बेयर पावर प्लांट को लेकर किसान आंदोलन की राह पर है। बल्कि बलपूर्वक जमीनें हथियाए जाने पर अप्रिय हालात भी पैदा होते रहे हैं। बताया जाता है कि इस संयंत्र की स्थापना से इलाके के पांच गांवों के पांच सौ से अधिक परिवार प्रभावित होंगे। किसानों की जमीन जबरिया हॉसिल कर उन्हें मुआवजा देने की प्रक्रिया जारी है,लेकिन मुआवजा राशि कम होने से प्रभावितों में सरकार को लेकर नाराजगी है।
 पहले भी हुआ किसानों के साथ अन्याय
 8 मई 2012 समर्थन मूल्य पर गेहूं की खरीदी व बारदाना न मिलने से नाराज किसानों ने आंदोलन किया। पुलिस ने प्रदर्शनकारी किसानों से निपटने गोलियां दागी। दो मरे,कर्फ्यू लगाना पड़ा। राज्य मानव अधिकार आयोग ने हाल ही में अपनी रिपोर्ट जारी की। इसमें कहा गया कि बरेली में पुलिस ने गोली चालन के लिए ए के -47 रायफल्स का इस्तेमाल किया । आयोग की रिपोर्ट दर्शाती  है कि किसानों से निपटने के लिए प्रशासन किसी भी हद तक जाने को तैयार था। इस आंदोलन की अगुआई कर रहे किसान नेता शिवकुमार शर्मा को गिरफतार कर जेल भेजा गया। कई दिनों तक उनकी जमानत नहीं हो सकी।
18 अप्रेल 2012 भोपाल मे ं किसान संघ कार्यकर्ताओं पर पुलिस ने भांजी लाठियां , चार गिरफतार।
 18 फरवरी 2012 खरगौन में भाजपाई किसान भिड़े, पुलिस ने आंसू गैस छोड़ी
 2011 सिंगरौली में जमीन अधिग्रहण का विरोध करने वाले किसानों पर लाठीचार्ज
  पीथमपुर आटो टेस्टिंग सेंटर,जमीन अधिग्रहण व मुआवजे को लेकर भाजपा नेता विक्रम  वर्मा ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को पत्र लिख कर विरोध जताया।
 कर्ज माफी घोटाला, क्षतिग्रस्त फसलों को समुचित मुआवजा नहीं मिलने पर किसानों द्वारा लगातार आत्महत्याएं किए जाने की घटनाएं बीते साल की सुर्खियों में रहीं।
 एक पहलू यह भी 
 राज्य में बीते सालों में औद्योगिक निवेश को लेकर हुए अनुबंध को जमीं पर उतारने के लिए पहली शर्त है जमीन। हाल ही में हुई ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट को ही  लिया जाए तो सौ से अधिक प्रस्तावित उद्योगों के लिए जमीन मुहैया करवाने की जिम्मेदारी राज्य शासन पर है। इससे पहले हुए अनुबंध के तहत भी पांच दर्जन से अधिक उद्योगों के लिए जमीन हॉसिल करने की कार्यवाही या तो जारी है या प्रस्तावित है। निजी जमीन के अधिग्रहण में आ रही दिक्कतों को ध्यान में रखते हुए ही राज्य शासन ने इंदौर में गत दिनों संपन्न समिट से पहले लैण्ड बैंक तैयार किया था। लेकिन जो अनुबंध हुए उनके मुताबिक लैंड बैंक में मौजूदा जमीन या तो कम है या निवेशक इसे लेना नहीं चाहते। प्रदेश में गैर कृषि योग्य जमीन भी काफी है,लेकिन जयादातर निवेशक  विकसित क्षेत्र या रहवासी इलाकों  के समीप  ही अपने संयंत्र स्थापित करना चाहते हैं ताकि उन्हें परिवहन सुविधाओं के साथ अधोसंरचना विकास का लाभ भी मिल सके। आबादी वाले इलाकों के समीप संयंत्र लगने पर आबादी के उजड़ने का खतरा रहना स्वाभाविक है। दूसरी ओर ग्रामीण इलाकों में ज्यादातर लोगों का अपनी पुशतैनी जमीन से भावनात्मक लगाव होता है और वे बेहतर मुआवजा मिलने के बाद भी अपनी जमीन नहीं छोड़ना चाहते। जमीन अधिग्रहण मामले में विरोध की यह एक बड़ी बजह है। शहरी इलाकों से लगी जमीन के लिए लोग बेहतर मुआवजा मिलने पर जमीन देने को तैयार हो जाते हैं लेकिन जमीन की बाजार दर व मुआवजा राशि में बड़ा अंतर होने पर उन्हें यह घाटे का सौदा लगता है। जो स्वाभाविक भी है। इसके चलते जमीन अधिग्रहण की कार्रवाई में विरोध के स्वर उभरते हैं। दरअसल,जमीन अधिग्रहण का मौजूदा कानून भी करीब एक सदी पुराना है। इसमें मुआवजे को लेकर तय शर्ते आज के रियल इस्टेट कारोबार में दिनोंदिन आ रहे बदलाव से मेल नहीं खाती।
