हम सरकार के खिलाफ हैं या कहीं अन्याय हो रहा तो अनशन-आंदोलन-धरना करना विरोध का तरीका होता रहा है और आगे भी विरोध का सशक्त तरीका रहेगा। लेकिन बाबा रामदेव ने नई पीढ़ी में एक अलग ही तरह के ह्यफिक्सह्ण धरना-आंदोलन की नींव रखी दी। बाकायदा मंच से घोषणा करके और प्रेस कांफ्रेस बुलाकर कहा कि अब जब तक लोकसभा चुनाव नहीं हो जाते वे आंदोलन-धरना नहीं करेंगे। आंदोलन खत्म करना है या स्थगित करना है, ये फैसला तो रामदेव को लेना था। लेकिन इतने महीनों या दिनों तक बताना यानि टाइम फिक्स आंदोलन की नींव डालने का प्रयास तो धरना-आंदोलन जैसे शांतिपूर्ण हथियार को कुंठित करने का प्रयास था। निज स्वार्थ के लिए जन भावना से खेलना की पराकाष्ठा ही कहेंगे कि दूसरी बार के आंदोलन को भी नौटंकी साबित कर दिया। किसी ने नहीं कहा था कि बाबा अब अनशन करो या आगे इतने दिनों तक मत करो। बाबा का फैसला था कि धरना देना है तो दिया और आगे बढ़ाना था तो बढ़ाया और फिर खत्म करना तो खत्म किया। हम बाबा रामदेव के विरोधी नहीं बल्कि उनकी मांगों के पुरजोर समर्थक हैं। लेकिन अजीबों-गरीब घोषणा कि अब चुनाव तक आंदोलन नहीं होगा, बाबा की नियत पर कई सवाल खड़े करता है। इस बार बाबा महिलाओं के कपड़े पहनकर नहीं भागे, बल्कि आंदोलन और आंदोलनों की दम पर देश को आजाद कराने वाले लोगों की इज्जत तार-तार करके कूच कर गए। ऐसे बाबा स्वच्छ सरकार, भ्रष्टाचार का विरोध, कालाधन की वापिसी जैसी बातें करते हैं तो लगता है कि बाबा को फिल्मों में होना चाहिए। हर बार एक नया अभिनय। इस बार होटल में सरकार के साथ फिक्सिंग कि जनता आ गई है इसलिए एक दिन आंदोलन की नौटंकी होगी। इसके बाद जन सैलाब को देखकर सरकार से किए गए वादे से मुकरना। फिर महिला के कपड़े साथ में रखकर आंदोलन करने बैठना (तभी तो लाठी पड़ते ही महिला के कपड़े पहनकर भाग सके, वरना इतने जल्दी महिला के कपड़ों का इंतजाम कैसे होता?)। फिर आंदोलन करना और अचानक आंदोलन स्थगित करते हुए चुनाव तक यानि 2014 तक कोई भी आंदोलन न करना की घोषणा।
हो सकता है कि व्यक्तिगत तौर पर कोई अन्ना या रामदेव को पसंद न करे, लेकिन ये लोग देश का भविष्य बदलने का मद्दा रखते हैं। इनकी एक भी मांग ऐसी नहीं है, जिसे हर हिंदुस्तानी जायज करार न दे या समर्थन न दे। लेकिन मांगों के साथ जब राजनीति होती है तो जनता का मन भी दो धड़ों में बंट जाता है। फिर इतिहास गवाह है कि जनता का मन भटक जाए तो किसी भी आंदोलन या अभियान को सफल नहीं बनाया जा सकता।
अन्ना एण्ड कम्पनी ने भी पहले आंदोलन के समय एक गलती के बीज बोए जो उनके दूसरे आंदोलन की असफलता के सूत्रधार बने। पहले आंदोलन में
