रवि अवस्थी, भोपाल। स्कूली शिक्षा पूरी होने पर शिवपुरी निवासी ग्यारसीलाल शर्मा ने मोटी रकम खर्च कर अपने बेटे रोहित को राजधानी के एक निजी इंजीनियरिंग कालेज में दाखिला दिलवा दिया। एक तो उच्च तकनीकी शिक्षा ,इस पर शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी। यह देख ग्रामीण इलाके से आए रोहित के पसीने छूट गए। स्कूली शिक्षा में ही अंग्रेजी उसके लिए पहले ही हौव्वा थी। अब कालेज में फेकल्टी का फर्राटेदार अंग्रेजी बोलना और किताबों में भी वही सब कुछ। नतीजा यह हुआ, कि पहले सेमेस्टर में ही रोहित अधिकतर विषयों में फेल हो गया। हिंदी माध्यम से ली गई स्कूली शिक्षा में आमतौर पर अव्वल रहने के बाद यहां भाषाई समस्या उसकी उच्च शिक्षा में बाधक बन गई। रोहित की तरह प्रदेश में ऐसे लाखों विद्यार्थी हैं, अंग्रेजी जिनकी प्रगति में बाधक है। इसे देखते हुए राज्य शासन ने तकनीकी व व्यावसायिक शिक्षा भी हिंदी में देने का निर्णय लिया है,लेकिन इस दिशा में किए जा रहे प्रयासों की गति इतनी धीमी है कि रोहित जैसे उन लाखों विद्याथिर्यों को तत्काल कोई राहत मिलने की उम्मीद नहीं रह गई है।
प्रदेश में हिंदी विश्वविद्यालय की स्थापना की कवायद बीते दो सालों से की जा रही है।पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी के नाम पर बीते साल ही इसका नामकरण भी हो गया,लेकिन कुलपति की पदस्थापना में ही इतना विलंब हुआ कि विश्वविद्यालय के शुभारंभ का अब तक अवसर ही नहीं आ सका। कमोवेश यही स्थिति इस संस्थान के लिए जमीन जुटाने से लेकर इसके लिए स्वीकृत पदों की पूर्ति के मामले में भी है। जानकार सू़़त्रों का दावा है ,कि सालों तक अंग्रेजों को बढावा देकर हिंदी भाषियों पर रौब गांठते रहे आला अफसरों की हिंदी को आगे बढाने में कोई रुचि नहीं है। राजभाषा के प्रति उनका रवैया शालिगराम की मूर्ति पर केवल तुलसी पत्र चढ़ा कर उन्हें नमन करने जैसा है। यह दिखावे के तौर पर हर साल केवल 14 सितंबर को किया जाता है। हिंदी को भले ही राजभाषा का दर्जा है, लेकिन इसे अपनाने का संकल्प लेने के लिए यही एक दिवस तय है। बहरहाल,यहां बात प्रदेश में हिंदी विश्वविद्यालय की स्थापना की है। हैरत की बात यह कि इस विवि का अब तक अपना कोई भवन नहीं है। वतर्मान में भोज मुक्त विश्वविद्यालय के ही एक कक्ष से इसका संचालन किया जा रहा है। विश्व विद्यालय के लिए शैक्षणिक एवं गैर शैक्षणिक पदों की स्वीकृति भी बीते दिनों राज्य मंत्रिपरिषद की बैठक में दी गई,लेकिन इनकी पूर्ति का सिलसिला अब तक शुरु नहीं हो सका। विश्वविद्यालय में फौरी तौर पर कुछ विषयों में डिप्लोमा व आगे चरण बद्ध तरीके से तकनीकी व व्यावसायिक पाठ्यक्रम जैसे बी ई व एमबीबीएस पढ़ाने की बात कही जा रही है,लेकिन इस दिशा में मंथर गति से हो रहे प्रयासों को देखते हुए यह सब फिलहाल दूर की कौड़ी है।
तीन लोगो की यूनिवर्सिटी!