  तब आसान नहीं होगा अधिग्रहण
 उद्योगों के लिए भूमि अधिग्रहण को लेकर केंद्र सरकार एक बिल लाने की तैयारी में है। जानकारों के मुताबिक, यह बिल संसद के अगले सत्र में लाया जा सकता है और इसके पारित होने पर उद्योगों  के लिए भूमि स्वामी की सहमति के बिना उसकी जमीन अधिग्रहण करना आसान नहीं होगा। इसके अलावा यदि कृषि योग्य जमीन को किसी उद्योग के लिए अधिगृहीत किया जाता है तो उसे औद्योगिक जमीन माना जाएगा। ऐसे जमीन अधिग्रहण के मामले जिसमें चार सौ से अधिक परिवार प्रभावित होते हैं उनमें जमीन अधिग्रहण से पहले इसके कारण सामाजिक स्थिति पर पड़ने वाले प्रभाव का आंकलन करना होगा। अधिगृहीत जमीन का पांच साल में उद्योग के लिए इस्तेमाल नहीं होने पर जमीन शासकीय मानी जाएगी। अधिगृहीत जमीन के हस्तांतरण को लेकर भी कड़ेनियम  बनाए जाने के संकेत हैं। इधर, राज्य सरकार इस बिल के आने से पहले ज्यादा से ज्यादा उद्योगों को जमीन मुहैया करवाना चाहती है ताकि निवेश के लिए किए गए अनुबंध कारगर साबित हो सकें। दूसरी ओर उसकी समस्या यह कि आने वाला साल चुनाव का है और ऐसे में वह किसानों को भी नाराज नहीं करना चाहती,लेकिन गाहे-बगाहे प्रशासनिक अधिकारियों की कारगुजारियों से हालात बिगड़ते हैं और बदनामी का ठीकरा सरकार के सिर फूटता है,जैसा कि हाल ही में कटनी मामले में हुआ।
जमीन अधिग्रहण देश व्यापी समस्या
 उद्योग या दीगर विकास कार्यों  के लिए जमीन अधिग्रहण देशव्यापी समस्या है। राष्ट्रीय स्तर पर इस मामले में दृष्टिपात किया जाए तो केंद्र सरकार ने मौजूदा पंचवर्षीय योजना के तहत करीब एक लाख करोड़ डॉलर  के निवेश का लक्ष्य तय किया है,लेकिन जमीन अधिग्रहण मामलों को लेकर हर जगह अड़चनें हैं।  फिर वह पश्चिम बंगाल हो,उप्र या मध्यप्रदेश। भूमि अधिग्रहण में आ रही अड़चनों के कारण ही प्रस्तावित फं्रट कारिडोर की अनुमानित लागत 28 हजार करोड़ से बढ़ कर 42 हजार करोड़ रुपए से अधिक  हो गई है। भूमि अधिग्रहण को लेकर बढ़ते आक्रोश को देखते हुए संबंधित सरकारें भी उदारता बरतने को मजबूर होती हैं। इस समस्या को देखते हुए पड़ौसी राज्य उत्तरप्रदेश को तो जमीन अधिग्रहण कानून में बदलाव करना पड़ा। वहीं जमीन अधिग्रहण मामले में किसानों की अगुवाई कर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री बनी ममता बनर्जी ने भी उद्योगों के लिए जमीन अधिग्रहण करने में हाथ खड़े कर दिए। उन्होनें साफ कह दिया कि उद्योग लगाना है तो जमीन उद्योगपतियों को खुद ही खरीदनी पड़ेगी। अलबत्ता मप्र सरकार अब तक इस मामले में किसी नतीजे पर न पहुंच कर दबाव व समझाइश की नीति अपना रही है। जमीन अधिग्रहण मामले में सरकार के इस नरम रुख को देखते हुए ही उद्यमियों ने प्रदेश की ओर रुख किया है


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