अन्ना टीम ने केंद्र सरकार को कम, कांग्रेस को ज्यादा टारगेट किया। भ्रष्टाचार को भूल केवल सरकार को झुकाने का प्रयास किया। मंच पर कांग्रेस के अलावा बाकि दलों के भ्रष्ट नेता आए तो अन्ना टीम ने स्वागत किया। मुख्य विपक्षी पार्टी भाजपा के नेताओं के भ्रष्टाचार को जानबूझकर नजरअंदाज किया। जनलोकपाल के लिए केवल कांग्रेस पर दबाब बनाया और भाजपा सहित अन्य दलों के खिलाफ मुंह नहीं खोला। इसके साथ ही अंदरूनी तौर पर साम्प्रदायिक दल आरएसएस का समर्थन लिया। यहीं से अन्ना के आंदोलन की नींव में कमजोर पत्थर पड़ गए। परिणाम में दूसरे आंदोलन जन समर्थन नहीं मिला। इसके बाद समझ में आया कि जनलोकपाल बिल पास न होने के लिए कांग्रेस ही नहीं मुख्य विपक्षी दल भाजपा भी जिम्मेदार है। संसद में कोई भी राजनीतिक पार्टी नहीं चाहती कि जनलोकपाल बिल आए या पास हो। लेकिन जब तक अन्ना समझ सके, बहुत देर हो चुकी थी। लोगों को लगने लगा कि कहीं टीम अन्ना पक्षपात करके हमें गुमराह तो नहीं कर रही। यहीं बात दूसरे आंदोलन के लिए बल्कि देश को नई दिशा देने वाले आंदोलन के लिए विष साबित हुई। दूसरे आंदोलन में टीम अन्ना ने गला फाड़कर कांग्रेस, भाजपा सहित सभी पार्टियों के नेताओं को जिम्मेदार ठहराया, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। अनशन पर बैठे तो लगा था कि पूरा देश साथ हो जाएगा, लेकिन न तो सरकार को कोई असर पड़ा और न ही विपक्षी दल ने गर्दन को जुम्बिश दी। परिणाम आंदोलन टांय-टांय फिस्स। फिर नई रणनीति और घातक साबित हुई। अन्ना आंदोलन के विरोधी नेताओं को मौका मिला कि आंदोलन की दम पर अन्ना टीम सत्ता हथियाने के सपने देख रही है। इसीलिए जब दाल नहीं गली तो राजनीति में उतरने का एलान कर दिया।
खैर, लोगों को लगा था कि अन्ना हजारे के बाद शायद रामदेव जनभावना को समझते हुए लोकपाल के लिए अड़ेंगे। बाबा के साथ अच्छी बात ये है कि वे खुद की दम पर चलते हैं और धन-दौलत की भी कमी नहीं है। अन्ना की सारी रणनीति ही टीम की ताकत और समझ पर निर्भर रहती है। रामदेव कभी कालाधन वापिस लाने की बात करते हंै, तो कभी सरकार से लिखित समझौता कर लेते हैं। महिलाओं के वस्त्र पहनकर धरना स्थल से भागते हैं तो कभी अनशन न करने की ह्यडेट फिक्सह्ण कर देते हैं। ऐसे में रामदेव का अन्दोलन कहीं से भी जन आंदोलन नहीं रहा, बल्कि रामदेव कम्पनी का एक प्रॉडक्ट रह गया।
कुछ बुजुर्गों से सुना है कि महात्मा गांधी के अनशन से इंग्लैण्ड में बैठे गोरे थर्राते थे। ढेर सारी किताबों में भी ऐसे ही सच्चे किस्से छप चुके हैं और छपते भी रहते हैं। गुलाम मुल्क के किस्सों के बाद पाकिस्तान की मांग को लेकर भी अनशन, धरने और बाद में दंगे हुए। बन गया एक और मुल्क पाकिस्तान। लेकिन बाबा रामदेव के आंदोलन के बाद की गई घोषणा ने सरकार को अभय कर दिया और आंदोलन के महत्व को शून्य। अन्ना के पीछे हटने के बाद दूसरा झटका बाबा रामदेव की आंदोलन न करने की घोषणा, शांतिपूर्ण आंदोलनों के महत्व को धूमिल कर रहीं हैं। जन आवाज उठाने का शांतिपूर्ण हथियार इस तरह कुंठित होता गया तो एक दिन लोकतंत्र के लिए भी खतरनाक साबित हो सकता है। -प्रमोद त्रिवेदी
मंगलवार, 21 अगस्त 2012
बाबा! ऐसी सरकार ढूंढों....
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Ditulis Oleh : Janprachar.com Hari: 5:07 am Kategori: राजनैतिक
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