विश्वविद्यालय में फिलहाल कुलपति डॉ. मोहनलाल छीपा ,रजिस्ट्रार प्रो. डॉ यू एन शुक्ला व उनकी मदद के लिए एक सहायक की पदस्थापना की गई है। डॉ छीपा अजमेर यूनिवर्सिटी के कुलपति तथा डॉ शुक्ला जबलपुर की रानी दुर्गावती यूनिवर्सिटी के रजिस्ट्रार रहे हैं। अटल बिहारी वाजपेयी हिंदी विश्वविद्यालय में फिलहाल सिर्फ डिप्लोमा कोर्स शुरू करने की योजना बनाई जा रही है। नियमित कोर्स अगले सत्र से शुरू किए जाएंगे। उच्च शिक्षा विभाग ने पहले इसी सत्र से नियमित कोर्सेस शुरू करने की योजना बनाई थी, लेकिन कुलपति की नियुक्ति में हुई देरी होने से ऐसा करना संभव नहीं होगा। दावा किया जा रहा है,कि इस वर्ष नियुक्ति की प्रक्रिया पूरी कर अगले साल से यहां नियमित कोर्स संचालित किए जाएंगे। विश्वविद्यालय की शुरूआत 3 विषयों एवं 9 शैक्षणिक विभागों से होगी। प्रदेश कैबिनेट पहले ही विश्वविद्यालय की स्थापना के लिये 27 शैक्षणिक तथा 35 अशैक्षणिक पदों की भर्ती के लिए मंजूरी दे चुकी है। शैक्षणिक पदों में 8 प्रोफेसर, एक डायरेक्टर, 9 एसोसिएट प्रोफेसर और 9 असिस्टेंट प्रोफेसर शामिल हैं। इसी प्रकार 35 अशैक्षणिक पदों में कुलपति, कुल-सचिव सहित अन्य पद शामिल हैं। विश्वविद्यालय की स्थापना तथा वेतन-भत्तों का समस्त वित्तीय भार राज्य शासन द्वारा वहन किया जाएगा। विश्वविद्यालय के अपने भवन के लिए जमीन तलाशने का काम किया जा रहा है। रायसेन जिले के ग्राम खुर्द में जमीन चिन्हित कर इस पर विचार किया जा रहा है । खुर्द की दूरी राजधानी से करीब 15 किमी. है। विवि भवन निर्माण के लिए करीब ढाई करोड़ रुपए की मंजूरी दे चुकी है। भविष्य में इसमें मेडिकल, इंजीनियरिंग सहित अन्य परंपरागत कोर्सेस का संचालन करने की योजना है। विश्वविद्यालय ने फिलहाल प्राइवेट और सरकारी कॉलेजों को संबद्धता देने के बारे में कोई नीति नहीं बनाई है,लेकिन इसकी वेबसाइट का अवलोकन किया जाए तो अटल बिहारी वाजपेयी विवि पर एक निजी विवि ने कब्जा जमा रखा है और वह अपने पाठ्यक्रमों व कालेजों का विज्ञापन कर इनमें प्रवेश के लिए छात्रों को आकर्षित करने का प्रयास कर रही है।
भविष्य को लेकर अशंकाएं
देश में अनेक लोग अब भी अंग्रेजों व उनकी भाषा की गुलामी की मानसिकता से ग्रसित है। दिखावे के तौर पर यहां ब्रिटेन की क्वींस बेटन के स्वागत का भले ही विरोध किया जाए ,लेकिन हकीकत यह कि भारत में लोकतंत्र की नींव ब्रिटेन की संसदीय प्रणाली पर ही आधारित है। प्रदेश के विधायक हों या सांसद ब्रिटेन की पार्लियामेंट के लिए एक निश्चित राशि हर साल अदा करते हैं। महारानी एलिजाबेथ द्वारा सदस्य देशों का अधिवेशन बुलाए जाने पर इसमें शरीक होना व महारानी के सम्मान में घुटने टेक कर बैठना यहां के जनप्रतिनिधियों के लिए अब भी मजबूरी बना हुआ है। चीन,जापान जर्मनी समेत कई ऐसे देश है। जिन्होंने क भी अंग्रेजी भाषा की दासता स्वीकार नहीं की और वहां इंजीनियरिंग या चिकित्सा की शिक्षा हमेशा से अपनी भाषा में ही दी जाती रही है,लेकिन भारत में अंग्रेजी के बिना तकनीकी या व्यावसायिक शिक्षा व संबंधित रोजगार के अवसर पाना असंभव सा हो गया है। हिंदी माध्यम से विज्ञान,इंजीनियरिंग व चिकित्सा शिक्षा की राह में अनेक बाधाएं हैं। इनमें संबंधित विषयों की हिंदी पुस्तकों क ा टोटा, हिंदी में पढ़ा सकने वाले प्राध्यापकों की कमी और इन सबसे बढ़ कर हिंदी भाषी विद्यार्थियों के लिए रोजगार का संकट। राजधानी के ही ज्यादातर इंजीनियरिंग कालेजों में होने वाले केम्पस सलेक्शन में स्किल्ड (निपुणता)व अंग्रेजी में वाकपटुता वालों को प्राथमिकता प्रदान की जाती रही है। नतीजतन, बेहतर तकनीकी ज्ञान रखने वाले कई छात्रों को सालों तक केवल इसलिए बेहतर रोजगार नहीं मिल पाता क्योंकि वे अंग्रेजी के जानकार नहीं होते। निजी कंपनियां हिंदी भाषी छात्रों का चयन कर कोई जोखिम उठाने के पक्ष में नहीं हैं। तकनीकी,विज्ञान या चिकित्सा विषयों को लेकर कितनी पुस्तकें बाजार में सुलभ हो सकेंगी । यह भविष्य के गर्त में है। प्रदेश में इंजीनियरिंग शिक्षा देने वाली राजीव गांधी प्रौद्योगिकी विवि के कुलपति पीयूष त्रिवेदी इस विषय में कुछ भी कहने से बचते रहे। वह कहते हैं-सरकार ने तय किया है तो ठीक ही होगा। मेरा इस विषय में कुछ भी बोलना उचित नहीं होगा। कम से कम आरजीपीवी तो हिंदी में तकनीकी शिक्षा नहीं दे रही है, न ऐसी कोई योजना है। यह संबंधित विवि ही तय करेगा कि कैसे हिंदी में तकनीकी पाठ्यक्रम तैयार हो और शिक्षा का स्वरूप कैसा हो? देवी अहिल्या विवि के पूर्व कुलपति डॉ.भागीरथ प्रसाद राज्य सरकार की पहल की सराहना करते हैं। डॉ प्रसाद ने कहते हैं-मेरा मानना है,कि मातृभाषा में ज्ञान की वृद्धि ज्यादा होती है। प्रारंभिक तौर पर राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर रोजगार पाने में दिक्कतें भले आएं लेकिन स्थानीय स्तर पर रोजगार पाने के अवसर अधिक होंगे। जब फ्रांस,चीन,जापान जैसे देश अपनी मातृभाषा को अपनाएं हुए हैं तो हम ऐसा क्यों नहीं कर सकते? गुलामी की मानसिकता बदलनी ही होगी। जहां तक हिंदी में पाठ्यक्रम तैयार होने की बात है तो इस भाषा में भी उच्चकोटि के अनेक ग्रंथ लिखे गए हैं और आगे भी इनका लेखन जारी है, तब तकनीकी पाठ्यक्रम भी हिंदी में तैयार किए जा सकते हैं। बरकत उल्लाह विवि की कुलपति प्रो निशा दुबे भी डॉ प्रसाद क ी राय से इत्तफाक रखती हैं। पह कहती हैं- हिंदी में शिक्षा के कारण रोजगार के अवसर के बारे में कहना जल्दबाजी होगा,लेकिन शिक्षा दिया जाना संभव है। पाठ्यक्रम भी बनाएं जा सकते हैं। वहीं अवधेश प्रतापसिंह विवि रीवा के कुलपति प्रो.रहस्यमणि मिश्रा ने राज्य शासन के प्रयासों की सराहना करते हुए कहा कि आज मप्र ने इस दिशा में पहल की,कल और राज्य आगे आएंगे। तब समूचे देश में इस दिशा में माहौल तैयार होगा तो रोजगार के अवसर मिलने में भी कोई कठिनाई नहीं होगी। उन्होंने कहा कि हमारे राज्य ने इस दिशा में पहल तो की। प्रो.मिश्र ने भी इस बारे में अपनी मातृभाषा में ही शिक्षा देने वाले राष्ट्रों के नाम गिनाते हुए कहा कि जब ये देश अपनी मातृभाषा से प्रेम कर सकते हैं तो हम क्यों नहीं?
मुख्यमंत्री की पहल पर बदलाव
प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इस दिशा में भी बेहतर पहल करते हुए बदलाव की शुरुआत क ी है। वह कहते हैं- हम कराएंगे हिंदी में एमबीबीएस व इंजीनियरिंग। प्रदेश के मेधावी युवा केवल अंग्रेजी नहीं जानने के कारण पीछे रह जाते हैं। जब चीन और जापान जैसे देश अपनी मातृभाषा में तालीम दे रहे हैं। इन देशों के युवा किसी से कम नहीं तब हिंदी में डिग्री लेकर प्रदेश के युवा भी देश-दुनिया में नाम रोशन कर सकते हैं। श्री चौहान कहते हैं-हम किसी भाषा का विरोध नहीं कर रहे हैं,लेकिन कोई भाषा प्रदेश के युवाओं की प्रगति में बाधक बने यह विचारणीय प्रश्न है।
जनोपयोगी होंगे पाठ्यक्रम: डॉ छीपा
विश्वविद्यालय अभी शैशव अवस्था में है। जमीन का चयन हो चुका है। भवन निर्माण की दिशा में प्रयास जारी हैं,लेकिन भवन की कमी विवि के कार्य में बाधक नहीं है। पाठ्यक्रम तय करने व आगे की कार्ययोजना के लिए बोर्ड का गठन हो रहा है। पहले चरण में लोक संस्कृति,योग जैविक खेती जैसे पाठ्यक्रम इसी साल से शुरु कर दिए जाएंगे। विवि समाज उत्थान के लिए ऐसे जनपयोगी पाठ्यक्रम शुरु करेगा ताकि सभी वर्गो के विद्यार्थियों को इनका लाभ मिल सके। अगले चरण में विज्ञान,चिकित्सा व अभियांत्रिकी पाठ्यक्रमों की शुरुआत होगी। शिक्षा का माध्यम दृश्य व श्रव्य दोनों होगे। शिक्षकों की कमी दूर करने के लिए फिलहाल अन्य विश्वविद्यालयों व कालेजों में कार्यरत शिक्षकों की सेवाएं हिंदी विवि लेगा। बोर्ड के निर्णयानुसार शीघ्र ही स्वीकृत पदों की पूर्ति कर ली जाएगी। वह कहते हैं-हम ऐसे अन्य विश्वविद्यालयों के भी सतत संपर्क में हैं जहां हिंदी में विभिन्न विषयों की शिक्षा दी जा रही है। उनके पाठ्यक्रमों का अध्ययन भी किया जाएगा। साथ ही देश भर में हिंदी विवि के प्रस्तावित पाठ्यक्रमों से संबंधित पुस्तकों की जानकारी भी जुटाई जा रही है। अटल बिहारी बाजपेयी हिंदी विश्वविद्यालय भविष्य में तकनीकी व व्यावसायिक शिक्षा के क्षेत्र में भी नई मिसाल पेश करेगा।
शुक्रवार, 31 अगस्त 2012
हिंदी में तकनीकी शिक्षा देने, मप्र ने की अनोखी पहल
Lainnya dari शिक्षा

Ditulis Oleh : Janprachar.com Hari: 1:00 am Kategori: शिक्षा
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
Entri Populer
-
नई दिल्ली । दिल्ली गैंगरेप के आरोपियों को नपुंसक बनाने यानि बधिया करने संबंधी कांग्रेस के प्रस्ताव के बाद इस मामले में नई बहस शुरु हो गई ह...
-
राजकुमार अवस्थी , भोपाल/ सरकार द्वारा देह व्यापार के कारोबार में लिप्त समाजों के उत्थानों के लिए करोड़ों की राशि हर वर्ष खर्च की जाती है, ल...
-
ईरान ने कहा है कि उसने एक बंदर को अंतरिक्ष भेजने में सफलता प्राप्त की है. ईरानी रक्षा मंत्रालय के अनुसार बंदर को पिशगाम रॉकेट पर 120 किल...
-
Stockholm: A cleaner stole an empty commuter train from a depot on Tuesday and drove it to a suburb of Stockholm where it derailed and sl...
-
मुंबई। शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे का दिल का दौरा पड़ने से शनिवार को निधन हो गया। मातोश्री के बाहर आकर डॉक्टरों ने बताया कि बाल ठाकरे क...
-
शुक्रवार, 4 जनवरी, पाकिस्तान से मिल रही खबरों के अनुसार मियाँदाद दिल्ली में होने वाले मैच को देखने के लिए अब नहीं आएंगे. ...
-
भोपाल।राज्य शासन के सभी अधिकारी एवं कर्मचारी सरकारी कार्यक्रम के अलावा निजी संस्था, संगठन (एन.जी.ओ.) या व्यक्तियों द्वारा आयोजित समारोह ...
-
नई दिल्ली। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा पर अब इंडियन नेशनल लोकदल के अध्यक्ष ओमप्रकाश चौटाला ने भी हमला बोल दिया है...
-
नई दिल्ली15 april 2013। गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को लेकर बीजेपी और जेडीयू में खटास बढ़ती ही जा रही है। बीजेपी ने साफ किया...
-
श्री हनुमान महायोगी और साधक हैं। श्री हनुमान के चरित्र के ये गुण संकल्प, एकाग्रता, ध्यान व साधना के सूत्रों से जीवन के लक्ष्यों को पूरा करने...
0 comments:
एक टिप्पणी भेजें